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    हाल-ए-दिल्ली: यमुना की बाढ़ में बह गई लोगों की कमाई, अब बच्चों की छूटी पढ़ाई

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 07:53 AM (IST)

    यमुना की बाढ़ ने निचले इलाकों में रहने वालों को बेघर कर दिया जिससे उनके बच्चों की शिक्षा पर संकट आ गया है। बाढ़ के कारण किताबें और कपड़े खराब हो गए जिससे बच्चों के लिए स्कूल जाना मुश्किल हो गया है। यमुना बाजार के लोग प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं ताकि उनके बच्चे फिर से पढ़ाई कर सकें और सामान्य जीवन जी सकें।

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    बाढ़ में बह गई कमाई, बच्चों की छूटी पढ़ाई।

    लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। यमुना की बाढ़ ने निचले इलाकों में रहने वालों को बेघर ही नहीं किया, उनकी मेहनत की कमाई भी अपने साथ बहाकर गई। ऐसे में स्थानीय लोगों के लिए अब अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ाना-लिखाना तो दूर, दो जून की रोटी तक का इंतजाम करना मुश्किल हो रहा है।

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    वहीं, इन इलाकों में रहने वाले अधिकांश लोग मेहनत-मशक्त करके गुजर-बसर करते हैं। जब यमुना का पानी यहां रहने वाले लोगों के घरों में घुसा तो उनका काफी सामान भी बर्बाद हो गया। सैकड़ों लोगों के घरों में रखे रजाई-गद्दे, कंबल के साथ गर्म कपड़े तक खराब हो गए हैं।

    हालत यह है कि कई लोगों के पास अपने बच्चों को पहनाने के लिए कपड़े तक नहीं बचे हैं। ऐसे में सर्दी के मौसम में इनको भारी दिक्कत हो सकती है। लोगों का कहना है कि एक बार गृहस्थी फिर से आबाद हो जाए, फिर वे दूसरी जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान देंगे।

    यमुना बाजार में भी बाढ़ का पानी उतरने के बाद हर तरफ तबाही का मंजर नजर आता है। गलियों-सड़कों, यमुना के घाटों और लोगों के घरों में दो-तीन फुट गाद जमा है। जगह-जगह कीचड़ व पानी भरा हुआ है। बाढ़ में बच्चों की कापी-किताबें भी खराब हो गई थीं। जिन बच्चों के पास बची हैं, वे अपने पड़ोसी साथियों के साथ सामूहिक रूप से पढ़ाई करते हैं। यहां लोगों के घरों के बाहर डाली गई चारपाई पर बैठकर ऐसे बच्चे सामूहिक रूप से पढ़ते हुए देखे जा सकते हैं।

    स्थानीय लोगों का कहना है कि यमुना में बाढ़ आने से पहले उनके बच्चे परीक्षा की तैयारी में जुटे थे, लेकिन अब वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। पढ़ाई बिल्कुल चौपट हो गई है। बच्चों के लिए भोजन तक का इंतजाम करना मुश्किल हो रहा है। गुरुवार से स्कूल तो खुल गए, लेकिन यमुना बाजार के अधिकांश बच्चे अपने स्कूल नहीं जा सके।

    पढ़ाई में रुकावट, किताबें और कपड़े बर्बाद

    बाढ़ से पहले यमुना बाजार के बच्चे न सिर्फ पढ़ने के लिए स्कूल जाते थे, बल्कि कई लोगों ने ट्यूशन भी लगा रखे थे। बच्चे नियमित रूप से स्कूल जाते थे। बाढ़ आने के बाद सब छूट गया। बच्चों के स्कूल बैग, कापी-किताबें, कपड़े सब खराब हो गए।

    घरों के बाहर अपने बच्चों के साथ बैठे उनके माता-पिता से पूछने पर उनका कहना था कि उन पर ऐसी मार पड़ी है कि फिलहाल उनके लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजना संभव नहीं है। हां, वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बच्चे घर में पढ़ाई करते रहें। हालांकि, मच्छर इतने ज्यादा हो गए हैं कि वे बच्चों को काटते रहते हैं।

    पूरे इलाके में गंदगी फैली हुई है, जिससे डर लगा रहता है कि बच्चों को कोई बीमारी न हो जाए। यमुना बाजार के नजदीक एक स्कूल है, जहां पहले 100 से अधिक बच्चे पढ़ते थे। बाढ़ आने पर प्रशासन ने बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए छुट्टी घोषित कर दी थी। अब स्कूल फिर से खुल गया है कि लेकिन, अभिभावक उन्हें स्कूल भेजने से हिचक रहे हैं।

    घर ही नहीं, घाटों की भी सफाई कर रहे लोग

    यमुना बाजार में जगह-जगह जमा पानी व गंदगी की वजह से मच्छर बहुत अधिक हो गए हैं। ऐसे में लोगों में मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। इसलिए लोग चाहते हैं कि जितनी जल्दी हो सके उनके घरों, गलियों के साथ ही यमुना के घाटों की भी सफाई हो जाए।

    उनका कहना है कि इस काम में प्रशासन की तरफ से अब तक खास मदद नहीं मिली है। इसलिए लोगों ने आपस में चंदा करके किराये पर पंप लाकर घाटों की सफाई कर रहे हैं। इसके लिए उनको प्रतिदिन 2000 रुपये देना पड़ता है। काम-धंधा छूटने से पंप के लिए किराये का भुगतान करना भी यहां के लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।

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    बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से प्रभावित हो गई है। बिजली नहीं है, मच्छरों का आतंक है और हमें मजबूरन बच्चों को थोड़ी देर के लिए दूसरी जगह पढ़ाई के लिए भेजना पड़ता है। - माया, यमुना बाजार

    हमारे पास बच्चों को पहनाने के लिए कपड़ों के साथ ही किताबें भी नहीं हैं। जब तक घर की माली हालत सामान्य नहीं होगी, हम उन्हें स्कूल नहीं भेज सकते। - शशि, यमुना बाजार

    बाढ़ आने के बाद गाद की सफाई के लिए प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली। विधायक से मदद मांगी गई, लेकिन नहीं मिली। हम खुद दो हजार रुपये पंप का किराये पर लाकर घाटों की गंदगी साफ कर रहे हैं। - मुकेश, यमुना बाजार

    प्रशासन और विधायक दोनों से मदद की मांग की गई है, लेकिन अब तक किसी से कोई राहत नहीं मिली है। क्षेत्र में बीमारी फैलने का भी खतरा है। - गोपाल झा, सचिव, आरडब्ल्यूए