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    ताजी सब्जियां उगाकर अपनी जिंदगियां बदल रहीं महिलाएं, लोगों के लिए प्रेरणा बनी ये नई पहल

    Updated: Thu, 04 Dec 2025 11:20 AM (IST)

    झुग्गी-बस्तियों में महिलाएं ताजी सब्जियां उगाकर अपनी जिंदगियां बदल रही हैं। 17 वर्षीय राघव राय की पहल से प्रेरित होकर 40 से अधिक परिवार अपने घरों की छ ...और पढ़ें

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    निजामुददीन झुग्गी बस्ती में अपने छत पर तैयार सब्जी को दिखाती अफरोज जमाल। जागरण

    शशि ठाकुर, नई दिल्ली। घर में उगी ताजी सब्जियों का स्वाद अलग होने के साथ ही सब्जियों का खर्च भी कम हो गया है। पहले हम लोग सारी सब्जियां बाजार से खरीदते थे, लेकिन पिछले दो वर्ष से अधिकतर हरी सब्जियों घरों में खुद ही उगा रहे हैं। निजामुद्दीन निवासी परवीन ने बताया कि इस बस्ती में लगभग 40 घर ऐसे हैं। जो अपनी सब्जियां खुद उगा रहे हैं।

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    बस्ती की छतों पर उग रही खुशियां

    दिल्ली के स्लम क्षेत्र में यह कमाल 17 वर्षीय राघव राय ने कर दिखाया है। उन्होंने अपनी मेहनत और लग्न से यह साबित कर दिखाया है कि जैविक खेती के लिए अधिक जमीन की आवश्यकता नहीं है। यह घर के छोटे सी जगह जैसे छत और बालकनी पर भी कर सकते हैं। राघव राय निजामुद्दीन के स्लम क्षेत्र को हरे-भरे सब्जियों के बाग में बदल रहे हैं।

    निजामुद्दीन वेस्ट निवासी राघव राय का कहना है कि उन्होंने इसकी शुरुआत अक्टूबर 2023 में अपने घर के किचन गार्डन से प्रेरणा लेकर इस मुहिम की शुरुआत की। इस मुहिम से दो वर्षो में सराय काले खां, आली गांव (सरिता विहार) और कुसुमपुर पहाड़ी, खान बस्ती और रोहिनी बस्ती तक करीब 40 से अधिक परिवार जुड़े हुए है। जो अपने छतों पर किचन गार्डनिंग के माध्यम से पोषण व खुशियां उगा रहे हैं।

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    सिलाई सेंटर में काम करने वाली आफरोज जमाल का कहना है कि उनके घर के छोटे से बाल्टी गार्डन से अब इतना करेला, टमाटर, पालक, लौकी और मिर्च उग जाता है कि रोजाना खाने में काम आ सके। इससे पैसों की बचत हो रही हैं। यह सब बस्ती गार्डन्स ऑफ होप की वजह से संभव हो पाया है। जो परिवारों को हरी सब्जी खुद उगाने में मदद करती है। राघव की इस मुहिम से प्रेरित होकर कई स्थानीय लोग, विशेषज्ञ और सामाजिक संस्था भी मदद कर रहे हैं।

    ग्रो-बैग, खाद, बीज देकर कराते है वर्क-शॉप

    बस्ती गार्डन्स ऑफ होप परिवारों को बीज, मिट्टी, खाद और ग्रो- बैग देते हैं और हफ्ते में एक बार बागवानी, खाद बनाने और मिट्टी की सेहत पर वर्क-शॉप भी कराते हैं। आज इन बस्तियों की महिलाएं अपने-अपने इलाके के समुदाय की गार्डनर बन गई हैं।