Lakhpat Fort Kutch: अपने समय का कॉस्मोपॉलिटन सिटी, हर शख्स था लखपति… फिर कैसे बर्बाद हुआ बंदरगाह वाला शहर लखपत
देश की धरोहर में आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां साल 1800 के आस-पास इतना व्यापार होता था कि वहां रहने वाला हर शख्स लखपति था। लिहाजा इस जगह का ही नाम ही लखपत पड़ गया। हालांकि गुजरात के भुज में बसी यह जगह आज वीरान हो गई है। जानिए आखिर क्या हुआ था यहां।

शशांक शेखर बाजपेई। गुजरात और सिंध को जोड़ने की वजह से भुज का लखपत शहर कभी व्यापारिक दृष्टि से अहम था। यह जगह आज पाकिस्तान की सीमा के बहुत पास है। कहते हैं कि यहां से ओमान तक समुद्री रास्ते से व्यापार होता था, जिसकी वजह से यहां रहने वाले लोग उस समय लखपति हुआ करते थे।
साथ ही शायद उस समय का पहला कॉस्मोपॉलिटन शहर, जहां कई धर्मों और जातियों के लोग रहा करते थे। सभी आर्थिक रूप से संपन्न और खुशहाल थे। गुजरात में उस समय यह जगह सबसे बड़ी और अमीर बस्तियों में शामिल थी। माना जाता है कि उस वक्त इस शहर में करीब 15 हजार से ज्यादा लोग रहते थे।
चीनी यात्री व्हेन सांग 7वीं सदी में यहां से गुजरे थे। उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में लिखा था कि तब कच्छ सिंध प्रांत का हिस्सा हुआ करता था। तब यहां चावल सहित कई तरह की फसलें उगाई जाती थीं। यानी उस समय भी इस जगह पर संपन्नता हुआ करती थी। हालांकि, इस जगह का शीर्ष पर पहुंचना तो बाकी था।
एक पीर ने की थी भविष्यवाणी
15वीं सदी के बाद यह व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र बना। ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस के शो ‘एकांत’ में महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी के इतिहासकार डॉक्टर राजकुमार हंस बताते हैं कि जमादार फतेह मोहम्मद गरीब परिवार में पैदा हुआ था। उसका काम भेड़-बकरियां चराना था। कहतें हैं बचपन में वह भेड़-बकरियां चराते हुए एक पेड़ की छांव में सो गया था।
इसी दौरान वहां से गुजर रहे एक पीर ने उसके लात मारकर जगाया। पीर के इस बर्ताव पर फतेह मोहम्मद गुस्सा नहीं हुआ, बल्कि मुस्कुराने लगा। तब पीर ने भविष्यवाणी की थी कि फतेह एक दिन बड़ा आदमी बनेगा। साथ ही यह सलाह भी दी थी कि एक दिन राजा से जरूर मिलना।
जमादार फतेह मोहम्मद ने बसाया शहर
फतेह मोहम्मद ने ऐसा ही किया और देखते ही देखते वह इलाके का सबसे ताकतवर शख्स बन गया। साल 1801 में लखपत शहर के चारों तरफ करीब 7 किलोमीटर लंबी किलाबंदी उसी ने करवाई थी।
यहां की कोरी क्रीक से निकलकर सिंध, अरब, और हिंद महासागर के किसी भी कोने में जा सकते थे। ऐसी जगह पर स्थित होने की वजह से लखपत को इसका बड़ा फायदा मिला।
उन्होंने ही यहां एक बड़े से किले का निर्माण कराया, जो अब भी लगभग बरकरार है। इस किले के अंदर कभी 15 हजार से ज्यादा परिवार रहा करते थे। किले की लंबी दीवारें काफी ऊंची हैं, लेकिन मोटी नहीं हैं।
जेपी दत्ता की साल 2000 में आई फिल्म 'रिफ्यूजी' में लखपत किले को पड़ोसी देश पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार बसे एक फर्जी शहर के रूप में दिखाया गया है।
जहांगीर से संधि का कच्छ को मिला फायदा
लखपत एक बड़ा बंदरगाह होने के साथ ही मक्का जाने लोगों के लिए भी अहम जगह बन गया था। 16वीं शताब्दी के शुरू में सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव यहीं से हज के लिए मक्का गए थे। इसके अलावा कच्छ के शासक महाराव ने 1617 में मुगल बादशाह जहांगीर से संधि की थी।
जहांगीर ने तब कहा था कि यदि आप हज जाने वाले यात्रियों से कोई कर नहीं लेंगे, तो आपसे कोई रॉयल्टी नहीं ली जाएगी। इस संधि से कच्छ को दो फायदे हुए। पहला, कच्छ की स्वतंत्रता कायम हो गई।
दूसरा, मुगल सल्तनत का दबाव कम हो गया, जिसकी वजह से यहां व्यापार भी फलने-फूलने लगा। बताते हैं कि यहां दुनियाभर से लोग आते थे। इसके चलते यह अपने जमाने का कॉस्मोपॉलिटन शहर बन गया था।
फिर कैसे वीरान हो गया यह शहर
मगर, एक समय का समृद्ध शहर आज वीरान हो गया है। इस शहर के पतन के कई कारण हैं। 16 जून 1819 की शाम को आया भूकंप इसका एक बड़ा कारण था। भूकंप के बाद आई सुनामी ने कई हफ्तों तक तबाही मचाई। कोरी क्रीक भी बंद हो गई।
भूकंप की वजह से ही सिंधु नदी ने रास्ता बदल लिया और पश्चिम की ओर चली गई, तो महान रण सूख गया और लखपत भी इससे अछूता नहीं रहा। नदी के न होने से समुद्र के जरिये होने वाला व्यापार भी बहुत कम हो गया।
इसके बाद 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा दूसरी बड़ी वजह बना। आजादी के बाद कराची और इसके बीच भी व्यापार में रुकावट हुई। हालांकि, सॉफ्ट बॉर्डर होने की वजह से थोड़ा-बहुत व्यापार चलता रहा। साल 1965 की भारत-पाकिस्तान की जंग के बाद व्यापारिक संबंध खत्म हो गए।
1980 में तालुका हेडक्वार्टर बदलकर दयापुर लाया गया। इसके बाद यहां से व्यापारी पलायन कर गए और खत्म हो गई लखपत की समृद्धि की कहानी।
डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ और गुजरात सरकार की पर्यटन वेबसाइट से जानकारी ली गई है।
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