Bodh Gaya: इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को मिला था दिव्य ज्ञान, जानिए बोधि पेड़ की कुछ अनोखी बातें
Bodhi Tree बौद्ध धर्म में बोधगया को तीर्थ स्थल का दर्जा दिया जाता है। बौद्ध धार्मिक ग्रंथ के अनुसार इस पवित्र अंजीर के पेड़ के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह पेड़ तीर्थयात्रा परिसर का एक अभिन्न अंग है जो भी इस तीर्थ स्थल पर आता है वह इस पवित्र पेड़ के दर्शन जरूर करता है।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Bodh Gaya: बोधगया, जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है, यह वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था। यह न केवल बौद्ध धर्म के लिए बल्कि हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान बुद्ध को यह ज्ञान एक अंजीर के वृक्ष के नीचे बैठकर प्राप्त हुआ था जिसे आज हम बोधि वृक्ष के नाम से जानते हैं। यह स्थान अपने आप में एक विशेष महत्व रखता है। साथ ही यहां स्थित वृक्ष का भी विशेष महत्व है।
ये हैं बोधि वृक्ष की अनोखी बातें
इस वृक्ष को लेकर जो एक सबसे अनोखी मान्यता है वह यह है कि जहां पर यह वृक्ष स्थित वह स्थान पृथ्वी की नाभि है। साथ ही यह भी माना जाता है कि यह इकलौता ऐसा स्थान है जो बुद्ध के ज्ञानोदय का भार सहन कर सका। आज जो पेड़ यहां मौजूद है वह असल में बोधि वृक्ष की पीढ़ी का चौथा पेड़ है।
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किसने की थी पेड़ को कटवाने की कोशिश
मान्यताओं के अनुसार, जब एक बार बौद्ध अनुयायी सम्राट अशोक किसी कार्य से बाहर गए हुए थे तब, उनकी रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे वृक्ष को कटवाने का प्रयास किया था। लेकिन इसमें वह असफल रही। बोधि वृक्ष पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ था। कुछ ही सालों के बाद बोधि वृक्ष की जड़ से एक नया पेड़ उग आया।
वहीं इसे सातवीं शताब्दी में बंगाल के राजा शशांक ने दोबारा कटवाने का प्रयास किया था, क्योंकि वह बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी था। पहले उसने बोधि वृक्ष को जड़ से उखड़वाने को सोचा, लेकिन जब वह इस प्रयास में असफल रहा तो उसने तने से पेड़ को कटवा दिया और उसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि कुछ समय बाद दोबारा उसी स्थान पर दोबारा से बोधि पेड़ उग आया।
आज के बोधि वृक्ष का श्रीलंका से है संबंध
ऐसा माना जाता है कि जो बोधि वृक्ष बोधगया में मौजूद है वह वास्तविक बोधि वृक्ष की चौथी पीढ़ी का वृक्ष है। इस वृक्ष का संबंध श्रीलंका से है। दरअसल, तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के बेटे और बेटी बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए इस वृक्ष श्रीलंका गए थे। जब 1876 में एक प्राकृतिक आपदा में इस पेड़ को भारी नुकसान पहुंचा तो लॉर्ड कनिंघम ने श्रीलंका के अनुराधापुरा से बोधि वृक्ष की शाखा मंगवाकर उसे बोधगया में स्थापित करवा दिया। यही वह वृक्ष है जो आज तक बोधगया में मौजूद है।
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