UER 2 Toll: महिलाओं को अखर रहा यूईआर-2 का टोल, ससुराल से मायके का सफर महंगा होने से हैं नाराज
पश्चिमी दिल्ली में यूईआर 2 टोल को लेकर महिलाओं में आक्रोश है। उनका कहना है कि यह टोल दिल्ली को दो हिस्सों में बांट रहा है जिससे सामाजिक दूरी बढ़ रही है। ससुराल से मायके जाना महंगा हो गया है। 350 रुपये का टोल आर्थिक बोझ के साथ-साथ सामाजिक दूरियां भी बढ़ा रहा है जिसके कारण महिलाएं महापंचायत में शामिल हो रही हैं।

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली। यूईआर 2 पर मुंडका बक्करवाला टोल को लेकर महिलाओं में भी जबरदस्त आक्रोश है।
इसे इस बात से समझें कि अभी तक टोल हटाने को लेकर जितने भी महापंचायत हुए, उनमें महिलाओं की अच्छी खासी संख्या रहीं। सबसे बड़ी बात यह है कि महापंचायत में न सिर्फ गांव की महिलाएं बल्कि कॉलोनियों में रहने वाली महिलाएं भी शामिल होती रही हैं।
महिलाओं का कहना है कि दिल्ली महानगर के भीतर यह पहला टोल है, जो पूरे महानगर को दो हिस्सों को बांट रहा है। यह विभाजन सामाजिक दूरी को बढ़ा रहा है।
लगातार बढ़ रही इस सामाजिक दूरी का सबसे अधिक असर महिलाओं पर पड़ रहा है। टोल के इस पार या उस पार की महिलाएं जिन्हें अपने मायके जाने के लिए टोल को पार करना पड़ता है, उनके लिए अब ससुराल से मायके जाना काफी खर्चीला सफर साबित हो रहा है, जो अन्याय है।
जनकपुरी स्थित असालतपुर गांव की प्रीति बताती हैं कि उनका मायका नरेला में है। पहले नरेला जाने के लिए आजादपुर के रास्ते बाइपास रोड का इस्तेमाल करती थी। सफर में कई बार घंटों लग जाते थे। आनाजाना कम था।
यूईआर 2 जब बन रहा था, तब मेरे मायके वाले काफी खुश थे। मायके वाले कहते थे कि अब तो घंटों का सफर मिनटों में पूरा होगा। अब तो तुम्हें आनेजाने में कोई दिक्कत ही नहीं होगी। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा इस रोड के उद्घाटन के कुछ दिन बाद जब मैं नरेला गई तो टोल पर 350 रुपये कट गए।
उसके बाद से नहीं गई मायके
यानि जितनी बार भी मायके आनाजाना होगा, 350 रुपये कटेंगे। एक बार तो पैसे कट गए, लेकिन उसके बाद से मैं मायके नहीं गई। प्रीति बताती हैं कि यह समस्या केवल मेरी नहीं है, यह समस्या पूरे दिल्ली देहात या इसके आसपास रहने वाले कॉलोनियों की महिलाओं की है। सरकार को टोल से जुड़ा यह सामाजिक पहलू देखना चाहिए।
नांगलोई एक्सटेंशन से महापंचायत में जुटी मीनू वर्मा, बवाना से जुटी रुखसाना व शबाना ने कहा कि टोल अन्याय का प्रतीक बन चुका है। महिलाएं इस अन्याय को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगी। रुखसाना बताती हैं कि कई बार काम के सिलसिले में लोग शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाते हैं।
जिनके पास अपनी गाड़ी है, वह निश्चित रूप से जल्द पहुंचने की लालसा में यूईआर 2 का इस्तेमाल करेगा। लेकिन हर गाड़ी वाले के लिए 350 रुपये का बोझ उठाना संभव नहीं है। यदि 350 रुपये का खर्च उठाना पडे तो लोग जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ जैसे छोटे छोटे खुशियों के मौके पर लोगों की खुशियों में शरीक होना पसंद नहीं करेंगे।
हां, जब बड़े आयोजन हों तो लोग मजबूरी में जरुर इस सड़क का इस्तेमाल करेंगे। यह 350 रुपये का टोल आर्थिक बोझ के साथ सामाजिक दूरी बढ़ाने वाला कदम है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।