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    Women’s Day 2024: महिलाओं को समाज में सम्मान, सुरक्षा और समानता दिलाते हैं भारत के ये कानून

    महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और समाज में बराबरी दिलाने के मकसद से हर साल 8 मार्च को Women’s Day मनाया जाता है। इस दिन दुनियाभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह दिन पूरी तरह से महिलाओं को समर्पित है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे भारत में महिलाओं को मिले कुछ कानूनों के बारे में-

    By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Thu, 07 Mar 2024 06:18 PM (IST)
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    भारत में महिलाओं खुलकर जीने का हक देते हैं ये कानून

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Women’s Day 2024: दुनियाभर में महिलाओं को आगे बढ़ाने के मकसद से कई कदम उठाए जा रहे हैं। खासकर भारत में बीते कुछ समय से लगातार महिला सशक्तिकरण की दिशा में कार्य किया जा रहा है। यही वजह है कि वर्तमान में महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। हालांकि, आज भी कई जगहों पर महिलाओं को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज भी महिलाओं को बराबरी और अपने हक के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है।

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    महिलाओं के अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के मकसद से ही हर साल 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है। ऐसे में वीमेंस डे के मौके पर आज हम आपको बताएंगे भारत में महिलाओं को मिले कुछ ऐसे कानून के बारे में, जो उन्हें समाज में सिर उठाकर जीने में मदद करते हैं। इन कानूनों के बारे में विस्तार से जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर झा से बातचीत की।

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    पॉक्सो एक्ट कानून

    प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट यानी पॉक्सो बच्चों के लिए कानून बनाए गए हैं। वकील शशांक शेखर झा बताते हैं कि यह कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। साल 2012 में आए इस कानून के तहत बच्चों के साथ होने वाला यौन शोषण एक अपराध है। यह कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों के लिए समान है।

    मैटरनिटी लाभ अधिनियम, 1861

    भारत में महिलाओं को मैटरनिटी लीव का अधिकार प्राप्त है। इस अधिनियम के तहत हर कामकाजी महिला को छह महीने के लिए मैटरनिटी लीव मिलती है। इन छुट्टियों के दौरान महिलाओं को पूरी सैलरी दी जाती है। खास बात यह है कि हर सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर यह कानून लागू होता है। साल 1961 में जब यह कानून आया था, तब सिर्फ 3 महीने की छुट्टी दी जाती थी, लेकिन साल 2017 में इसकी अवधि बढ़ाकर

    6 महीने कर दी गई।

    दहेज निषेध अधिनियम, 1961

    हमारे समाज में आज भी कई जगह दहेज जैसी कुप्रथा देखने को मिलती है और न जाने कितनी ही बेटियां दहेज की आग में जल जाती हैं। ऐसे में इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए दहेज निषेध अधिनियम बनाया गया। इस कानून के तहत शादी के समय दूल्हा-दुल्हन या फिर उनके परिवार को दहेज देना दंडनीय अपराध है।

    भारतीय तलाक अधिनियम, 1969

    भारतीय तलाक अधिनियम के तहत एक महिला को शादी खत्म करने का अधिकार प्राप्त है। न सिर्फ महिला, बल्कि पुरुष भी अपनी शादी तोड़ सकते हैं। इसके लिए फैमिली कोर्ट में मामला दर्ज करने, सुनने और निपटाने की कार्रवाही की जाती है।

    राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम

    31 जनवरी 1992 को संसद के एक अधिनियम द्वारा, 1990 के राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की स्थापना की। इस आयोग का काम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करना है। इस अधिनियम का लाभ उठाते हुए महिलाएं अपनी किसी भी तरह की परेशानियों की शिकायत यहां दर्ज करवा सकती हैं। साथ ही अपने अधिकारों का उल्लंघन होने पर भी राष्ट्रीय महिला आयोग से मदद ले सकती है।

    महिला सुरक्षा कानून

    दिसंबर 2016 में हुए निर्भया कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस भयावह हादसे ने देश में महिलाओं की सुरक्षा पर कई सवाल खड़े कर दिए थे, जिसके बाद देश में यौन शोषण से जुड़े कानून और भी सख्त किए गए। साथ ही अगर अपराधी की उम्र 16 से 18 साल है, तो उसे माइनर न मानकर सख्त सजा सुनाई जा सकती है। साथ किसी महिला पीछा करना भी कानूनी अपराध माना जाने लगा है।

    कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ उत्पीड़न

    अगर किसी महिला के साथ ऑफिस या कार्यस्थल पर शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है, तो उनके पास इसके लिए कानून मौजूद है। इस कानून के तहत महिला उत्पीड़न करने वाले के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। साथ ही यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को वर्कप्लेस शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिलती है। इस अधिनियम के तहत पॉश कमेटी गठित की गई है।

    महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (रोकथाम) अधिनियम, 1986

    इस अधिनियम के तहक विज्ञापन के जरिए या प्रकाशनों, लेखन, चित्रों, आकृतियों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अशोभनीय या अश्लील प्रतिनिधित्व पर रोक लगाई गई है।

    समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976

    यह अधिनियम महिलाओं को वर्कप्लेस में समान सैलरी मिलने का अधिकार देता है। यह अधिनियम 8 मार्च, 1976 में पारित किया गया था। यह कानून महिलाओं को पुरुषों के समान तनख्वाह हासिल करने का हक दिलाता है।

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    Picture Courtesy: Freepik