CM रेखा गुप्ता ने अरविंद सिंह लवली को बताया 'यमुनापार का मुख्यमंत्री', Yamunapar Development Board के अध्यक्ष बनें
यमुनापार विकास बोर्ड का पुनर्गठन किया गया है जिसका उद्देश्य दिल्ली के इस क्षेत्र में विकास को गति देना है। गांधीनगर के विधायक अरविंदर सिंह लवली को अध्यक्ष बनाया गया है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने विकास कार्यों के लिए फंड देने का आश्वासन दिया है। बोर्ड में यमुनापार के विधायक और विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि शामिल हैं जो क्षेत्र में विकास की योजना बनाएंगे।

स्वदेश कुमार, नई दिल्ली। किसी कक्षा में जब कोई पढ़ाई में कमजोर होता है, तो उसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। कुछ ऐसा ही यमुनापार के साथ है। सघन आबादी वाला यह क्षेत्र विकास के मामले में हमेशा से पिछड़ा हुआ है।
300 अनधिकृत काॅलोनियों वाले यमुनापार में हर तरफ समस्याएं नजर आती हैं। यमुना नदी दिल्ली को दो भागों में बांटती है। यमुनापार वह दूसरा भाग है।
यही वजह है कि 1993 में दिल्ली में जब विधानसभा गठित हुई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने 1995-96 में इस क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए एक अलग बोर्ड की स्थापना कर दी।
तब विकास के लिए एक-दो करोड़ रुपये मिलते थे। बाद की सरकारों ने इसे जारी रखा। 2013 पहुंचते-पहुंचते बोर्ड का बजट दो सौ करोड़ को पार कर गया था। बाद के वर्षों में यह बोर्ड निष्क्रिय हो गया।
इसके बाद अब मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आधिकारिक रूप से इसके गठन की रूपरेखा पेश कर दी। गांधीनगर के विधायक अरविंदर सिंह लवली को इसका अध्यक्ष बनाया गया है।
गांधीनगर में शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम में सीएम रेखा गुप्ता ने लवली को यमुनापार का सीएम बता दिया। इसके जरिये उन्होंने इस बोर्ड की मजबूती के संकेत दिए।
हालांकि बोर्ड को कितना फंड मिलेगा। यह नहीं बताया गया है, लेकिन मुख्यमंत्री ने मंच से ही लवली से कहा कि आप विकास कीजिए, फंड दिल्ली सरकार देगी। शाम होते-होते मुख्यमंत्री कार्यालय ने बोर्ड के सदस्यों की भी घोषणा कर दी।
यमुनापार का क्षेत्रफल पूरी दिल्ली का 10 प्रतिशत है, लेकिन यहां दिल्ली की एक चौथाई आबादी रहती है। इसकी वजह है कि यहां नियोजित से अधिक अनियोजित काॅलोनियां हैं। इन काॅलोनियों में सुविधाओं का अभाव तो ही है।
घनत्व अधिक होने से समस्याएं भी काफी हैं। सड़कें व गलियां खस्ताहाल हैं। सीवर और पीने के पानी की व्यवस्था भी कई कालोनियां तक नहीं हैं। कूड़ा भी यहां काफी निकलता है, जिसका निस्तारण नहीं हो पाने के कारण गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ खड़ा हुआ है।
यमुनापार में जीटी रोड हो या वजीराबाद रोड। हर तरफ जाम का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यमुनापार विकास बोर्ड के काम करने के लिए संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।
पिछले 10 सालों में यमुनापार विकास बोर्ड के निष्क्रिय हो जाने से यह क्षेत्र कई विकास योजनाओं से वंचित रह गया। 2015 से 2020 तक अंतिम अध्यक्ष रहे चौधरी फतेह सिंह बताते हैं कि पांच साल के कार्यकाल में दो बार में बोर्ड को कुल 140 करोड़ रुपये का फंड मिला।
2020 के बाद इस बोर्ड का गठन नहीं हो पाया। इस बोर्ड में यमुनापार के सभी विधायक (अन्य पार्टियों के भी), सांसद और सभी विभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
कैसे काम करता है बोर्ड
बोर्ड की हर दो महीने में बैठक होती है। इस बैठक में विधायक अपने-अपने क्षेत्र में कराए जाने वाले कार्यों को पेश करते हैं। संबंधित विभाग कार्ययोजना तैयार करते हैं। इसी के अनुसार फंड जारी होता है। इसके बाद विभाग वह कार्य करता है।
यमुनापार के लिए विकास बोर्ड आवश्यक है। साल 2003 से 2013 तक मैं इसका चेयरमैन रहा। इसे जरिये क्षेत्र में कई काम भी कराए गए। लेकिन उसके बाद विकास कार्य बंद हो गए।
अरविंदर सिंह लवली यमुनापार को जानते और समझते हैं तो उम्मीद है कि दिल्ली सरकार उनका सहयोग करेगी और इस क्षेत्र के विकास के लिए काम होगा।
- डाॅ. नरेंद्र नाथ, कांग्रेस नेता और पूर्व चेयरमैन, यमुनापार विकास बोर्ड
इस क्षेत्र को मैंने काफी करीब से देखा है। यहां समस्याएं काफी हैं। सभी सदस्यों के साथ बैठक में इसके कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाएगी। इसके लिए अनुसार ही क्षेत्र का विकास किया जाएगा।
- अरविंदर सिंह लवली, अध्यक्ष, यमुनापार विकास बोर्ड
ये बने सदस्य
विधायक मोहन सिंह बिष्ट, अभय वर्मा, ओमप्रकाश शर्मा, जितेंद्र महाजन, अजय महावर, गोपाल राय, सुरेंद्र कुमार, कुलदीप कुमार, अनिल गोयल, संजय गोयल, रविकांत, रविंद्र सिंह नेगी, चौधरी जुबेर अहमद।
विशेष आमंत्रित सदस्य
सांसद हर्ष मल्होत्रा, मनोज तिवारी, दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा।
अन्य सदस्य
बोर्ड में विकास आयुक्त के अलावा वित्त व योजना, पीडब्ल्यूडी, राजस्व, डीडीए, जल बोर्ड, ड्यूसिब, निगम व अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया गया है।
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