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    तिहाड़ की कहानी, 5 साल पहले ही कैशलेस हो गई थी जेल

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Sun, 01 Jan 2017 08:03 AM (IST)

    तिहाड़ की सभी जेलों में खरीदारी या लेनदेन की पूरी प्रक्रिया कैशलेस है। इसकी शुरुआत पांच वर्ष पहले हुई थी। ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [जेएनएन]। आज पूरे देश को कैशलेस लेनदेन के लिए प्रेरित किया जा रहा है, लेकिन दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ ने इस दिशा में कई वर्ष पूर्व ही कदम उठा लिया था। तिहाड़ की सभी जेलों में खरीदारी या लेनदेन की पूरी प्रक्रिया कैशलेस है। इसकी शुरुआत पांच वर्ष पहले हुई थी। वर्ष 2012 में तिहाड़ जेल प्रशासन ने कैदियों को स्मार्ट कार्ड जारी किया था। स्मार्ट कार्ड उनके खातों से जुड़े हैं।

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    जेल अधिकारियों के अनुसार एक कैदी को हर महीने अपने परिजनों से अधिकतम छह हजार रुपये लेने की छूट है। इस पैसे का इस्तेमाल कैदी अपनी रोजमर्रा से जुड़ी चीजों की खरीदारी में कर सकते हैं। इसके लिए तिहाड़ में जगह-जगह दुकान व फूड स्टॉल हैं। तिहाड़ में काम करने योग्य कैदियों से काम भी लिया जाता है, जिसके बदले उन्हें जेल प्रशासन की ओर से भुगतान किया जाता है। भुगतान की यह राशि सीधे स्मार्ट कार्ड में जाने के बजाय कैदी के नाम से तिहाड़ के खाते में जाती है।

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    जेल अधिकारी के अनुसार यह राशि स्मार्ट कार्ड में तभी जाएगी जब स्मार्ट कार्ड में छह हजार से कम रुपये हों क्योंकि स्मार्ट कार्ड में अधिकतम छह हजार की राशि ही जमा हो सकती है। स्मार्ट कार्ड को स्वाइप कर कैदी जेल परिसर में मनचाही चीजों की खरीदारी कर सकते हैं। कैशलेस लेनदेन के कई फायदे हैं। इसमें पाई-पाई का हिसाब रहता है। रिश्वत पर भी काफी हद तक अंकुश लग जाता है।

    तिहाड़ में मजदूरी की दरें तय

    कुशल मजदूरों को तिहाड़ जेल प्रशासन की ओर से 171 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है। अर्धकुशल मजूदर को 138 रुपये व अकुशल मजदूरों को रोजाना काम के एवज में 107 रुपये का भुगतान होता है। इसमें 25 फीसद राशि काट कर कैदी कल्याण कोष में डाली जाती है, जिसे कैदियों के कल्याण से जुड़े कार्यो में जेल प्रशासन की ओर से खर्च किया जाता है।