क्या शरीर की सफाई का सदियों पुराना साथी है साबुन? जानें कब और कैसे हुई थी इसकी खोज
सोचिए अगर आज साबुन न होता तो हमारी जिंदगी कैसी होती? क्या हम खुद को साफ-सुथरा रख पाते? रोज नहाने और हाथ धोने की ये आसान-सी आदत कभी इंसानों के लिए अनजानी थी। क्या आपने कभी सोचा है कि जिस साबुन का आप हर दिन इस्तेमाल करते हैं उसकी कहानी (Soap History) कितनी पुरानी है? अगर नहीं तो आइए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Soap History: क्या आपने कभी सोचा है कि हम रोजाना जिस साबुन का इस्तेमाल करते हैं, उसकी खोज कब और कैसे हुई थी? आज के दौर में साबुन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन क्या यह हमेशा से हमारे पास था? चलिए जानते हैं साबुन की दिलचस्प कहानी, जो हजारों साल पुरानी है और कई रोचक तथ्यों से भरी हुई है।

साबुन की खोज कैसे हुई?
साबुन की खोज को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय कहानी प्राचीन रोम से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि रोम के पास 'सैपो' नामक एक पहाड़ी थी, जहां जानवरों की चर्बी और लकड़ी की राख के मिश्रण से एक झागदार पदार्थ बहकर नदी में चला जाता था। जब लोगों ने इस नदी के पानी से अपने कपड़े धोए, तो उन्होंने पाया कि यह पानी आसानी से गंदगी हटा देता है। यही झागदार पदार्थ साबुन का शुरुआती रूप था। माना जाता है कि इसी पहाड़ी के नाम पर 'सोप' (Soap) शब्द की उत्पत्ति हुई।
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प्राचीन सभ्यताओं में साबुन का इस्तेमाल
- मेसोपोटामिया (2800 ईसा पूर्व): इतिहास में पहली बार साबुन का जिक्र मेसोपोटामियन सभ्यता में मिलता है। उन्होंने जानवरों की चर्बी और लकड़ी की राख को मिलाकर एक सफाई करने वाला पदार्थ बनाया था।
- मिस्र (1500 ईसा पूर्व): प्राचीन मिस्री लोग भी साबुन जैसे पदार्थों का इस्तेमाल करते थे। वे जैतून के तेल, पशु वसा और क्षारीय पदार्थों (Alkaline Substances) से इसे बनाते थे।
- रोम (पहली शताब्दी ईसा पूर्व): रोम में नहाने की परंपरा बहुत प्रचलित थी, और वहां के लोग साबुन का इस्तेमाल शरीर की सफाई के लिए करने लगे थे।
- भारत और चीन: प्राचीन भारतीय और चीनी सभ्यताओं में भी हर्बल सामग्री से बने साबुन जैसी चीजों का इस्तेमाल किया जाता था। आयुर्वेद में भी सफाई के लिए प्राकृतिक सामग्रियों का उल्लेख मिलता है।

मध्य युग और आधुनिक साबुन का विकास
मध्य युग के दौरान यूरोप में सफाई का महत्व कम हो गया था, और इसी वजह से कई बीमारियां फैलने लगीं। लेकिन 12वीं शताब्दी में अरब वैज्ञानिकों ने साबुन बनाने की विधि को और उन्नत किया। उन्होंने जैतून के तेल और सुगंधित पदार्थों से अच्छे क्वालिटी के साबुन बनाए, जो आगे चलकर यूरोप में भी मशहूर हो गए।
17वीं और 18वीं शताब्दी में साबुन का इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन शुरू हुआ। 19वीं शताब्दी में, जब लुई पाश्चर ने बताया कि बीमारियों का मुख्य कारण गंदगी और बैक्टीरिया हैं, तब साबुन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने लगा। धीरे-धीरे वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रकार के साबुन बनाए, और आज हमारे पास अनेक तरह के साबुन उपलब्ध हैं।
आज का साबुन और उसका महत्व
आज के दौर में साबुन केवल सफाई का ही नहीं, बल्कि स्किन केयर का भी हिस्सा बन चुका है। तरह-तरह की खुशबू, औषधीय गुण और त्वचा को पोषण देने वाले तत्वों से भरपूर साबुन बाजार में मौजूद हैं।
अलग-अलग तरह के साबुन
आज के दौर में साबुन केवल सफाई का ही नहीं, बल्कि स्किन केयर का भी हिस्सा बन चुका है। तरह-तरह की खुशबू, औषधीय गुण और त्वचा को पोषण देने वाले तत्वों से भरपूर साबुन बाजार में मौजूद हैं।
- ग्लिसरीन साबुन: यह त्वचा को मॉइश्चराइज करता है और ड्राई स्किन वालों के लिए फायदेमंद होता है।
- एंटीबैक्टीरियल साबुन: यह बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करता है और खासतौर पर हाथों की सफाई के लिए उपयोगी होता है।
- हर्बल साबुन: ये प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बने होते हैं और स्किन फ्रेंडली होते हैं।
- मेडिकेटेड साबुन: खासतौर पर त्वचा की बीमारियों के इलाज के लिए बनाए जाते हैं।
- फैंसी और सुगंधित साबुन: खुशबूदार और अलग-अलग रंगों व डिजाइनों में उपलब्ध होते हैं।
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