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    सिर्फ BS-6 वाहनों को ही मिली हरी झंडी, GRAP-4 के तहत दिल्ली में लाखों पुरानी गाड़ियों पर रोक

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 05:43 PM (IST)

    दिल्ली में GRAP-4 के तहत सिर्फ BS-6 वाहनों को ही चलने की अनुमति दी गई है। लाखों पुरानी गाड़ियों पर रोक लगा दी गई है। यह फैसला प्रदूषण नियंत्रण के प्रय ...और पढ़ें

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    दिल्ली में प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए BS-6 इंजन वाले वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति दी गई है। फाइल फोटो

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली में गंभीर प्रदूषण और हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति को देखते हुए दिल्ली सरकार ने सख्त पाबंदियां लागू की हैं। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि ये फैसले लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए लिए गए हैं। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि गुरुवार सुबह, 18 दिसंबर से, दूसरे राज्यों में रजिस्टर्ड सिर्फ़ BS-6 गाड़ियों को ही दिल्ली में आने की इजाजत होगी।

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    BS-VI (भारत स्टेज-6) क्या है?

    BS-VI भारत के वाहन उत्सर्जन मानक हैं, जो यूरोपीय मानकों (Euro-6) पर आधारित हैं। ये मानक 2020 से लागू हुए और वाहनों से निकलने वाले प्रदूषकों जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), पार्टिकुलेट मैटर (PM), हाइड्रोकार्बन (HC) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की मात्रा को काफी कम करते हैं। भारत सरकार ने 2016 में घोषणा की कि BS-V को छोड़कर सीधे BS-VI लागू किया जाएगा, ताकि प्रदूषण तेजी से नियंत्रित हो सके।

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    दिल्ली-NCR में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर लगेगा बैन, सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी

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    केवल BS-VI वाहनों को दिल्ली में एंट्री क्यों?

    दिल्ली में सर्दियों में प्रदूषण गंभीर स्तर (Severe) पर पहुंच जाता है। GRAP (Graded Response Action Plan) के स्टेज III और IV लागू होने पर (दिसंबर 2025 में लागू), बाहर से आने वाले वाहनों (प्राइवेट और कमर्शियल दोनों) पर सख्ती की गई है। 18 दिसंबर 2025 से केवल BS-VI कंप्लायंट वाहन (पेट्रोल/डीजल), CNG, LNG या इलेक्ट्रिक वाहनों को ही दिल्ली में प्रवेश की अनुमति है, क्योंकि वाहन दिल्ली के प्रदूषण में 30-40% योगदान देते हैं। पुराने BS-III/BS-IV वाहन ज्यादा NOx और PM छोड़ते हैं, जो स्मॉग बढ़ाते हैं।

    गौरतलब है कि (BS4 vsBS6) भारत में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने 2000 में, यानी दो दशक पहले, इंजनों से होने वाले एयर पॉल्यूशन को कंट्रोल करने के लिए भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड्स (BSES) शुरू किए थे। ये स्टैंडर्ड पूरी तरह से यूरोपियन स्टैंडर्ड्स पर आधारित हैं।

    इन नियमों के तहत, गाड़ी बनाने वाली कंपनियों को ऐसे इंजन बनाने होते हैं जो BSES द्वारा तय किए गए एमिशन टेस्ट पास करें। दूसरी ओर, तेल कंपनियों से उम्मीद की जाती है कि वे फ्यूल को इस तरह से रिफाइन करें कि उसमें सल्फर की मात्रा कम हो।