दिल्ली के अस्पताल में मृत शरीर में NRP तकनीक: एशिया में पहली बार अंगों को जीवित रखने के लिए हुआ सफल प्रयोग
एशिया में पहली बार, डॉक्टरों ने एक मृत शरीर में एनआरपी तकनीक का उपयोग करके अंगों को जीवित रखने के लिए ब्लड सर्कुलेशन जारी रखा। यह तकनीक अंग प्रत्यारोपण के लिए एक नया मार्ग खोलती है, खासकर उन मामलों में जहां हृदय गति रुकने से मृत्यु हुई हो। मस्तिष्क आघात से मृत व्यक्ति के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को सफलतापूर्वक जारी रखा गया, जिससे अंग प्रत्यारोपण के लिए व्यवहार्य बने रहे।

गीता चावला के मृत शरीर के अंगों से पांच लोगों को मिला जीवनदान।
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली। चिकित्सकों के दल ने मृत महिला के शरीर के अंगों से दूसरों को जीवनदान के लिए उनके पेट के अंगों को चार घंटे तक जीवित रखा। अंगों को जीवित रखने के लिए मृतक के शरीर के रक्त संचार शुरू हो, इसके लिए एक्स्ट्राकार्पोरियल मेम्ब्रेन आक्सीजनेटर (ईसीएमओ) से मृत्यु के बाद उनका रक्त संचार फिर से शुरू किया। इसके बाद नार्मोथर्मिक रीजनल पर्फ्यूजन (एनआरपी) तकनीक से पेट के अंग चार घंटे तक जीवित रखे गए।
चिकित्सकों का दावा है कि इस तकनीक का एशिया में पहली बार इस्तेमाल किया गया है।मृत महिला जिनका नाम गीता है, उनका लीवर आइएलबीएस में 48 वर्षीय पुरुष को, दोनों किडनी मैक्स अस्पताल, साकेत में 63 और 58 वर्षीय पुरुषों को प्रत्यारोपित की गईं। कार्निया और त्वचा दान से दो और मरीजों को नई रोशनी व उपचार मिला।
मोटर न्यूरान नामक बीमारी से जूझ रही 55 वर्षीय गीता चावला को पांच नवंबर को सांस लेने में तकलीफ के बाद एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल, द्वारका में भर्ती किया गया। लकवाग्रस्त और बिस्तर पर पड़ी गीता के परिवार ने जीवन रक्षक यंत्र न लगाने का निर्णय लिया। छह नवंबर को शाम हृदय गति रुकने और ईसीजी में लगातार पांच मिनट सपाट रेखा दिखने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
चिकित्सकों ने बताया कि नार्मोथर्मिक रीजनल पर्फ्यूजन (एनआरपी) तकनीक से पेट के अंग चार घंटे तक जीवित रखे गए, ताकि नोट्टो को अंग आवंटित करने का समय मिला।मणिपाल क्रिटिकल केयर मेडिसिन के चेयरमैन डा. श्रीकांत श्रीनिवासन ने कहा कि सामान्य प्रक्रिया में अंग मिनटों में निकालने पड़ते हैं।
एनआरपी से लीवर-किडनी को जीवित रख ट्रांसप्लांट टीम को पर्याप्त समय मिला। मणिपाल आर्गन शेयरिंग एंड ट्रांसप्लांट के कंट्री हेड डा (कर्नल) अवनीश सेठ ने बताया कि वर्ष 2024 में भारत में 1128 ब्रेन डेथ डोनर थे। अब डीसीडी बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कंसोर्टियम ने कम लागत वाला हाइब्रिड ईसीएमओ बनाया। भविष्य में फेफड़े, अग्न्याशय व हृदय दान भी संभव होगा।
भारत में किडनी फेलियर के 1.8 लाख नए मरीज आते हैं, पर 2023 में सिर्फ 13,426 ट्रांसप्लांट हुए। लीवर के लिए 25-30 हजार की जरूरत के मुकाबले 4491, हृदय के हजारों में सिर्फ 221 और कार्निया की 1 लाख मांग के सामने 25 हजार ट्रांसप्लांट ही हो पाए। गीता का दान लाखों इंतजार कर रहे मरीजों के लिए प्रेरणा बन सकता है।

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