क्यों प्रदूषित है यमुना और कैसे होगी साफ? चुनौतियां, कारण और समाधान इस खबर में है A to Z
How will Yamuna be cleaned यमुना नदी के पुनर्जीवन का सपना अब साकार होगा? भाजपा की जीत के बाद पीएम मोदी ने यमुना की सफाई को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर यमुना का विकास होगा। इस लेख में आप यमुना एक्शन प्लान के तहत किए गए प्रयासों और आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से जानें।

मनु त्यागी, नई दिल्ली। यमुना में जहर। विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा खूब उछला। मामला चुनाव आयोग तक जा पहुंचा। अब जनादेश भाजपा के पक्ष में आया है। इस विश्वास के साथ कि अब यमुना को भी साबरमती की तरह पुनर्जीवित किया जाएगा। जैसे अहमदाबाद में विश्वस्तरीय रिवर फ्रंट बनने से साबरमती को नया जीवन मिला, वैसे ही यमुना का भी विकास होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यमुना किनारे टूरिज्म कॉरिडोर के विकास का वादा किया था। भाजपा की जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम ने जिस तरह यमुना की सफाई को लेकर प्रतिबद्धता जताई और, यमुना मैया की जय का नारा लगाया, उससे लगता है कि यमुना फिर से अविरल-निर्मल होगी।
सच यह है कि दिल्ली में यमुना अब केवल नाम के लिए ही है। प्रदूषण के चलते इसका प्रवाह थम चुका है। कभी यह निर्मल एवं अविरल प्रवाहित होती थी। अब छठ जैसे महापर्व पर श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाने को तरस जाते हैं। जल संरक्षण के चिंतक रमनकांत कहते हैं कि दिल्ली इसलिए बसी क्योंकि यहां यमुना जैसी बड़ी व पवित्र नदी थी।
कभी अरावली की पहाड़ी से दर्जनों छोटी नदियां बरसात का पानी लेकर यमुना में मिलती थीं, लेकिन अब वे सब नाला बन गई हैं। वह कहते हैं कि अब दिल्ली में डबल इंजन की सरकार हो जाएगी। ऐसे में राजनीतिक बाधाएं आड़े नहीं आएंगी। रमनकांत कहते हैं कि यदि एसटीपी की व्यवस्था ठीक कर लें और कूड़ा डालना प्रतिबंधित हो जाए तो दो-तीन साल में यमुना का जल आचमन योग्य हो जाएगा।
साबरमती रिवर फ्रंट
अहमदाबाद (कर्णावती) के बीचोंबीच से बहने वाली साबरमती नदी के तट अब स्वच्छ हो चुके हैं। एलईडी रोशनी से सुसज्जित अटल रिवर ब्रिज लगभग 300 मीटर लंबा और 14 मीटर चौड़ा है।
यूं जहरीली होती गई यमुना मैया
- 22 किमी यमुना दिल्ली में बहती है। वजीराबाद से ओखला तक। सबसे यमुना नदी 76% गंदगी का हिस्सा इसी क्षेत्र में है।
- 18 बड़े नालों के जरिये 350 लाख लीटर से अधिक गंदा पानी और सीवेज सीधे यमुना में गिरता है।
- 2020 से 2024 में यमुना नदी दो दशक के बराबर प्रदूषित हुई है।
स्वच्छ यमुना के लिए सरकार के प्रयास
- 1993 में यमुना एक्शन प्लान शुरू हुआ, इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 21 शहर शामिल थे। वर्ष 2002 तक इसमें कुल खर्च 682 करोड़ रुपये।
- 1,514.70 करोड़ रुपये, वर्ष 2012 में यमुना एक्शन प्लान (दो)
- 1,656 करोड़ रुपये यमुना एक्शन प्लान चरण (तीन) अनुमानित खर्च रहा। इस चरण में दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और ट्रंक सीवर का पुनर्वास आदि शामिल किया गया।
- 2015 से वर्ष 2023 तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के अंतर्गत 1,000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-तीन के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे।
- 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया।
- 11 परियोजनाओं के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने 2361.08 करोड़ रुपये दिए। इसमें यमुना भी थी।
- 2018 से 2021 के बीच 200 करोड़ रुपये आवंटित हुए, ये कहां खर्च हुए किसी को नहीं पता।
सेहत के लिए इसलिए खतरा
- गंदे पानी में फास्फेट और एसिड होता है, जिससे जहरीले सफेद साबुन जैसे दिखने वाले झाग बनते हैं।
- पानी में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर 500 सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) होना चाहिए। 2,500 एमपीएन पहुंचने पर ये उपयोग लायक नहीं होता।
- यमुना दिल्ली में प्रवेश करते ही पल्ला में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर 1,100 एमपीएन रहता है, वही असगरपुर में यह 79,00,000 एनपीएन हो जाता है।
- ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा दिल्ली में अधिकांश जगहों पर शून्य है।
- भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक पीने के पानी में अमोनिया की मात्रा 0.5 पीपीएम होना चाहिए। यमुना 8 पीपीएम तक पहुंच जाती है।
लंदन की टेम्स नदी की दशा सीवेज रोकने से ही सुधरी
1858 में लंदन की टेम्स नदी को एक तरह से मृत नदी घोषित कर दिया गया था। इसके बाद सरकार ने सीवेज ढांचे में भारी निवेश किया और प्रदूषण से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए। 50 साल तक सीवरेज ट्रीटमेंट और उसे नदी में जाने से रोकने का नतीजा ही था कि टेम्स के पानी की गुणवत्ता सुधरी।
प्राकृतिक प्रवाह पर ध्यान देकर बनेगी निर्मल
यमुना की शुरुआत हिमालय क्षेत्र के युमनोत्री बंदर पुंछ ग्लेशियर से होती है। हिमालय क्षेत्र में और फिर इससे आगे भी नदी काफी साफ सुथरी है। कहानी तब शुरू होती है जब हरियाणा में प्रवेश करती है। हरियाणा में प्रवेश करते ही हथनीकुंड बैराज पर पानी को वेस्टर्न और इस्टर्न यमुना कैनाल में डायवर्ट कर देते हैं।
इन कैनाल के क्षेत्र में यमुनानगर, कुरुक्षेत्र और पानीपत आते हैं। इन शहरों का गंदा पानी यमुना में मिल जाता है। इन शहरों में घरेलू सीवेज हैं। कई अनियोजित कॉलोनी हैं, जिनमें सीवेज ट्रीटमेंट की व्यवस्था नहीं है। सीवेज ट्रीटमेंट के लिए जो प्लांट बने हैं, उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है।
कुछ की मरम्मत देखरेख उतनी बढ़िया नहीं है। ट्रीटमेंट होता है, लेकिन उसमें वक्त लगता है, इस दौरान जनसंख्या भी बढ़ रही है। ढांचे को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह सारी गंदगी यमुना में मिल जाती है। बारिश का पानी भी गंदगी को लेकर यमुना में मिलता है।
जितने सालों की देरी से नए प्लांट बनते हैं और सीवेज ट्रीटमेंट शुरू होता है, उस अंतराल में गंदगी का स्तर काफी बढ़ जाता है। बड़ी मात्रा में खराब पानी एकत्र हो जाता है। यहां अनियोजित और छोटे उद्योग भी हैं। पानीपत में कई टेक्सटाइल और डाइंग यूनिट हैं। यहां सीवेज ट्रीटमेंट की अच्छी व्यवस्था नहीं है। इनका पानी यमुना में ही प्रवाहित होता है। हालांकि कई सीईटीपी लगाए गए हैं, लेकिन सारा सीवेज वहां तक पहुंच नहीं पाता।
उस वजह से थोड़ा अंतर वहां रह जाता है और वो सारा पानी आखिरकार यमुना में मिलता है। यमुना का पानी जब दिल्ली पहुंचता है तो इससे पहले पल्ला घाट आता है। यहां पानी की गुणवत्ता उतनी खराब नहीं है। जब वजीराबाद पहुंचता है तो यहां नजफगढ़ ड्रेन इसमें मिलता है।
दिल्ली में जितना भी सीवेज आ रहा है उसका 70 प्रतिशत नजफगढ़ ड्रेन से आ रहा है। कई सप्लीमेंट्री ड्रेन नजफगढ़ में ही मिलते हैं। इसको पहले बारिश के पानी को यमुना तक पहुंचाने के लिए बनाया गया था। लेकिन, दुर्भाग्य देखिए... बाद में गंदगी इसमें प्रवाहित की जाने लगी।
हरियाणा बॉर्डर पर पानी की गुणवत्ता उतनी खराब नहीं है। नजफगढ़ ड्रेन पर आकर हालात खराब होते हैं। यही नहीं दिल्ली के उद्योगों को बाहर कर दिया है। वह बॉर्डर इलाकों में है। यूपी में हरनंदी है और इस पर काफी अतिक्रमण है। यहां के उद्योगों का सारा सीवेज हरनंदी में बहाया जाता है। आखिर में हरनंदी भी यमुना में आकर मिल जाती है। यही हाल काली नदी का भी है।
वह सारा सीवेज लेकर हरनंदी में मिलती है और हरनंदी यमुना में। इससे यमुना का प्राकृतिक पानी का प्रवाह नगण्य हो जाता है। यहां सामान्य पानी का प्रवाह बना रहता है। दिल्ली से नीचे जाकर जब यमुना चंबल मिलती है, तो पानी की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। क्योंकी चंबल का पानी साफ है। यहां प्रदूषण का लोड डायल्यूट हो जाता है।
यहां से जाकर यमुना संगम पर गंगा में मिल जाती है। हमारा दिल्ली से आगरा का स्ट्रेस खराब है। हम बात करें पानीपत, यमुनानगर तक की तो वहां का जो खराब पानी मिल रहा है फिर भी पानी की गुणवत्ता उतनी खराब नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने काफी काम किया है।
ग्रोसली, पोलुटिंग इंडस्ट्री जिन्हें जीपीआई बोलते हैं, उनकी देखरेख बोर्ड करता है। डीटीयू, आइआइटी और जामिया के तकनीकी विभागों के साथ थर्ड पार्टी निरीक्षण की व्यवस्था भी है। उस निरीक्षण के बाद असर पड़ा है। 2017 में 39 प्रतिशत उद्योग ठीक से काम करते थे, उनकी संख्या 2023 में बढ़कर 82 प्रतिशत हो गई है।
समस्या सीवेज ट्रीटमेंट ठीक न होना और खराब पानी के प्लांट तक पहुंचने के वक्त लगने में है। हर कैनाल और ड्रेन की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के पास है। यह आपस में समन्वय नहीं करते। इससे भी सीवेज ट्रीटमेंट में समय लगता है या एक स्थान का पानी ठीक होता है तो दूसरे पर गंदगी बनी रहती है।
जरूरी है कि सभी सरकारों व एजेंसी को समन्वय बैठाना होगा। यमुना के पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बढ़ाना होगा। सिंचाई और बिजली के लिए पानी के दूसरे स्रोत से व्यवस्था करनी होगी। यमुना जब तक साफ नहीं होगी उस पर रिवर फ्रंट नहीं बन सकता।
क्योंकि घाट बना तो प्राकृतिक पानी के स्रोत खत्म हो जाएंगे। लंदन में आइ ब्रिज नदी के साफ होने के बाद ही बना है। इसलिए पहले यमुना की सफाई जरूरी है और वो संभव है।
जैसा उदय जगताप को बातचीत में बताया
प्रो. अनिल हरीतश, प्रमुख, पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग, डीटीयू
सुंदरीकरण से पहले यमुना रिवर बोर्ड समझौते से पहल की जाए
दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान यमुना नदी प्रदूषण एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। चुनाव जीतने के बाद स्वयं प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने 'आप' सरकार की हार के लिए यमुना की दुर्दशा को एक प्रमुख कारण बताया। साथ में यमुना को साफ करने की बात कही। अब प्रश्न उठता है कि क्या दिल्ली के नागरिक एक स्वच्छ बहती नदी की उम्मीद रख सकते हैं?
इसके लिए सरकार को उचित दृष्टिकोण अपनाने और सफाई ही नहीं जीर्णोद्धार पर ध्यान देना होगा। विज्ञानी दृष्टि से जलागम क्षेत्र, सहायक नदियां, बहते जल की मात्रा और गुणवत्ता, नदी आश्रित जलीय और तटीय जीव-जंतु, बाढ़ क्षेत्र आदि की स्थिति किसी भी नदी के स्वास्थ्य को परिभाषित करने वाले आवश्यक मापदंड है।
तीन दशकों में यमुना नदी की सफाई पर ही विशेष जोर रहा और नदी को प्रभावित करने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारकों पर ध्यान नहीं दिया गया। जलागम क्षेत्र में अवनीकरण, सहायक नदियों की निरंतर बिगड़ती स्थिति, बांध व बैराज बनाकर अधिकाधिक जल दोहन, खादर में बढ़ता भूजल दोहन।
अतिक्रमण, मशीन से रेत खनन, नदी जीवों के लुप्त होने आदि अहम कारकों को नजरअंदाज किया गया है। यमुना के हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भी अनदेखी हो रही है।
दिल्ली में यमुना के वास्तविक कायाकल्प के लिए नदी बेसिन में स्थिति छह राज्य सरकारों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान को साथ मिलकर इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार के कृषि, जलशक्ति, वन एवं पर्यावरण, शहरी विकास मंत्रालयों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नमामि गंगे, अपर यमुना रिवर बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग और इनके समकक्ष राज्य सरकारों के विभागों की बड़ी जिम्मेदारी है। वर्तमान में ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्यों सरकारों ने इस दिशा में कोई सार्थक पहल की है। इन विभागों में तकनीकी एवं मानव संसाधन का बहुत अभाव है।
हाल ही में पेश वित्तीय बजट में तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का बजट और कम कर दिया गया है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों के नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की घोषणाएं और योजनाएं कैसे धरातल पर उतरेंगी ?
2025 नदी में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने का सुनहरा अवसर है, क्योंकि इस वर्ष 1994 में हुए अपर यमुना रिवर बोर्ड समझौते की भी समीक्षा होनी है। छह राज्यों के बीच हुए इस समझौते के तहत ही यमुना नदी से विभिन्न कार्यों के लिए जल निकाला जाता है। राज्यों के बीच जल बंटवारे के कारण नदी पर्यावरणीय प्रवाह से वंचित हो गई है।
परिणामस्वरूप दिल्ली में तमाम प्रयासों के बावजूद नदी प्रदूषण की समस्या विकराल बनती जा रही है। अगर केंद्र सरकार एवं यमुना बेसिन में आने वाली राज्य सरकारें इस समझौते की समीक्षा के दौरान यमुना नदी में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने पर कोई ठोस कदम उठाती हैं तो दिल्ली में यमुना नदी के प्रदुषण में सुधार की अपेक्षा की जा सकती है।
अब केंद्र और यमुना बेसिन में स्थित हिमाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों में एक ही दल की सरकार है। इससे उम्मीद है कि यमुना नदी की समस्याओं को समग्रता से समझकर, उसके उत्थान के लिए प्रभावी योजना बनाई जाएगी और उस योजना को ईमानदारी से लागू किया जायेगा। दिल्ली सरकार भी यमुना नदी की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई कार्य कर सकती है।
यहां पिछले पांच वर्षों में सरकार और उपराज्यपाल के बीच लगातार टकराव की स्थिति के कारण नदी सफाई कार्य भी बहुत धीमी गति से हो रहा है। आज भी दिल्ली में लगभग 1,100 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज बिना उपचार के नदी में डाला जा रहा है।
यहां के 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) कार्य तंत्र को सुधारने, जवाबदेह और पारदर्शी बनाने की बेहद आवश्यकता है। नए विकेंद्रीकृत एसटीपी निर्माण की भी बहुत जरूरत है। साथ में प्रदूषित उद्योगों को नियंत्रित करने और औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में गिरने से रोकने के लिए कड़े कदम उठाने जरूरी हैं।
उपचारित सीवेज का उपयोग सिंचाई, उद्योग, बागवानी जैसे अनेक कार्यों में हो सकता है। सरकार दिल्ली में वर्षा जल संचयन, भूजल संरक्षण, जल स्रोतों, खादर, तालाब, जोहड़, बावड़ी, झील आदि के जीर्णोंद्धार और हरित क्षेत्र को बढ़ाने का काम वृहद पैमाने पर कर सकती है। इन प्रयासों से दिल्ली की यमुना नदी पर ताजा जल के लिए निर्भरता कम होगी।
नदी प्रदूषण में गुणात्मक कमी होगी। साथ में भूजल दोहन रुकेगा और यमुना में पर्यावरणीय प्रवाह को बढ़ाया जा सकेगा। इसके लिए दिल्ली सरकार को एक समग्र जलनीति बनाकर गंभीरता के साथ कार्य करना होगा। नदी जल दोहन और सुंदरीकरण की जगह पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने, जलागम क्षेत्र, सहायक नदियों एवं खादर संरक्षण और प्रदूषण रोकथाम पर समुचित ध्यान देने से ही यमुना प्रवाहमान एवं स्वच्छ होगी।
जैसा बातचीत में संतोष कुमार सिंह को बताया
भीम सिंह रावतः साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (संड्रप) के सहायक समन्वयक
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