Yamuna Pollution: यमुना को साफ करने की दिल्ली सरकार की पहल कितनी सफल? सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट
दिल्ली में यमुना नदी की सफाई के लिए किए जा रहे प्रयासों का असर दिखने लगा है। मार्च में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार यमुना में मल-मूत्र से होने वाले प्रदूषण की स्थिति में सुधार हुआ है।इससे यमुना के साफ होने की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि अभी भी यमुना का पानी पीने योग्य नहीं है।

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में भाजपा की जीत के बाद फरवरी में ही यमुना की सफाई का काम शुरू हो गया था। नदी से कचरा हटाने के साथ ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को बेहतर बनाने का काम भी चल रहा है। सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों का असर दिखने लगा है।
यमुना प्रदूषण पर लगा लगाम
मार्च में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार यमुना में मल-मूत्र से होने वाले प्रदूषण की स्थिति में पहले के मुकाबले सुधार हुआ है। इससे यमुना के साफ होने की उम्मीद की जा सकती है।
डीपीसीसी की जनवरी और फरवरी की रिपोर्ट के अनुसार यमुना के पानी की गुणवत्ता काफी खराब हो गई थी। फीकल कोलीफॉर्म का स्तर पिछले चार सालों में सबसे अधिक था। यह प्रदूषण पानी में मूत्र और मल के मिलने से होता है। पानी में फीकल कोलीफॉर्म का स्तर 500 मोस्ट प्रोबेबल नंबर (एमपीएन) प्रति 100 मिली होना चाहिए।
इसका स्तर 2500 एमपीएन पहुंचने पर यह उपयोग लायक नहीं रहता है। जनवरी में असगरपुर में यह 84 लाख एनपीएन और फरवरी में 1.60 करोड़ तक पहुंच गया था। इस महीने की रिपोर्ट में यह घटकर 13 लाख पर आ गया है। यह अभी भी मानक से काफी अधिक है। असगरपुर से पहले शाहदरा और तुगलकाबाद नाला यमुना में गिरता है, जिससे यमुना में अधिक प्रदूषण होता है।
स्थिति अभी भी चिंताजनक
फीकल कोलीफॉर्म की स्थिति में जरूर सुधार हुआ है लेकिन बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की स्थिति अभी भी चिंताजनक है। साफ पानी में बीओडी तीन मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर या इससे कम और डीओ पांच मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे ज्यादा होना चाहिए।
पल्ला से वजीराबाद तक यमुना लगभग साफ है, लेकिन आईएसबीटी पुल के बाद यमुना में प्रदूषण बढ़ने लगता है। इससे पहले नजफगढ़ नाला यमुना में गिरता है। वजीराबाद के बाद डीओ शून्य हो जाता है। असगरपुर में यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित है।
स्थान | बीओडी (एमजीप्रति लीटर) | डीओ (एमजीप्रति लीटर) | फेकल कोलीफार्म (एमपीएन प्रति एमएल) |
पल्ला | 4 | 7.2 | 2100 |
वजीराबाद | 6 | 6.8 | 2500 |
आईएसबीटी ब्रिज | 44 | शून्य | 230000 |
आईटीओ ब्रिज | 50 | शून्य | 330000 |
निजामुद्दीन ब्रिज | 48 | शून्य | 35000 |
आगरा नहर (ओखला बैराज के पास) | 45 | शून्य | 140000 |
ओखला बैराज | 50 | शून्य | 180000 |
असगरपुर | 70 | शून्य | 1300000 |
अगर फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा कम पाई जाती है तो इसका मतलब है कि एसटीपी पहले से बेहतर काम कर रहे हैं। लेकिन, नालों के जरिए यमुना में बिना उपचारित गंदा पानी गिरना चिंता का विषय है। घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में गिरावट इस बात का संकेत है कि नालों से गंदा पानी नदी में गिर रहा है। सरकार इस समस्या के समाधान के लिए काम कर रही है।
-डॉ. अनिल गुप्ता (दिल्ली भाजपा प्रवक्ता और पर्यावरणविद्)
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