क्यों किसी भी पते के पीछे लिखा जाता है PIN Code, जानें कब हुई भारत में इसकी शुरुआत
कोई भी खत भेजना हो या कोई पार्सल हर पते के पीछे पिनकोड जरूर लिखा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये 6 अंकों का कोड अगर न लिखा जाए तो क्या होगा। कैसे पिनकोड की शुरुआत हुई थी और यह क्यों जरूरी है (PIN Code Structure)। आइए इन सवालों के जवाब इस आर्टिकल में जानते हैं।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अगर आपने कभी किसी को चिट्टी लिखी है या कोई पार्सल भेजा है, तो आपको पते के साथ एक पिनकोड भी लिखना पड़ता होगा। इसके (PIN Code System) बिना पता अधूरा माना जाता है। लेकिन आखिर पिनकोड है क्या, क्यों किसी भी जगह के पते के पीछे ये अंक लिखे जाते हैं और इसकी शुरुआत कैसे हुई थी। आइए इन सवालों के जवाब हम इस आर्टिकल में जानते हैं।
क्या है पिनकोड?
पिनकोड (PIN Code) का पूरा नाम पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) है। यह भारतीय डाक विभाग द्वारा देश के अलग-अलग क्षेत्रों को पहचानने के लिए बनाया गया एक 6-अंकों का कोड है। पिनकोड का काम डाक सेवाओं को तेज, सुव्यवस्थित और सटीक बनाना है, ताकि पत्र, पार्सल और अन्य डाक सही जगह पर पहुंच सकें।
पिनकोड की संरचना कैसी होती है?
भारत का पिनकोड 6 अंकों से मिलकर बना होता है, जिसमें हर अंक एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र को दर्शाता है।
पहला अंक – यह भारत के क्षेत्र (जोन) को दर्शाता है। भारत को 9 डाक क्षेत्रों में बांटा गया है, जिनमें से 8 क्षेत्रीय हैं और 9वां सेना (Army Postal Service) के लिए है।
1 – उत्तरी क्षेत्र (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर)
2 – उत्तरी क्षेत्र (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश)
3 – पश्चिमी क्षेत्र (राजस्थान, गुजरात)
4 – पश्चिमी क्षेत्र (महाराष्ट्र, गोवा, मध्य प्रदेश)
5 – दक्षिणी क्षेत्र (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक)
6 – दक्षिणी क्षेत्र (केरल, तमिलनाडु)
7 – पूर्वी क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम)
8 – पूर्वी क्षेत्र (बिहार, झारखंड)
9 – सेना डाक सेवा (APO और FPO)
दूसरा अंक – यह उप-क्षेत्र (sub-zone) को दर्शाता है।
तीसरा अंक – यह जिले को दर्शाता है।
अंतिम तीन अंक – यह स्पेसेफिक डाकघर को दर्शाते हैं।
उदाहरण: यदि पिनकोड 110001 है, तो:
1 – उत्तरी क्षेत्र (दिल्ली)
10 – दिल्ली का उप-क्षेत्र
001 – कनॉट प्लेस डाकघर
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पिनकोड प्रणाली की शुरुआत कैसे हुई?
पिनकोड प्रणाली की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को हुई थी। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि देश में डाक सेवाओं को व्यवस्थित करने के लिए एक सटीक पता प्रणाली की जरूरत थी। भारत जैसे विशाल देश में, जहां हजारों गांव, कस्बे और शहर हैं, डाक को सही जगह पर पहुंचाना एक बड़ी चुनौती थी।
इस प्रणाली को श्रीराम भिकाजी वलंकर (Shriram Bhikaji Velankar) ने विकसित किया था, जो उस समय भारतीय डाक विभाग में अतिरिक्त सचिव (Additional Secretary) के पद पर थे। उन्होंने देश को अलग-अलग क्षेत्रों में बांटकर पिनकोड प्रणाली को लागू किया, जिससे डाक सेवाएं ज्यादा कुशल हो सकें।
पिनकोड का महत्व
- डाक सेवाओं में सुधार- पिनकोड के कारण पत्र और पार्सल जल्दी और सही पते पर पहुंचने लगे।
- ई-कॉमर्स की सुविधा- ऑनलाइन शॉपिंग में पिनकोड की मदद से चीजों का डिलीवरी एड्रेस सटीक होता है।
- बैंकिंग और सरकारी योजनाओं में इस्तेमाल- बैंक खाता, आधार कार्ड, राशन कार्ड आदि के लिए पिनकोड जरूरी है।
- आपातकालीन सेवाओं में मदद- पिनकोड की मदद से एम्बुलेंस, पुलिस और अन्य आपातकालीन सेवाएं सही जगह पर पहुंच सकती हैं।
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