Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Tibetean Airspace: क्या आप जानते हैं कि तिब्बत के पठारों के ऊपर क्यों नहीं उड़ता प्लेन? बेहद दिलचस्प हैं इसके कारण

    Updated: Mon, 31 Mar 2025 10:12 AM (IST)

    आपको ऐसा लगता होगा कि प्लेन दुनिया के किसी भी हिस्से में आसानी से उड़ सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है। आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताएंगे जहां से प्लेन उड़ाना काफी मुश्किल हो सकता है। हम बात कर रहे हैं तिब्बत के पठारों की (Tibetan airspace)। आइए जानें कि क्यों तिब्बत के पठारों के ऊपर प्लेन उड़ाना मुश्किल होता है।

    Hero Image
    Tibetan Airspace: क्यों तिब्बती पठारों के ऊपर नहीं उड़ते हवाई जहाज? (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अगर आपने कभी प्लेन (airplane) में सफर किया है, तो आप जानते होंगे कि प्लेन की ऊंचाई से बादलों को देखना कितना रोमांचक होता है। सुविधा के लिहाज से भी प्लेन में सफर करना काफी अच्छा होता है। लंबी से लंबी दूरी कुछ ही घंटों में आसानी से तय हो जाती है। हालांकि, प्लेन को उड़ाना उतना ही मुश्किल हो सकता है।  

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हालांकि, सभी पाइलेट अपने काम में काफी माहिर होते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे जहां काफी मंझे हुए पायलेट भी प्लेन ले जाने से कतराते हैं। हम बात कर रहे हैं तिब्बत (Tibet) के पठारों (mountain ranges) की। आइए जानें क्यों तिब्बत के पठारों के ऊपर प्लेन उड़ाने से बचा जाता है।

    तिब्बत का पठार, जिसे "दुनिया की छत" भी कहा जाता है, समुद्र तल से औसतन 4,500 मीटर (14,800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यहां का वातावरण और भौगोलिक परिस्थितियां हवाई जहाज की उड़ान के लिए कई चुनौतियां पैदा करती हैं। इसलिए इसके ऊपर प्लेन उड़ाना काफी मुश्किल भरा हो सकता है।

    यह भी पढ़ें: प्लेन की कौन-सी सीट सबसे ज्यादा सेफ? हवाई यात्रा करने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

    ज्यादा ऊंचाई और पतली हवा

    तिब्बत का पठार दुनिया का सबसे ऊंचा (flight altitude) और विशाल पठार है। यहां की ऊंचाई के कारण हवा की डेंसिटी बहुत कम होता है, जिससे विमानों के इंजनों और एयरोडायनामिक्स पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। साथ ही, जेट इंजनों को ऑक्सीजन की जरूरत होती है, लेकिन ऊंचाई पर हवा की डेंसिटी कम होने के कारण इंजनों को भरपूर ऑक्सीजन नहीं मिल पाती (oxygen levels), जिससे थ्रस्ट कम हो जाता है। हवा की डेंसिटी कम होने के कारण विमान के पंखों को पर्याप्त लिफ्ट नहीं मिल पाती, जिससे उड़ान भरना और कंट्रोल बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

    मौसम से जुड़ी चुनौतियां

    तिब्बत का मौसम अकसर बेहद खराब और अनियमित होता है, जिससे उड़ानों को भारी जोखिम होता है। इस क्षेत्र में तेज हवाएं चलती हैं (turbulence), जो हवाई जहाज के रास्ते को बाधित कर सकती हैं। साथ ही, तिब्बत में अकसर भारी बर्फबारी और कोहरा होता है, जिससे विजिबिलिटी कम हो सकती है और प्लेन का नेविगेशन मुश्किल हो जाता है।

    इमरजेंसी लैंडिंग में परेशानी

    फ्लाइट सुरक्षा के नियमों के अनुसार, विमानों को हमेशा इमरजेंसी की स्थिति में उतरने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डे तक पहुंचने में सक्षम होना चाहिए (aviation safety)। तिब्बत के पठार पर हवाई अड्डे बहुत कम हैं और उनकी ऊंचाई भी ज्यादा होती है। साथ ही, तिब्बत के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी और बर्फीले हैं, जहां इमरजेंसी लैंडिंग काफी मुश्किल होती है। ल्हासा का कोंगगर हवाई अड्डा (3,500 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर) जैसे हवाई अड्डों पर प्लेन का उतरना भी बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।

    नेविगेशन और कम्युनिकेशन में परेशानियां

    तिब्बत के क्षेत्रों में रडार और कम्युनिकेशन सुविधाएं सीमित हैं, जिससे पायलटों को नेविगेशन में मुश्किल होती है। कई हिस्सों में एयर ट्रैफिक कंट्रोल का सीमित दायरा होता है, जिससे विमानों की ट्रैकिंग मुश्किल हो जाती है। कुछ क्षेत्रों में डिटेल्ड एरोनॉटिकल मैप्स नहीं हैं, जिससे हवाई मार्गों की प्लानिंग बनाना मुश्किल होता है।

    यह भी पढ़ें: एक थर्मामीटर से हो सकता है प्लेन क्रैश! क्यों हवाई जहाज में बैन है Thermometer