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    क्या होता है सजा निलंबन? कुलदीप सिंह सेंगर केस में मिले फैसले को समझिए; फरलो और पैरोल में भी है बड़ा अंतर

    Updated: Wed, 24 Dec 2025 01:39 PM (IST)

    सजा निलंबन एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें अदालत किसी दोषी की सजा को कुछ समय के लिए रोक देती है। कुलदीप सिंह सेंगर मामले के संदर्भ में, यह समझना महत्वपू ...और पढ़ें

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    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2017 के उन्नाव दुष्कर्म मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व भाजपा नेता कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को अपील लंबित रहने तक निलंबित कर दिया है।

    सख्त शर्तों के साथ उन्हें जमानत देने का आदेश दिया है। हालांकि, पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में 10 साल की सजा से जुड़ी याचिका लंबित होने के कारण सेंगर फिलहाल जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। इस फैसले के बाद आम लोगों के मन में सवाल उठ रहा है, आखिर ‘सजा निलंबन’ होता क्या है?

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    सजा निलंबन क्या है?

    जब कोई दोषी अपनी सजा के खिलाफ अपील करता है, तो अदालत उसके मामले की सुनवाई पूरी होने तक उसकी सजा पर अस्थायी रोक लगा सकती है। इसी ाको सजा निलंबन (Suspension of Sentence) कहा जाता है।

    इसका मतलब यह नहीं कि आरोपी निर्दोष हो गया है। बल्कि इसका अर्थ सिर्फ इतना है कि सजा पर फिलहाल अमल नहीं होगा। आरोपी तय शर्तों के तहत बाहर रह सकता है। अगर अपील खारिज हो गई, तो सजा फिर से लागू हो जाएगी। कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में भी यही हुआ है।

    पैरोल और फरलो को भी जानें

    हाल के दिनों में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में जमानत, पैरोल और फरलो जैसे शब्द सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन आम लोगों के लिए आज भी ये तीनों शब्द एक जैसे लगते हैं। जबकि हकीकत यह है कि इन तीनों की कानूनी प्रकृति, उद्देश्य और प्रक्रिया पूरी तरह अलग-अलग होती है।

    एडवोकेट अरविंद कुमार अग्निहोत्री के मुताबिक, इन व्यवस्थाओं का मकसद सिर्फ राहत देना नहीं, बल्कि न्याय और मानवता के बीच संतुलन बनाए रखना है।

    जमानत: सजा से पहले की राहत

    जमानत उस व्यक्ति को मिलती है जिस पर मुकदमा चल रहा होता है, लेकिन अभी दोषी करार नहीं दिया गया है। अदालत आरोपी को कुछ शर्तों के साथ जेल से बाहर रहने की अनुमति देती है, ताकि वह अपना बचाव कर सके और ट्रायल में सहयोग देता रहे।

    पैरोल: आपात स्थिति में बाहर जाने की छूट

    पैरोल केवल सजायाफ्ता कैदियों को मिलती है। माता-पिता की मृत्यु, परिवार में गंभीर बीमारी या बच्चे की शादी जैसे विशेष हालात में राज्य सरकार या जेल प्रशासन कुछ दिनों के लिए कैदी को बाहर जाने की अनुमति देता है।

    फरलो: अच्छे व्यवहार का इनाम

    फरलो भी सजायाफ्ता कैदियों को मिलती है, लेकिन इसके लिए किसी आपात कारण की जरूरत नहीं होती। यह कैदी के अच्छे आचरण और अनुशासन के आधार पर दी जाती है ताकि वह मानसिक रूप से खुद को समाज से जोड़ सके।

    इन टर्म को भी समझिए

    अस्थायी जमानत: गंभीर बीमारी या सर्जरी जैसे मामलों में।

    हाउस अरेस्ट: जेल की जगह घर पर निगरानी में रहना।

    मेडिकल रिहाई: जानलेवा बीमारी के इलाज के लिए।

    ओपन जेल ट्रांसफर: दिन में बाहर काम, रात को जेल वापसी।

    रिमिशन या प्री-मैच्योर रिलीज: अच्छे आचरण पर सजा में कटौती

    एस्कॉर्टेड लीव: पुलिस सुरक्षा में सीमित समय के लिए बाहर ले जाना

    हालांकि जमानत, पैरोल और फरलो को एक तराजू में तौलना गलत है। जहां जमानत आरोपी का संवैधानिक अधिकार है, वहीं पैरोल मानवीय आधार पर राहत और फरलो सुधार की दिशा में एक कदम माना जाता है। इन प्रावधानों का उद्देश्य सिर्फ जेल से बाहर निकालना नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था को अधिक संवेदनशील और संतुलित बनाना है।

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