Delhi Yamuna Pollution: यमुना दिल्ली की जीवन रेखा या प्रदूषण का शिकार? एक क्लिक में पढ़ें
यमुना नदी दिल्ली की जीवन रेखा है लेकिन प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण यह बर्बाद हो गई है। इस लेख में यमुना की वर्तमान स्थिति प्रदूषण के कारणों सरकारी प्रयासों और नदी के कायाकल्प के लिए किए जा रहे कार्यों पर विस्तार से चर्चा की गई है। जानें कैसे यमुना को स्वच्छ और अविरल बनाने के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की जा रही हैं।

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। यमुना दिल्ली की जीवन रेखा है। इसका पानी दिल्लीवासियों का प्यास बुझाने के साथ उनके सुख समृद्धि में सहायक रहा है। मछली पालन, खेतीबाड़ी सहित सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक गतिविधियों से लोगों का जीविकोपार्जन होता था, परंतु अब स्थिति बदल गई है। अनियोजित विकास, अतिक्रमण व भ्रष्टाचार के कारण यमुना मृत प्राय हो गई है।
इससे राजधानी में पेयजल संकट, भूजल दूषित होने और पारिस्थितकी तंत्र को नुकसान हो रहा है। इसका दुष्प्रभाव दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। नदी में अमोनिया की मात्रा बढ़ने से अक्सर दिल्ली में जल आपूर्ति बाधित होती है। यमुना को स्वच्छ और अविरल बनाने के नाम पर वर्षों से राजनीति हो रही है।
प्रत्येक चुनाव में यह मुद्दा बनता है। नदी को साफ करने के लिए वर्ष 1993 में पहला यमुना एक्शन प्लान बनाया गया। करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है। राजधानी में यमुना पल्ला से ओखला बैराज तक 48 किलोमीटर के दायरे में बहती है।
वजीराबाद से असगरपुर गांव तक 26 किलोमीटर का हिस्सा नदी की कुल लंबाई का मात्र दो प्रतिशत है, परंतु यह इसके 76 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की मासिक रिपोर्ट के अनुसार नवंबर में यमुना के पानी की गुणवत्ता पहले से अधिक खराब हुई है।
फेकल कोलीफार्म का स्तर पिछले चार वर्षों में सबसे अधिक है। यह प्रदूषण पानी में मल-मूत्र मिलने से होता है। इससे स्पष्ट है कि नदी में अनुपचारित सीवेज गिर रहा है। पानी में फेकल कोलीफार्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर 500 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) होना चाहिए।
इसका स्तर 2,500 एमपीएन पहुंचने पर यह उपयोग लायक नहीं रह जाता है। यमुना जब दिल्ली में प्रवेश करती है तो पल्ला में फेकल कोलीफार्म का स्तर मात्र 1,100 एमपीएन रहता है। वहीं, असगरपुर में यह 79,00,000 एनपीएन तक पहुंच गया है।
असगरपुर से पहले शाहदरा व तुगलकाबाद ड्रेन यमुना में गिरता है। नदी के पानी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा अधिकांश स्थानों पर शून्य हो गया है। जैव रासायनिक आक्सीजन मांग (बीओडी) भी स्वीकार्य पांच मिलीग्राम प्रति लीटर की तुलना में बहुत अधिक हो गया है।
स्वच्छ यमुना के लिए सरकारी प्रवास
यमुना एक्शन प्लान चरण-प्रथम
अप्रैल 1993 में शुरू हुआ और इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 21 शहर शामिल थे। वर्ष 2002 में शुरू। कुल व्यय 682 करोड़ रुपये।
यमुना एक्शन चरण-द्वितीय
वर्ष 2012 में शुरू कुल व्यय 1,514.70 करोड़ रुपये।
यमुना एक्शन प्लान चरण तृतीय
अनुमानित खर्च 1,656 करोड़ रुपये है। इस चरण में दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और ट्रंक सीवर का पुनर्वास और उन्नयन शामिल है।
वर्ष 2015 से वर्ष 2023 तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के अंतर्गत 1,000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-3 के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे।
आम आदमी पार्टी की सरकार ने वर्ष 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया।
जल शक्ति मंत्रालय ने 11 परियोजनाओं के लिए 2361.08 करोड़ रुपये दिए।
यमुना नदी के कायाकल्प के लिए एनजीटी द्वारा जनवरी, 2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में पिछले वर्ष उच्च-स्तरीय समिति (एचएलसी) गठित की थी। नजफगढ़ ड्रेन सहित यमुना के कुछ क्षेत्र की सफाई अभियान शुरू किया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली के मुख्य सचिव को समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
ओखला में बन रहे एशिया का सबसे बड़े एसटीपी का काम पूरा हो गया है। इससे 124 एमजीडी सीवेज शोधित हो सकेगा। कोंडली और सोनिया विहार में भी एसटीपी का काम भी लगभग पूरा हो गया है। 20 एसटीपी का उन्नयन कार्य चल रहा है।
कालिंदी कुंज के नजदीक जैव विविधता पार्क सहित यमुना तट को संवारने के लिए अस्तिता ईस्ट, बांसेरा जैसे 10 परियोजनाओं पर काम। नदी और इसके तट साफ होने से पर्यटन व अन्य आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
बीओडी 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम और डीओ 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक करने का लक्ष्य है। दिल्ली में अभी बीओडी कई स्थानों पर 73 मिलीग्राम प्रति लीटर और डीओ शून्य तक है।
दिल्लीवासी हो रहे हैं बीमार
नदी में प्रदूषण बढ़ने से इसके तटवर्ती क्षेत्र की मिट्टी में जहर घुल रहा है। भूजल दूषित होने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। नदी किनारे उपजी सब्जियां स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हैं। खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार सब्जी में लेड की मात्रा 0.1 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह 28.06 पीपीएम तक पाई गई। कैडियम की स्वीकृत मात्रा 0.1 से 0.2 पीपीएम की तुलना में 3.42 पीपीएम और पारा एक पीपीएम की जगह 139 पीपीएम तक मिला है। इनके सेवन से याददाश्त संबंधी परेशानी, फेफड़े, मस्तिष्क और पेट के कैंसर सहित अन्य गंभीर परेशानी हो सकती है।
- 122 छोटे-बड़े नाले यमुना में गिरते हैं, 22 नालों में से 10 का पानी ही शोधित हो रहा।
- 37 एससीटी राजधानी में लगाए गए हैं, अधिकांश मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
- 48 किमी के दायरे में यमुना दिल्ली में यमुना पल्ला से ओखला बैराज तक बहती है।
- 70 प्रतिशत प्रदूषण यमुना में नजफगढ़ ड्रेन और 30 प्रतिशत गुरुग्राम के तीन नालों से।
- 76 प्रतिशत प्रदूषण वजीराबाद से असगरपुर तक 26 किलोमीटर क्षेत्र में ही होता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।