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    दिल्ली में कबूतरों को दाना खिलाने वाले हो जाएं सावधान! फैल रही ये गंभीर बीमारी, छूना भी मना!

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 08:14 AM (IST)

    मुंबई कोर्ट के जुर्माने से पता चलता है कि कबूतरों को दाना खिलाना एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता बन गया है। दिल्ली में भी यह समस्या विकराल है, जहाँ ...और पढ़ें

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    मुंबई कोर्ट के जुर्माने से उजागर हुआ कि कबूतरों को दाना खिलाना एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा बन गया है। फाइल फोटो

    अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। मुंबई की एक अदालत ने कबूतरों को दाना खिलाने पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह बताता है कि कबूतरों को दाना खिलाने की प्रथा चिंता का कारण बन गई है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी भी इस समस्या से अछूती नहीं है। यहां भी, विभिन्न जगहों पर कबूतरों को दाना खिलाने की प्रथा एक बड़ा मुद्दा बन गई है।

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    डॉक्टरों और पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनियों के बावजूद, दिल्ली नगर निगम (MCD) कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है। यही कारण है कि जून में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के नोटिस के बाद भी दिल्ली में जमीन पर कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है।

    प्रतिबंध के नाम पर निगम की कार्रवाई सिर्फ सलाह तक ही सीमित है। विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक दाना खिलाने पर प्रभावी प्रतिबंध, सख्त कानूनी प्रवर्तन और जन जागरूकता अभियान एक साथ लागू नहीं किए जाते, तब तक कबूतरों से जुड़ा यह संकट और गहराता जाएगा।

    कबूतर शहरी जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी अनियंत्रित आबादी और उन्हें दाना खिलाने की अंधविश्वास पर आधारित प्रथा एक गंभीर स्वास्थ्य, पर्यावरणीय और आर्थिक संकट बन गई है। दाना खिलाना कम करना, जागरूकता अभियानों को तेज़ करना और कानून का सख्ती से पालन करना ही इसे रोकने के एकमात्र तरीके हैं।

    कबूतरों को दाना खिलाने से फैल रही बीमारियां

    दिल्ली में कबूतरों की कोई आधिकारिक गिनती नहीं है, लेकिन समय-समय पर किए गए पर्यावरणीय अध्ययनों के आधार पर, NCR में उनकी संख्या 10 लाख से ज्यादा होने का अनुमान है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, कबूतरों की बीट और पंखों से फैलने वाली सिटाकोसिस जैसी बीमारियां फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा रही हैं।

    कबूतरों की बीट और पंखों के सूक्ष्म कण हवा में मिलकर मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, जिससे श्वसन प्रणाली को गंभीर नुकसान होता है। दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण के बीच यह खतरा और बढ़ गया है। इससे बच्चों और बुजुर्गों के लिए जोखिम बढ़ गया है। इसके बावजूद, सार्वजनिक जगहों पर कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा बेरोकटोक जारी है, और इस संबंध में प्रशासनिक उदासीनता सवाल खड़े कर रही है।

    NGT नोटिस, कार्रवाई की धीमी गति

    सार्वजनिक स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए, NGT ने जून में दिल्ली सरकार, MCD, NDMC और लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी किए थे। इसके बावजूद, कबूतरों को दाना खिलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध या सख्त निगरानी प्रणाली अभी तक लागू नहीं की गई है।

    MCD ने सार्वजनिक जगहों पर कबूतरों को दाना खिलाने के संबंध में एक सलाह जारी की है और कहा है कि उल्लंघन करने पर 200 से 500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। हालांकि, अभी तक कोई साफ़ और पब्लिक डेटा सामने नहीं आया है कि क्या इस प्रावधान को कॉर्पोरेशन ने लागू किया है या अब तक कितने चालान जारी किए गए हैं।

    शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर कबूतरों के लिए सुरक्षित पनाहगाह

    पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ते फ्लाईओवर, ऊंची इमारतें, पुराने खंडहर और शिकारी पक्षियों की कमी ने दिल्ली में कबूतरों को एक सुरक्षित पनाहगाह दी है। इसके अलावा, लोगों की उन्हें खाना खिलाने की आदत ने उनकी आबादी को तेज़ी से बढ़ाया है।

    सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं, आर्थिक नुकसान भी

    कबूतरों की बीट एसिडिक होती है, जो इमारतों, स्मारकों और गाड़ियों को नुकसान पहुंचाती है। घरों में जाल, स्पाइक्स लगाने और बार-बार सफाई का खर्च आम लोगों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाल रहा है। सरकार भी हर साल ऐतिहासिक स्मारकों की सफ़ाई और रखरखाव पर भारी रकम खर्च कर रही है।

    ‘कबूतरों से फैलने वाली सबसे खतरनाक बीमारी सिटाकोसिस है। यह क्लैमाइडिया सिटासी नामक बैक्टीरिया से होने वाला इन्फेक्शन है, जो कबूतरों की बीट, पंखों और सांस की नली के स्राव में पाया जाता है।’
    -डॉ. राहुल शर्मा, एडिशनल डायरेक्टर (पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर), फोर्टिस हॉस्पिटल

    ‘सिटाकोसिस के अलावा, कबूतरों से कई अन्य गंभीर बीमारियां भी फैल रही हैं, जिनमें हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनिटिस (HP), क्रिप्टोकोकोसिस और हिस्टोप्लास्मोसिस शामिल हैं। ये बीमारियां तेज़ी से फेफड़ों में सूजन, सांस लेने में तकलीफ़, अस्थमा और निमोनिया का कारण बनती हैं।’ -डॉ. गिरीश त्यागी, प्रेसिडेंट, दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन

    “कुछ जोन में, अधिकारियों और ज़ोनल डिप्टी कमिश्नरों ने इस पर ट्रायल बेसिस पर काम किया था। हम देखेंगे कि इसे क्यों बंद किया गया और इसे दूसरे जोन में कैसे लागू किया जा सकता है। पब्लिक हेल्थ और पशु चिकित्सा विभागों के साथ चर्चा की जाएगी।”
    -राजा इकबाल सिंह, मेयर, दिल्ली