डीपीसीसी रिपोर्ट में खुलासा: यमुना का पानी नहाने लायक भी नहीं, प्रदूषण मानक से कई गुना अधिक
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी का पानी नहाने लायक भी नहीं है। यमुना में प्रदूषण का स्तर मानकों से बहुत अधिक है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रिपोर्ट में पाया गया कि प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि यह नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। लोगों को नदी के पानी से दूर रहने की सलाह दी गई है।

यमुना नदी। फाइल फोटो
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। मानसून में रिकाॅर्ड वर्षा होने से यमुना की गंदगी बह गई थी, परंतु अब एक बार फिर से नदी में प्रदूषण बढ़ने लगा है। कालिंदी कुंज में झाग बन रहा है। इससे यमुना में छठ पूजा करने वालों की चिंता बढ़ गई है। इस समय प्रदूषण कम करने के लिए हरियाणा के हथनी कुंड से पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी यमुना नहर का पानी रोककर नदी में डाला जा रहा है।
हरियाणा और यूपी को मिलकर करना होगा काम
झाग दूर करने के लिए कालिंदी कुंज के पास रसायन का छिड़काव किया जा रहा है। इस तरह के उपाय से कुछ दिनों के लिए राहत मिल सकती है लेकिन नदी साफ नहीं होगी। यमुना को स्वच्छ व अविरल बनाने को बड़े उपचार की आवश्यकता है। इस दिशा में केंद्र सरकार व दिल्ली के साथ ही पड़ोसी राज्य हरियाणा व उत्तर प्रदेश को मिलकर काम करना होगा।
आईटीओ बैराज के पास यह 1800
दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल समिति (डीपीसीसी) की अक्टूबर की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश स्थानों पर मल-मूत्र से होने वाले प्रदूषण (फेकल कोलीफार्म) की मात्रा के साथ ही अन्य प्रदूषक तत्व मानक से ऊपर हैं। पानी में फेकल कोलीफार्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर 500 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) होना चाहिए। इसका स्तर 2500 एमपीएन पहुंचने पर यह उपयोग लायक नहीं रह जाता है। सितंबर में आईटीओ बैराज के पास यह 1800 था।
डीओ मानक के अनुरूप नहीं
अक्टूबर में यह बढ़कर आठ हजार हो गया है। फेकल कोलीफार्म के साथ ही जैव रसायन आक्सीजन मांग (बीओडी) और घुलनशील आक्सीजन (डीओ) भी बढ़ा है। स्वच्छ पानी में बीओडी तीन मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर या इससे कम और डीओ पांच एमजी प्रति लीटर या इससे अधिक होना चाहिए। सिर्फ पल्ला में बीओडी तीन है। ओखला में 30 एमजी प्रति लीटर है। इसी तरह से अधिकांश स्थानों पर डीओ मानक के अनुरूप नहीं है।
यमुना की बदहाली के कई जिम्मेदार
यमुना की इस दशा के लिए दिल्ली के साथ ही हरियाणा व उत्तर प्रदेश भी जिम्मेदार है। तीनों राज्यों में बड़ी मात्रा में औद्योगिक अपशिष्ट व सीवरेज नदी में गिर रहा है। सबसे अधिक प्रदूषण लगभग 70 प्रतिशत गुरुग्राम की तरफ से बहकर आने वाले नजफगढ़ ड्रेन (साहिबी नदी) से होता है।
यही कारण है कि पल्ला व वजीराबाद में अपेक्षाकृत साफ रहने वाली नदी नजफगढ़ ड्रेन के मिलने के बाद आइएसबीटी के पास बहुत अधिक दूषित हो जाती है। वजीराबाद में बीओडी 4 एमजी प्रति लीटर और फेकल कोलीफार्म 1700 है जो आईएसबीटी में बढ़कर 37 और 21000 हो जाता है।
गुरुग्राम में तीन नाले इस ड्रेन में आकर गिरते हैं। बहरामपुर और धनवापुर में इन नालों के पानी को साफ करने का संयंत्र है, लेकिन उसकी गुणवत्ता सही नहीं है। सेक्टर 107 में एक नया संयंत्र बन रहा है।
दिल्ली जल बोर्ड नजफगढ़ ड्रेन में गिरने वाले नालों के पानी को साफ करे के लिए 27 विकेंद्रीकृत सीवरेज उपचार संयंत्र (डीएसटीपी) बनाने को मंजूरी दी गई थी। इसमें से 15 डीएसटीपी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। डेढ़ वर्षों के अंदर इनका निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य है।
साहिबी ड्रेन से पहुंच रही है गाजियाबाद की गंदगी
नजफगढ़ ड्रेन के बाद यमुना में सबसे अधिक प्रदूषण साहिबी ड्रेन से हो रहा है। इस ड्रेन के यमुना में मिलने के बाद असगरपुर में डीओ शून्य हो गया है। यहां बीओडी का स्तर 31 एमजी प्रति लीटर है। साहिबाबाद ड्रेन लोनी से शुरू होकर शाहदरा नाले के माध्यम से यमुना में गिरता है।
घरेलू सीवरेज के साथ ही साहिबाबाद साइट-चार के सैकड़ों कारखानों का औद्योगिक अपशिष्ट और लोनी की रंगाई फैक्ट्रियों से निकलने वाला दूषित पानी भी इसके माध्यम से यमुना में पहुंच रहा है। वहीं, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अंकित सिंह का कहना है कि नाले के पानी को शोधित करने के लिए इंदिरापुरम में 186 एमएलडी क्षमता के तीन एसटीपी संचालित हैं।
इसके उपचारित पानी औद्योगिक क्षेत्रों को दिया जाता है। कुछ पानी ही शाहदरा ड्रेन में गिरता है। वर्ष में छह बार एसटीपी का सैंपल लिया जाता है। सैंपल फेल होने पर एक वर्ष में पांच बार जुर्माना लगाया गया है।
पानी तय मानक के अनुरूप नहीं
अर्थ वारियर्स के संयोजक पंकज का कहना है कि एनजीटी के मानक के अनुसार नहाने योग्य पानी का बीओडी तीन मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे कम होना चाहिए। इसी तरह से 2500 एमपीएन से अधिक फेकल कोलीफार्म नुकसानदेह है। डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार यमुना का पानी तय मानक के अनुरूप नहीं है, इसलिए लोगों को इसमें स्नान नहीं करना चाहिए।
साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (संड्रप) के सहायक समन्वयक बीएस रावत का कहना है कि राज्य सरकारें अवैध मशीनी खनन रोकने और नियमपूर्ण एसटीपी संचालन सुनिश्चित करने में पूरी तरह विफल रही हैं। केंद्र सरकार और तीनों राज्य सरकार को को सीवरेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) क्षमता विकास, औद्योगिक प्रदूषण रोकथाम, पूरे वर्ष यमुना में जलप्रवाह बनाए रखने, जल संचयन बढ़ाने और जल स्रोतों को बचाने के लिए ठोस नीति और बनाकर उसका सफल कार्यान्वयन सुनिश्चित करना होगा।
सफाई पर करोड़ों खर्च
नदी की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये लगाया जा रहा है। दूसरी तरफ उससे कहीं अधिक पैसा नदी से जल दोहन के लिए बांध, बैराज जैसी योजनाओं पर खर्च हो रहा है। राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के अध्ययन के अनुसार पूरे वर्ष हथनी कुंड बैराज से न्यूमतम 813 क्यूसेक पानी यमुना में छोड़ना होगा, जिससे कि इसका प्रवाह बना रहे।
डीपीसीसी की अक्टूबर माह का रिपोर्ट
| स्थान | बीओडी (एमजी प्रति लीटर) | डीओ(एमजीप्रति लीटर) | फेकल कोलीफार्म (एमपीएन प्रति एमएल) |
| पल्ला | 3 | 7.6 | 800 |
| वजीराबाद | 4 | 4.9 | 1700 |
| आईएसबीटी पुल | 37 | 0.8 | 21000 |
| आईटीओ पुल | 29 | 1 | 8000 |
| निजामुद्दीन बैराज | 33 | 1 | 14000 |
| ओखला बैराज | 30 | 1.2 | 3500 |
| आगरा नहर (ओखला बैराज के पास) | 22 | 2.7 | 2700 |
| असगरपुर | 31 | शून्य | 11000 |
डीपीसीसी की सितंबर माह का रिपोर्ट
| स्थान | बीओडी(एमजी प्रति लीटर) | डीओ(एमजीप्रति लीटर) | फेकल कोलीफार्म (एमपीएन प्रति एमएल) |
| पल्ला | 2.5 | 9.5 | 790 |
| वजीराबाद | 3.5 | 5.9 | 1300 |
| आईएसबीटी पुल | 8 | 4.2 | 2800 |
| आईटीओ पुल | 4 | 5.1 | 1800 |
| ओखला बैराज | 13.5 | 3.7 | 3500 |
| आगरा नहर (ओखला बैराज के पास) | 6.5 | 4.3 | 2100 |

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