यमुना सफाई पर संकट: कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मानकों पर खरे नहीं उतरे, DPCC और CPCB की रिपोर्ट में बड़ा अंतर
यमुना नदी की सफाई को लेकर दिल्ली में चिंताजनक स्थिति है। DPCC और CPCB की रिपोर्टों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के प्रदर्शन को लेकर बड़ा अंतर है। CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, कई STP मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है। यमुना सफाई के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

यमुना नदी। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। यमुना को साफ स्वच्छ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि इसमें गंदा पानी नहीं गिरे। इसके लिए राजधानी में 37 सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) स्थापित किए गए हैं। परंतु, इनकी गुणवत्ता सही नहीं होने से यमुना में गंदा पानी पहुंच रहा है। गुणवत्ता खराब होने के साथ ही इनकी निगरानी प्रणाली भी ठीक नहीं है। यही कारण है कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा एसटीपी की जांच रिपोर्ट अलग-अलग है। डीपीसीसी कई एसटीपी के उपचारित पानी को साफ बता रहा है परंतु सीपीसीबी की जांच में वह अत्यधिक प्रदूषित मिला।
डीपीसीसी प्रति माह सभी एसटीपी की गुणवत्ता रिपोर्ट जारी की जाती है। कई बार सीपीसीबी भी अपने स्तर पर इनकी गुणवत्ता की जांच करता है। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार दोनों एजेंसियों की रिपोर्ट में समानता नहीं है। आरटीआई के माध्यम से अर्थ वारियर्स के प्रतिनिधि को मिली जून की रिपोर्ट से दिल्ली के 37 एसटीपी की चिंताजनक स्थिति का पता चलता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार एसटीपी के उपचारित पानी में फेकल कोलीफाॅर्म (मानव मल मूत्र से प्रदूषण), जैव रासायनिक आक्सीजन मांग (बीओडी), कुल निलंबित ठोस, फास्फेट और अमोनिया का स्तर तय मानक के अनुरूप नहीं है। इसके विपरीत डीपीसीसी की जून की रिपोर्ट में फेकल कोलीफार्म सहित अन्य प्रदूषण की मात्रा कम है। पानी में फेक कोलीफार्म का मान्य स्तर 500 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) प्रति 100 मिलीलीटर है। यह संख्या 2500 से अधिक होने पर पानी उपयोग लायक नहीं रह जाता है। इसके विपरीत कई एसटीपी में य़ह संख्या करोड़ों में है।
दिल्ली के एसटीपी के मानक की जांच के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक समिति गठित की थी। समिति ने सभी एसटीपी का निरीक्षण करने के बाद सितंबर में कोर्ट को रिपोर्ट दी थी। समिति ने एसटीपी में सीवेज उपचार प्रक्रिया में कमियों को उजागर किया है। उसकी रिपोर्ट के अनुसार एसटीपी में सीवेज उपचार के मानकों का सही तरह से पालन नहीं हो रहा है। उनकी निगरानी की भी उचित व्यवस्था नहीं है। कई संयंत्रों से निकलने वाला पानी गंदे नाले में डाला जा रहा है।
अर्थ वारियर्स के पंकज का कहना है कि दो सरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट में इस तरह से अंतर चिंताजनक है। सीपीसीबी की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि एसटीपी सही तरह से काम नहीं कर रहे हैं। इनके रखरखाव में भी कमी है। सरकार को इन्हें संचालित करने वाली एजेंसियों के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए। एसटीपी का गंदा पानी यमुना में मिलकर उसे दूषित कर रहे हैं।
पानी का नमूना लेने की प्रक्रिया व समय के अनुसार परिणाम में बदलाव संभव है। लेकिन, यह बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। डीपीसीसी द्वारा निर्धारित मानक के अनुरूप नमूने लेकर उसकी जांच कर रिपोर्ट तैयार की जाती है। मानक के अनुरूप काम नहीं करने वाले एसटीपी के बारे में भी जानकारी दी जाती है। अदालत के आदेश या अन्य कारणों से कई बार सीपीसीबी द्वारा भी नमूने लेकर उसकी जांच की जाती है। पिछले छह माह में एसीटीपी के उन्नयन को लेकर बहुत काम हुए हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता भी सुधरी है।
-अनिल गुप्ता, सदस्य डीपीसीसी
डीपीसीसी और सीपीसीबी की जून की रिपोर्ट में फेकल कोलीफार्म की मात्रा
| एसटीपी | डीपीसीसी | सीपीसीबी |
| सेन नर्सिंग होम | 110 करोड़ | 470 करोड़ |
| पप्पन कलां फेज एक | 280 करोड़ | 1.60 करोड़ |
| नजफगढ़ | 81 लाख | 1.30 लाख |
| रिठाला फेज एक | 81 | 5400 |
| रिठाला फेज दो | 170 लाख | 2.60 लाख |
| निलोठी फेज एक | 310 हजार | 11 हजार |
| रोहिणी | 170 लाख | 2.60 लाख |
| यमुना विहार फेज़ दो | 140 करोड़ | 2.20 करोड़ |
| ओखला फेज छह | 270 लाख | 2.70 लाख |
| कोंडली फेज दो | 190 लाख | 25 लाख |
यह भी पढ़ें- मुनक नहर एलिवेटेड रोड अब कश्मीरी गेट तक, PWD बनाएगा 4 KM लंबी सुरंग; सुगम होगा दिल्ली-हरियाणा का सफर

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।