ब्रांडेड से कैसे अलग हैं जेनेरिक दवाइयां, क्या सस्ती होने के कारण इनका असर हो जाता है कम?
दवाइयां खरीदते वक्त हमारे सामने महंगी ब्रांडेड दवा और सस्ती जेनेरिक दवा (Branded vs Generic Medicines) का ऑप्शन होता है। ऐसे में अगर आपको भी ऐसा लगता है कि महंगी दवा ज्यादा असरदार होगी तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। आइए ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयों के बीच के अंतर को समझते हैं और यह जानते हैं कि क्या सस्ती दवाइयां वाकई कम असरदार होती हैं?

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Branded vs Generic Medicines: जब भी हम किसी बीमारी के इलाज के लिए दवा खरीदते हैं, तो हमें अक्सर दो तरह के विकल्प मिलते हैं- ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवा। आमतौर पर लोग यह मानते हैं कि महंगी ब्रांडेड दवाएं ज्यादा असरदार होती हैं, जबकि सस्ती जेनेरिक दवाएं कम असरदार होती हैं, लेकिन क्या हकीकत में ऐसा ही है? आइए जानते हैं कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयों में असली फर्क क्या है और क्या जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों की धारणाएं सही हैं।

जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में क्या अंतर है?
ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं में सबसे बड़ा अंतर उनका नाम और कीमत होती है, लेकिन इनका सक्रिय तत्व (Active Ingredient) एक ही होता है। यह वही तत्व होता है जो बीमारी को ठीक करने में मदद करता है। तो फिर अंतर कहां आता है? आइए विस्तार से समझते हैं।
1) ब्रांडेड दवाएं
- ये दवाएं किसी बड़ी फार्मा कंपनी द्वारा विकसित की जाती हैं।
- नई दवा के लिए कंपनियां रिसर्च और पेटेंट पर भारी निवेश करती हैं।
- इनकी मार्केटिंग और विज्ञापन पर भी बड़ा खर्च किया जाता है।
- पेटेंट के कारण कोई अन्य कंपनी इसे नहीं बना सकती, इसलिए ये महंगी होती हैं।
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2) जेनेरिक दवाएं
- जब किसी ब्रांडेड दवा का पेटेंट समाप्त हो जाता है, तो अन्य कंपनियां वही दवा बिना ब्रांड नाम के कम कीमत में बना सकती हैं।
- ये दवाएं ब्रांडेड दवाओं जितनी ही सुरक्षित और असरदार होती हैं।
- इन पर रिसर्च और विज्ञापन का खर्च नहीं होता, जिससे इनकी कीमत कम रहती है।
क्या जेनेरिक दवाएं कम असरदार होती हैं?
यह सबसे बड़ा मिथक है कि जेनेरिक दवाएं कम प्रभावी होती हैं। वास्तव में, जेनेरिक दवाओं की प्रभावशीलता, सुरक्षा और गुणवत्ता की जांच सरकारी संस्थाएं (भारत में CDSCO, अमेरिका में FDA) करती हैं। इनकी निर्माण प्रक्रिया और प्रभाव ब्रांडेड दवाओं के समान ही होते हैं।
हालांकि, कुछ मामलों में जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवा में अंतर आ सकता है:
- गोलियों का रूप या आकार: जेनेरिक दवा का रंग, आकार और अतिरिक्त तत्व (fillers) अलग हो सकते हैं, लेकिन सक्रिय तत्व समान रहता है।
- अवशोषण की दर (Bioavailability): कुछ मामलों में, शरीर द्वारा दवा को अवशोषित करने की दर में मामूली अंतर हो सकता है, लेकिन यह आमतौर पर चिकित्सकीय रूप से जरूरी नहीं होता।
जेनेरिक दवा सस्ती क्यों होती है?
कई लोगों को यह गलतफहमी होती है कि सस्ती दवा का असर भी कम होगा, लेकिन जेनेरिक दवा इसलिए सस्ती होती है क्योंकि:
- इन पर नई रिसर्च और डेवलपमेंट का खर्च नहीं आता।
- इन्हें विज्ञापन और मार्केटिंग की जरूरत नहीं होती।
- कई कंपनियां एक ही दवा बनाती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और कीमतें कम रहती हैं।
- सरकारें भी जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देती हैं ताकि आम जनता तक सस्ती और असरदार दवा पहुंच सके।
क्या जेनेरिक दवा खरीदनी चाहिए?
अगर डॉक्टर ने जेनेरिक दवा लिखी है, तो इसे बिना किसी संकोच के लिया जा सकता है। कई सरकारी अस्पताल और “जन औषधि केंद्र” जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराते हैं, लेकिन ध्यान देने लायक कुछ जरूरी बातें हैं:
- अच्छी गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवा खरीदें – कुछ लोकल कंपनियां घटिया गुणवत्ता की दवाएं भी बना सकती हैं, इसलिए प्रमाणित मेडिकल स्टोर से ही खरीदें।
- SALT (सक्रिय तत्व) जांचें – पैकेट पर लिखे सक्रिय तत्व को देखें और सुनिश्चित करें कि यह डॉक्टर द्वारा सुझाए गए तत्व से मेल खाता हो।
- डॉक्टर या फार्मासिस्ट से सलाह लें – अगर कोई शक हो, तो एक्सपर्ट से पूछें।
कुल मिलाकर, यह कहना गलत होगा कि ब्रांडेड दवा ही ज्यादा असरदार होती है। अगर सही गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवा खरीदी जाए, तो यह ब्रांडेड दवा जितनी ही प्रभावी होती है। इसलिए अगली बार जब दवा खरीदें, तो सिर्फ ब्रांड के नाम से प्रभावित होने के बजाय सक्रिय तत्व और गुणवत्ता पर ध्यान दें। सरकार भी जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दे रही है ताकि हर कोई किफायती और असरदार इलाज हासिल कर सके।

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