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पैकेज--वोट बैंक की राजनीति ने रेल को किया बे-पटरी

30 पीकेटी- 8 एवं 9 - रेलवे की जमीन पर बसी हैं करीब 60 हजार झुग्गी - जिनमें से 33 हजार झ्

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Mar 2018 07:16 PM (IST)Updated: Fri, 30 Mar 2018 07:16 PM (IST)
पैकेज--वोट बैंक की राजनीति ने रेल को किया बे-पटरी

30 पीकेटी- 8 एवं 9

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- रेलवे की जमीन पर बसी हैं करीब 60 हजार झुग्गी

- जिनमें से 33 हजार झुग्गी बिल्कुल रेलवे लाइनों के इर्द गिर्द

-कीर्तिनगर, मायापुरी, दयाबस्ती में तो रेलवे की लाइन ही झुग्गियों के अंदर चली गई

- अवैध कारोबार का गढ़ बन गई हैं झुग्गी

- रेलवे ने जब भी हटाने का प्रयास किया राजनीति आड़े आ गई

नवीन गौतम, बाहरी दिल्ली: दिल्ली में रेलवे की जिस जमीन पर तीन साल पहले 45 हजार के करीब झुग्गी बसीं थी आज उनकी संख्या 60 हजार के करीब पहुंच गई है। जिनमें साठ हजार ही बिजली के कनेक्शन हैं जिन्हें बहुत ही रियायती दर पर बिजली दी जा रही है। इनमें तकरीबन 33 हजार झुग्गियां तो ऐसी हैं जो रेलवे लाइन के बेहद करीब हैं। जिससे शताब्दी और राजधानी सहित जो भी ट्रेनें गुजरती हैं उसकी रफ्तार धीमी करनी पड़ती है। जब ट्रेन की स्पीड कम होती है तो उस वक्त अक्सर रेलगाड़ियों में स्नै¨चग और अन्य अपराध को अपराधी अंजाम देते हैं। एनजीटी ने अपने आदेश में रेलवे को कई बार फटकार लगाते हुए रेलवे पटरियों के किनारे गंदगी को साफ करने के आदेश दिए हैं।। मगर इसके विपरीत कई झुग्गी बस्ती तो अपराधियों की शरण स्थली बन गई हैं और इनके आसपास से गुजरना लोगों के लिए खतरे से खाली नहीं होती। नशे के कारोबार का गढ़ बन चुकी कई बस्तियों में तो पुलिस कर्मी भी जाने से कतराते हैं।

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सबसे ज्यादा झुग्गी इन क्षेत्रों में

कीर्ति नगर, दिल्ली कैंट, शकूरबस्ती, दयाबस्ती, मायापुरी, जल विहार, तिलक ब्रिज, पुराना सीलमपुर, आजादपुर, मंगोलपुरी, नांगलोई शाहदरा इलाके में ही करीब 45 हजार झुग्गियां बसी हुई हैं जो कि रेलों की स्पीड पर ब्रेक लगा रही हैं। इन्हीं में वह 33 हजार झुग्गियां भी शामिल हैं जो रेलवे लाइन के संवेदनशील समझे जाने वाले दोनों तरफ के पन्द्रह-पन्द्रह मीटर जमीन में बसी हुई हैं। कीर्तिनगर, दयाबस्ती, मायापुरी में तो रेलवे की लाइन के ऊपर ही झुग्गी बसा दी गई हैं जिनसे रेलवे अपनी पटरी तो नहीं बचा पाया उल्टे रेल जरूर इन पर चलानी बंद कर दी। रेलवे के ही आंकड़ों के मुताबिक रेलवे की जिस जमीन पर यह झुग्गी बस्ती बसी हैं वह करीब छह लाख वर्ग मीटर के करीब हैं और किलोमीटर के हिसाब से इसका दायरा करीब 79 किलोमीटर है। रेलवे की जमीन पर सबसे अधिक अतिक्रमण उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में है और उसके बाद दूसरे नंबर पर उत्तरी जिला आता है।

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शकूरबस्ती के बाद बैकफुट पर रेलवे

वर्ष 2015 में शकूर बस्ती रेलवे ने अपनी जमीन से झुग्गियों को हटाने का काम शुरू किया तो इसमें राजनीति आड़े आ गई। तब आधी रात को अर¨वद केजरीवाल पहुंच गए थे तो दिन के वक्त राहुल गांधी भी पहुंचे। पहुंचने की प्रतिस्पर्धा और बयानी हमले खूब हुए। संसद ने वर्ष 2009 में दिल्ली के लिए विशेष बिल पारित किया

जो वर्ष 2011 के लिए था, जिसकी वैधता को समय के अनुसार बढ़ाया जाता रहा। इसके अनुसार 2006 से पहले के किसी भी अतिक्रमण या झुग्गी को हटाया नहीं जा सकता, बाद में यह अधिक भी बढ़ाई जाती रही। एक्ट के मुताबिक हटाने से पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था करनी होगी। इसी कानून का हवाला देकर शकूरबस्ती मामले में तब दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलवे से कहा कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था किए बिना उन्हें न हटाया जाए। तब से आज तक कोई व्यवस्था ही नहीं हुई।

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झुग्गी पक्के मकान में तब्दील हुई

वर्ष 2011 में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड ने एक एक्शन प्लान बनाया कि वर्ष 2015 तक दिल्ली को झुग्गी मुक्त बना देंगे। इसके एक्ट में लिखा हुआ है कि बोर्ड पहले सरकार से सलाह-मशविरा कर झुग्गी झोपड़ी को दूसरी जगहों पर बसायेगा। 2018 तो बीत रहा है लेकिन रेलवे की जमीन आज तक झुग्गियों से मुक्त नहीं हुई अपितु पटेल नगर, दयाबस्ती आदि इलाकों में रेलवे की जमीन पर झुग्गियों की संख्या में इजाफा ही हुआ है। कच्ची झुग्गी पक्के मकानों में तब्दील की जा रही हैं।

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गुमराह कर रही दिल्ली सरकार

दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनने के बाद सरकारी बजट का बहुत बड़ा हिस्सा इन झुग्गी बस्तियों में ही खर्च हो रहा है। सरकार ने इन झुग्गी वालों को मकान देने का वायदा किया था लेकिन उन्हें मकान देने के बजाय उन्हें वोट बैंक के रूप में ही इस्तेमाल करने के मकसद से उनकी झुग्गी बस्तियों में ही मोहल्ला क्लीनिक, सीवर लाइन, पानी की कथित व्यवस्था के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। मगर जो झुग्गी वाले इन माहौल से निकल मकानों में जाने के लिए तैयार हैं उनके लिए सरकार की आवास नीति तो है लेकिन उस पर अमल करने की न कोई नीति है और न ही नीयत है। वजह, जिन इलाकों में यह झुग्गी बस्ती बसी हैं वह कई विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं।

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झुग्गियों में चलते कारखाने

इन झुग्गी बस्तियों में नेता अपनी नेता गिरी चमकाते हैं तो कारोबारी भी इनका पूरा लाभ उठाते हैं। झुग्गी बस्तियों के लिए सस्ती बिजली, मुफ्त पानी, सब कुछ मुफ्त का लाभ कई इलाकों में कारोबारी भी उठा रहे हैं। इनमें से बहुत से लोगों ने झुग्गी बना लीं ओर इनमें दिन के वक्त सस्ती बिजली पर कारखाने चलते हैं तो रात को झुग्गी लेबर के सोने के काम आती हैं। कीर्ति नगर इलाके में फर्नीचर बनाने का बहुत बड़ा कारोबार इन झुग्गी बस्तियों में ही हो रहा है तो दया बस्ती, जखीरा में खराद, जींस रंगाई तक का प्रतिबंधित कारोबार चल रहा है।

समाप्त- नवीन, 30 मार्च।


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