तिहाड़ में कैदियों के बीच काम करने वाले NGOs का छिपा एजेंडा तो नहीं? एलजी और गृह मंत्री सूद ने उठाया सवाल
उपराज्यपाल और गृह मंत्री ने जेल में एनजीओ को काम करने की अनुमति देने से पहले उनकी पूरी जांच करने पर जोर दिया है। एनजीओ की विचारधारा, फंडिंग और पिछले रिकॉर्ड पर ध्यान देना जरूरी है। वर्तमान में 21 एनजीओ दिल्ली की जेलों में काम कर रही हैं, लेकिन उनकी निगरानी आवश्यक है क्योंकि जेल में कई गंभीर अपराधों के आरोपी कैदी हैं।

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली। मुंह में राम बगल में छुरी। जेल जैसे संवेदनशील स्थान के लिए इस कहावत के गहरे निहितार्थ हैं। बुधवार को देश की सबसे बड़ी जेल में गोशाला व अन्य योजनाओं का उद्घाटन करने पहुंचे प्रदेश के उपराज्यपाल व गृह मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि जहां 20 हजार कैदी रह रहे हों तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि कैदियों के बीच कौन किस मंशा से आ रहा है।
यह बात उन स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) पर विशेष तौर लागू होती है, जो तिहाड़ में कैदियों के बीच कल्याण से जुड़े कार्यक्रम को लेकर आते हैं। इन स्वयंसेवी संस्थाओं को जेल में काम करने की अनुमति देने से पहले पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहिए कि यहां काम करने के पीछे इनका कोई छिपा हुआ एजेंडा तो नहीं है।
गृह मंत्री आशीष सूद ने कहा कि यहां काम करने वाली जितनी भी स्वयंसेवी संस्थाएं हैं, उनके बारे में हमें पूरी जानकारी होनी चाहिए। उनकी विचारधारा क्या है? क्या उनकी विचारधारा हमारी जेल सुधार के कार्यक्रमों को संचालित करने वाली विचारधारा से साम्य रखती है? इनकी फंडिंग कहां कहां से हो रही है? इनका अभी तक का ट्रैक रिकाॅर्ड कैसा रहा है? ऐसी तमाम बातें हैं, जिन पर गौर करना जरूरी है।
आशीष सूद ने इस बात पर जोर दिया कि जेल ऐसी जगह है जहां तमाम तरह के कैदी हैं। हमारा कार्य कैदियों की नकारात्मकता को दूर उन्हें सकारात्मक बनाकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की है। लेकिन यदि कोई संस्था अपने गलत मंसूबों के साथ यहां आए और नकारात्मक को और नकारात्मक बना दे तो फिर यह विपरीत बात होगी।
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने कहा कि आज पूरे देश में 34 लाख स्वयंसेवी संस्थाएं हैं। कई लोग कहते हैं कि आजकल तो हर घर में संस्थाएं बनी हैं। ऐसे में बहुत जरुरी है कि हम जेल में काम करने को इच्छक स्वयंसेवी संस्थाओं को अनुमति देने से पहले उनकी विश्वसनीयता को लेकर पूरी तरह निश्चिंत हो लें। ये कौन हैं, कहां से आएं हैं, इनकी विचारधारा क्या है। कई संस्थाओं ने एनजीओ की आड़ में देश को नुकसान पहुंचाया है। हमें पूरी तरह सतर्क रहना होगा।
अभी 21 एनजीओ को किया गया अधिकृत
दिल्ली की 16 जेलों में काम करने के लिए अभी कुल 21 स्वयंसेवी संस्थाओं व संगठनों को अधिकृत किया गया है। ये संस्थाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल साक्षरता, शारीरिक क्रियाकलाप, महिला सशक्तिकरण, कानूनी जागरुकता जैसे विषयों पर कैदियों के बीच जाकर काम कर रही हैं।
क्यों है जरूरी
जेल में जेलकर्मियों व सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों को छोड़ दें तो कैदियों से मिलने की सुविधा या तो उनके स्वजन, वकील या फिर किसी स्वयंसेवी संस्थाओं के व्यक्तियों को ही होती है। स्वजन व वकील से मिलने की जगह तय होती है, लेकिन स्वयंसेवी संस्था के सदस्य किसी कार्यक्रम के सिलसिले में जेल की चारदीवारी के भीतर भी जाते हैं।
यहां यदि कोई गलत मंशा लिए चला जाए तो कैदियों को अपने दुष्प्रचार का शिकार बना सकता है। देश की सबसे बड़ी जेल की बात करें तो यहां कई चरमपंथी, दुर्दांत अपराधी या गंभीर अपराध के आरोप में बंद कैदी बड़ी संख्या में है। ऐसे में यहां हर स्तर पर निगरानी जरूरी है।

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