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    'सभ्य समाज में भ्रष्टाचार कैंसर की तरह है, जो...', सफदरजंग सहकारी आवास समिति घोटाले में 13 दोषियों को सजा

    Updated: Wed, 05 Nov 2025 04:38 PM (IST)

    दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने 25 साल पुराने सफदरजंग सहकारी आवास समिति घोटाले में 13 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। कोर्ट ने भ्रष्टाचार को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया और कहा कि इससे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था हिल सकती है। अदालत ने माना कि अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जीवाड़ा किया गया और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।

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    राउज एवेन्यू कोर्ट की विशेष न्यायाधीश की अदालत में 25 साल पुराने केस में सुनाया फैसला।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राउज एवेन्यू स्थित विशेष न्यायाधीश की अदालत ने 25 वर्ष पुराने सफदरजंग सहकारी आवास समिति घोटाले में 13 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई है। अदालत ने कहा कि सभ्य समाज में भ्रष्टाचार एक कैंसर की तरह है, जो समय रहते रोका न जाए तो पूरे तंत्र को जड़ से खोखला कर देता है।

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    विशेष न्यायाधीश प्रशांत शर्मा ने कहा कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र के विपरीत है। यदि इसे प्रारंभिक स्तर पर नहीं रोका गया तो यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को हिला सकता है। कोर्ट ने कहा कि हर सदस्य ने दिल्ली में सस्ते मकान का सपना देखा और उसी लालच ने सबकी जुबान बंद कर दी।

    प्रत्येक आरोपी ने यह दिखाने की कोशिश की मानो सब कुछ नियमों के अनुसार हो रहा हो। कोर्ट ने टिप्पणी की कि दिल्ली जैसे महानगर में अपना घर पाना हर नागरिक का सपना है, पर समस्या तब उत्पन्न होती है जब उस सपने को पूरा करने के लिए लोग झूठ, फर्जीवाड़े और नैतिक पतन का सहारा लेने लगते हैं।

    इस प्रक्रिया में सच्चाई और ईमानदारी की बलि चढ़ जाती है और पूरा समाज भ्रष्टाचार की दलदल में धंस जाता है। अदालत ने कहा कि यह मामला यह सिद्ध करता है कि भ्रष्टाचार चाहे कितना भी पुराना क्यों न हो, न्याय से बचना असंभव है।

    अदालत ने कहा कि समिति के दस्तावेजों में कई स्थानों पर खाली जगहें छोड़ी गईं, तारीखों में विरोधाभास पाया गया, चुनाव नियमित रूप से नहीं हुए और लेखा परीक्षण भी समय पर नहीं कराया गया। कई गवाहों ने अदालत में बयान दिया कि उन्होंने समिति के सदस्य बनने के लिए धन जमा कराया था, लेकिन उन्हें न तो आवास मिला और न ही धन वापस किया गया।

    अदालत ने पाया कि रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों ने समिति के रिकार्ड में मौजूद साफ हेराफेरी को जानबूझकर नजरअंदाज किया। अधिकारियों ने फर्जी रिकार्ड को सही मान लिया क्योंकि वे अन्य आरोपियों की मदद करना चाहते थे ताकि समिति को अवैध रूप से पुनर्जीवित किया जा सके।

    इन्हीं अधिकारियों ने 90 फर्जी सदस्यों की सूची को मंजूरी दी और उसे दिल्ली विकास प्राधिकरण को भेजा, जिसके बाद धीरपुर क्षेत्र में पांच हजार वर्गमीटर भूमि समिति के नाम आवंटित कर दी गई।

    अदालत ने 11 आरोपियों करमवीर सिंह, नरेंद्र कुमार, महानंद शर्मा, पंकज मदान, अवधनी शर्मा, आशुतोष पंत, सुदर्शन टंडन, मनोज वत्स, विजय ठाकुर, विकास मदान और पूनम अवस्थी को पांच वर्ष की सश्रम कैद और जुर्माने की सजा सुनाई।

    दो अन्य दोषियों सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी गोपाल दीक्षित को एक वर्ष और 90 वर्षीय नरेंद्र धीर को दो वर्ष की कैद व जुर्माने की सजा सुनाई। दोषियों में नौ सदस्य समिति के थे और तीन अधिकारी सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार कार्यालय के थे।

    यह मामला वर्ष 2000 में दर्ज हुआ था। आरोप था कि इन लोगों ने जाली दस्तावेज तैयार कर और अपने परिजनों के नाम समिति में जोड़कर दिल्ली विकास प्राधिकरण व सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार कार्यालय को धोखा दिया और रियायती दरों पर सरकारी भूमि हासिल की।

    सीबीआई ने इस मामले में 13 फरवरी 2008 को आरोपपत्र दाखिल किया था। सीबीआई की जांच में सामने आया कि आरोपियों ने अपने परिवारजनों और रिश्तेदारों के नाम समिति में जोड़कर रिकार्ड में हेराफेरी की।

    70 और 80 के दशक में दिल्ली में कई आवास समितियां पंजीकृत हुई थीं, लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण से भूमि न मिलने के कारण वे निष्क्रिय हो गई। नियमों में ऐसे निष्क्रिय समितियों को पुनर्जीवित करने की व्यवस्था थी, जिसे कुछ बिल्डरों ने अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर गलत तरीके से इस्तेमाल किया और भारी आर्थिक लाभ उठाया।

    दिल्ली हाई कोर्ट ने वर्ष 2005 में ऐसे 135 मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने के आदेश दिए थे। सफदरजंग सहकारी आवास समिति का मामला भी इन्हीं में शामिल था।

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