World Heart Day 2021: जवां दिलों पर मंडराता खामोशी से खतरा, जीवनशैली में ऐसे लाएं बदलाव
World Heart Day 2021 गुरुग्राम के मेदांता द मेडिसिटी के चेयरमैन तथा एमडी वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. नरेश त्रेहन ने बताया कि युवाओं को अकस्मात चपेट में लेने वाली हृदयाघात जैसी बीमारी से बचना है तो समय-समय पर स्वास्थ्य जांच और खानपान के साथ व्यायाम का रखना होगा ध्यान।

नई दिल्ली/गुरुग्राम, प्रियंका दुबे मेहता। World Heart Day 2021 स तेजी से हृदयाघात के मामले बढ़े हैं और युवा इसकी चपेट में आ रहे हैं, बेहद चिंता का विषय है। 30-35 साल की उम्र में किसी फिटनेस फ्रीक या पूरी तरह से स्वस्थ दिखने वाले युवा का हृदयाघात की चपेट में आना कई तरह के सवाल खड़े करता है। आखिर कैसे पता चले कि अचानक ऐसी कोई बीमारी आ सकती है, जिसमें चिकित्सक के पास पहुंचने का भी वक्त नहीं मिलेगा? ऐसे में किस तरह की सावधानियां बरतकर हृदयाघात से बचा जा सकता है? शरीर में किन परिवर्तनों को इसका संकेत माना जा सकता है और अक्सर अधिक उम्र में होने वाली इस तरह की साइलेंट बीमारियों का कहर अब युवाओं पर क्यों टूटने लगा है?
कोरोनरी आर्टरी में ब्लाकेज सबसे बड़ी वजह: हृदयाघात और अकस्मात मृत्यु का प्रमुख कारण है कोरोनरी आर्टरी (धमनी) में ब्लाकेज। इसकी वजह से हार्टअटैक और अकस्मात मृत्यु का खतरा 20 फीसद होता है। व्यायाम करते समय, ट्रेडमिल पर दौड़ते वक्त या फिर तनाव की स्थिति में भी हृदयाघात हो सकता है। कई बार हम सुनते हैं कि कोई 30 वर्ष का व्यक्ति कसरत कर रहा था और उसकी ट्रेडमिल पर ही मृत्यु हो गई। इसका मतलब उस व्यक्ति को पहले से कोई न कोई परेशानी रही होगी जिसका उसे पता नहीं चला। कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि व्यक्ति रात को हंसते-खेलते सोया और सुबह उठा ही नहीं।
देश में अधिक है हृदय रोग की दर: पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में दिल संबंधी बीमारियों का खतरा अधिक है। यहां 10 से 12 फीसद लोग हृदय रोगों से ग्रसित हैं। अमेरिका जैसे देशों में यह दर चार से पांच फीसद है। इतना ही नहीं, अमेरिका के मुकाबले हमारे देश में 10 साल कम उम्र में ही हृदय रोग हो जाता है। अधिकतर पश्चिमी देशों में हृदय रोगियों की उम्र 50 से 60 वर्ष के बीच की होती है, जबकि हमारे यहां 40-50 वर्ष की उम्र में ही दिल की बीमारियां लग जाती हैं। इन मामलों में स्टेंट या बाइपास सर्जरी की जाती है।
डायबिटीज है तो संभलें: सामान्य रूप से हृदय रोग का खतरा पांच फीसद है, लेकिन यदि माता-पिता को कोई बीमारी है तो यह संभावना दोगुनी हो जाती है। डायबिटीज के मरीजों में कोरोनरी आर्टरी ब्लाकेज का खतरा अधिक होता है। जो लोग लंबे समय से डायबिटिक हैं, उन्हें तो यह खतरा है ही साथ ही उनके बच्चों को भी डायबिटीज की संभावना होती है और उनमें ब्लाकेज की आशंका बढ़ जाती है। अगर माता या पिता में से किसी एक को डायबिटीज है तो बच्चे को डायबिटीज होने की संभावना 25 फीसद है और यदि माता-पिता दोनों डायबिटिक हैं तो यह संभावना 50 फीसद हो जाती है।
कब करें चिंता
- अगर आप तनाव की स्थिति में चिल्ला रहे हैं और सीने में दबाव, दर्द और गले में अवरोध जैसा अनुभव हो। यह चेतावनी डायबिटीज में नहीं मिलती, क्योंकि डायबिटीज रोगियों की नव्र्स (तंत्रिकाएं) खराब हो जाती हैं
- आनुवांशिक रूप से मांसपेशियां मोटी हैं तो दिक्कत आ सकती है
जीवनशैली में लाएं बदलाव
- नियमित व्यायाम को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। चाहे जागिंग करें, व्यायाम या ट्रेडमिल, ध्यान रखें कि शारीरिक गतिविधि चार किलोमीटर तेज सैर के बराबर हो
- चार व्हाइट्स से दूरी बनाएं। शक्कर, सफेद चावल, आलू और मैदा का उपयोग सीमित करें। अगर डायबिटीज है तो इन चीजों को बिल्कुल छोड़ दें
- दिन में केवल 15 मिली तेल का ही उपयोग करें
- जमने वाली वसा यानी वनस्पति घी या मक्खन उपयोग में न लाएं
- हर छह महीने में खाने वाला तेल बदलें
- पोषक और संतुलित आहार लें
- वजन नियंत्रण में रखें
- धूमपान, अल्कोहल और तंबाकू का सेवन न करें
30 की उम्र में ही करवाएं जांच: हृदयाघात या उससे जुड़ी साइलेंट बीमारियों से बचना चाहते हैं तो इसके लिए एक्जेक्टिव हेल्थ चेक की प्रक्रिया होती है। हम यही सुझाव देते हैं कि 30 वर्ष की उम्र में यह टेस्ट करवा लेना चाहिए। यह एक कंपलीट कांप्रिहेंसिव चेकअप होता है, जिससे रिस्क फैक्टर्स पता चल जाते हैं। कोलेस्ट्राल हाई तो नहीं है, रक्त में लिपिड्स (चर्बी) का क्या स्तर है, थाइराइड या उच्च रक्तचाप तो नहीं है? अगर परिवार में किसी को हृदय रोग है तो यह जांच 25 वर्ष की उम्र में ही करवा लेनी चाहिए। अगर टेस्ट में सब कुछ ठीक है तो पांच साल बाद फिर से जांच करवाने की सलाह दी जाती है।
सीटी एंजियो ने आसान की राहें: जांच में किसी परेशानी के संकेत मिलें, फैमिली हिस्ट्री है, सीने में दर्द या कोई अन्य परेशानी है तो इसके बाद सीटी एंजियो किया जाता है। इसमें शरीर में बिना तार डाले स्क्रीनिंग हो जाती है। बीमारी का पता चलते ही रिवर्सल प्रोग्राम शुरू कर दिया जाता है। खानपान, व्यायाम और दवाइयों के संयोजन से इलाज में काफी सफलता मिलती है।
ब्रैडीकार्डिया से बचें: हार्ट बीट की सामान्य दर 70 से 84 तक होती है, अगर यह 90 की तरफ जाए तो इसे थोड़ा तेज माना जाएगा। एथलीट्स और पहाड़ों में रहने वालों की सामान्य हार्टबीट 60 तक होती है। अगर धड़कनों की दर कम होती है तो ब्रैडीकार्डिया की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसमें हृदय रक्त को आसानी से पंप नहीं कर पाता। कई बार यह स्थिति रक्तचाप या किसी अन्य बीमारी की दवाइयों की वजह से भी होती है। इस स्थिति में शरीर के इलेक्ट्रिकल सिस्टम की जांच (इलेक्ट्रोफिजियोलाजी) की जाती है। इसमें चलते, सोते और कोई अन्य गतिविधि करते समय दो हार्ट बीट्स के बीच का गैप जांचते हैं। अगर गैप तीन सेकंड से ज्यादा है तो उसको खतरनाक मानते हैं। इस स्थिति में मरीज कंपलीट हार्ट ब्लाक में जा सकते हैं। इसके इलाज के लिए अंत में पेसमेकर लगाते हैं।
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