Terror Funding Case: एनआईए की यासीन मलिक के लिए फांसी की मांग, कहा- जुर्म कुबूल कर लेने से सजा कम नहीं होनी चाहिए
दिल्ली उच्च न्यायालय में टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक को मृत्युदंड देने की एनआईए की याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने यासीन मलिक से जवाब मांगा और अगली सुनवाई 10 नवंबर को तय की। सुरक्षा कारणों से यासीन मलिक को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पेश करने का निर्देश दिया गया है। एनआईए ने ट्रायल कोर्ट के उम्रकैद के फैसले के खिलाफ अपील की है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने टेरर फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) प्रमुख Yaseen Malik से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की मृत्युदंड की सजा देने की अपील याचिका पर जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने यासीन मलिक को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया और अगली सुनवाई 10 नवंबर को तय की।
मलिक ने पहले हाई कोर्ट में खुद पेश होकर अपनी दलील देने की इच्छा जताई थी और अधिवक्ता नियुक्त करने से इनकार किया था।
सुरक्षा कारणों से जेल प्रशासन ने उसकी वीडियो कांफ्रेंसिंग से पेशी की अनुमति मांगी थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यासीन मलिक को 10 नवंबर को तिहाड़ जेल से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पेश किया जाए।
इससे पहले 9 अगस्त 202 को भी सुरक्षा कारणों से यासीन को शारीरिक रूप से पेश करने के बजाय वीडियो कांफ्रेंसिंग से पेश करने का आदेश दिया गया था। लेकिन, सोमवार को हुई सुनवाई में उसे वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग से भी नहीं लाया गया और न ही उसने अपना जवाब दाखिल किया।
एनआईए की दलील
एनआईए ने ट्रायल कोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करते हुए दलील दी कि गंभीर आतंकवादी अपराधों के मामलों में केवल इसलिए उम्रकैद नहीं दी जा सकती कि आरोपित ने दोष स्वीकार कर लिया है।
एजेंसी का कहना है कि अगर ऐसे मामलों में मृत्युदंड नहीं दिया गया तो यह सजा नीति को कमजोर करेगा और आतंकियों को बच निकलने का रास्ता देगा।
ट्रायल कोर्ट ने 24 मई 2022 को यासीन मलिक को गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
उसने माना था कि मलिक की गतिविधियां भारत की अवधारणा के मूल पर प्रहार करती हैं और जम्मू-कश्मीर को भारत से जबरन अलग करने के उद्देश्य से की गई थीं।
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