मनी लाॅन्ड्रिंग केस में आरोपी न होने पर भी PMLA के तहत हो सकती है तलाशी, ED की याचिका पर दिल्ली HC का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने मनी लाॅन्ड्रिंग मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि पीएमएलए के तहत तलाशी के लिए अभियोजन शिकायत में नाम होना जरूरी नहीं है। यह फैसला ईडी की याचिका पर आया, जिसमें दिवंगत अमलेन्दु पांडेय के परिसर से जब्ती को सही ठहराया गया। अदालत ने कहा कि तलाशी उन लोगों के परिसरों में भी हो सकती है जो अपराध में सीधे तौर पर शामिल न हों, यदि मनी लाॅन्ड्रिंग की आशंका हो।
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विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। मनी लाॅन्ड्रिंग से जुड़े मामले में तलाशी लेने के Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्णय पारित किया है।
पीएमएलए अपीलेड ट्रिब्यूनल के आदेश के विरुद्ध प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन शिकायत में नाम न होने पर मनी लाॅन्ड्रिंग मामले में पीएमएलए के तहत तलाशी हो सकती है।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि तलाशी की प्रावधान उन पर भी लागू होता है, जो संबंधित अपराध या मनी लाॅन्ड्रिंग का अपराधी न हों।
अदालत ने कहा कि धारा-17 यह नहीं कहती कि तलाशी केवल उस व्यक्ति के परिसरों में की जा सकती है, जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई हो या रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट कोर्ट को भेजी गई हो।
अदालत ने कहा कि किसी विशिष्ट परिस्थिति में, बगैर किसी आपराधिक इरादे के एक व्यक्ति अपराध से प्राप्त आय का प्राप्तकर्ता हो सकता है और इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा व्यक्ति किसी पूर्व शिकायत या रिपोर्ट में आरोपी होना चाहिए।
अदालत ने उक्त टिप्पणी दिवंगत अमलेन्दु पांडेय के परिसर से जब्त नकदी और इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों को डी-फ्रीज करने के ट्रिब्यूनल के निर्देश के विरुद्ध ईडी की अपील याचिका पर की। यह मामला हवाला ऑपरेटर हसन अली खान से संबंधित मनी लाॅन्ड्रिंग मामले से जुड़ा था।
अभियोजन की शिकायत हसन खान के खिलाफ 2011 में ही दायर की गई थी। अमलेन्दु पांडेय ने उनसे की गई जब्ती को वापस करने की मांग को लेकर ट्रिब्यूनल में वाद दायर किया था।
ट्रिब्यूनल के आदेश को रद करते हुए पीठ ने कहा कि ईडी ने इस मामले में तलाशी इसलिए ली थी क्योंकि संबंधित अधिकारी को पता था कि मनी लांड्रिंग गतिविधियां अभी भी चल रही थीं।
पीठ ने यह भी देखा कि तलाशी फरवरी 2016 की थी और यह 2011 में पहले से अदालत में भेजी गई शिकायत के परिणामस्वरूप हुई थी। अदालत ने मामले को वापस ट्रिब्यूनल को भेजते हुए अपील पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।

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