क्यों Colorful होते हैं टैबलेट्स और कैप्सूल, क्या बीमारी से भी है रंगों का कोई नाता?
क्या आपने कभी सोचा है कि दवाइयों की गोलियां और कैप्सूल इतने रंग-बिरंगे क्यों होते हैं (Why Are Pills Colored)? कुछ लाल कुछ नीले कुछ हरे तो कुछ पीले! क्या ये सिर्फ दिखने में आकर्षक बनाने के लिए होते हैं या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण छिपा होता है? आइए इस आर्टिकल में आपको बताते हैं इसके पीछे का पूरा साइंस।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Why Are Pills Colored: जब भी आप कोई दवा लेते हैं, क्या आपने गौर किया है कि वे अलग-अलग रंगों में आती हैं? लाल, नीली, हरी, पीली—हर गोली और कैप्सूल का अपना एक खास रंग होता है, लेकिन क्या ये रंग सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं, या इसके पीछे कोई गहरा वैज्ञानिक कारण छिपा है?
सोचिए, अगर सारी गोलियां सफेद होतीं, तो क्या आप आसानी से पहचान पाते कि कौन-सी दवा कब लेनी है? या फिर क्या कोई रंग आपकी बीमारी पर मानसिक असर डाल सकता है? यह सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि दवा कंपनियों की एक सोची-समझी रणनीति है। आइए, जानें दवाइयों के रंगों (Medicine Colors) के पीछे छिपे दिलचस्प रहस्य।
1) रंगों की पहचान – मरीज के लिए आसान
जब कोई मरीज एक साथ कई दवाइयां लेता है, तो अलग-अलग रंगों की गोलियां उसे अपनी दवा पहचानने में मदद करती हैं। अगर सारी गोलियां एक जैसी सफेद होतीं, तो मरीजों के लिए सही दवा को याद रखना मुश्किल हो जाता। खासतौर पर बुजुर्गों और आंखों की रोशनी कम होने वाले लोगों के लिए यह बहुत इस्तेमाल होता है।
2) डॉक्टर और फार्मासिस्ट के लिए सहूलियत
डॉक्टर और मेडिकल स्टोर में काम करने वाले फार्मासिस्ट भी दवाइयों को जल्दी पहचानने के लिए उनके रंगों पर निर्भर रहते हैं। इससे गलती की संभावना कम हो जाती है और सही दवा मरीज तक पहुंचती है।
3) दवा के असर को दर्शाने वाले रंग
कई बार कंपनियां दवा के रंग इस तरह से चुनती हैं कि वे मरीज के दिमाग पर भी असर डालें। आइए कुछ उदाहरण की मदद से आपको यह बात समझाते हैं।
- नीली और हरी गोलियां: आमतौर पर दर्द निवारक, एंटी-एंग्जायटी और नींद लाने वाली दवाओं के लिए होती हैं, क्योंकि ये रंग मन को शांत करने वाले होते हैं।
- लाल और नारंगी गोलियां: एनर्जी बूस्टर या तेज असर करने वाली दवाओं में होती हैं, क्योंकि ये रंग जोश और सक्रियता बढ़ाने का संकेत देते हैं।
- काली और गहरी भूरी गोलियां: आयरन और विटामिन से जुड़ी दवाओं में होती हैं, जो शरीर में पोषण बढ़ाने का काम करती हैं।
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4) सूरज की रोशनी और दवा की सुरक्षा
कुछ दवाएं सूरज की रोशनी में जल्दी खराब हो जाती हैं। इसलिए कंपनियां ऐसे रंग चुनती हैं जो दवा को धूप से बचाने में मदद करें। गहरे रंगों की कोटिंग दवा की गुणवत्ता को लंबे समय तक बनाए रखती है।
5) स्वाद और गंध को छिपाने का तरीका
कुछ दवाइयां बहुत कड़वी होती हैं, जिनका स्वाद मरीजों को पसंद नहीं आता। रंगीन कोटिंग न केवल दवा को आकर्षक बनाती है, बल्कि उसके कड़वेपन को भी छिपाती है, जिससे मरीज आसानी से इसे निगल सकते हैं।
6) बच्चों को आकर्षित करने के लिए भी होते हैं रंग
बच्चों को दवा देना एक मुश्किल काम होता है। इसलिए कंपनियां चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी और ऑरेंज फ्लेवर की सिरप और रंगीन च्युइंग टेबल्ट्स बनाती हैं, जिससे बच्चे खुशी-खुशी दवा लें।
क्या बीमारी के हिसाब से तय होते हैं दवा के रंग?
सीधे तौर पर कहें तो दवा का रंग बीमारी पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह मरीज की मनोवैज्ञानिक स्थिति, दवा की पहचान और उसकी सुरक्षा को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। हालांकि, कई बार डॉक्टर भी मानसिक प्रभाव के लिए खास रंगों की दवा लिखते हैं।
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