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    'अपने ही बच्चे के पितृत्व को अस्वीकार करने से अधिक क्रूर कुछ नहीं', तलाक के मामले को लेकर दिल्ली HC की अहम टिप्पणी

    तलाक के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अपने ही बच्चे के पितृत्व से इन्कार करने से अधिक क्रूर कुछ भी नहीं हो सकता है। क्रूरता के आधार पर तलाक देने के पारिवारिक अदालत के निर्णय को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने माना कि परित्यागी नहीं होने के संबंध में पारिवारिक अदालत ने गलत निष्कर्ष निकाला था।

    By Vineet TripathiEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Wed, 11 Oct 2023 09:59 PM (IST)
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    गर्भाधारण की सूचना देने पर भेजे गए संदेश के लिए अदालत ने की पिता की आलोचना

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। तलाक के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अपने ही बच्चे के पितृत्व से इन्कार करने से अधिक क्रूर कुछ भी नहीं हो सकता है। क्रूरता के आधार पर तलाक देने के पारिवारिक अदालत के निर्णय को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने माना कि परित्यागी नहीं होने के संबंध में पारिवारिक अदालत ने गलत निष्कर्ष निकाला था।

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    परिवार अदालत के निर्णय को चुनाैती देने वाली याचिका खारिज करते हुए अदालत ने 10 साल से अधिक समय से अलग रह रहे दंपति को तलाक दे दिया। अदालत ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्ष में कोई त्रुटि नहीं है कि पत्नी का कृत्य स्पष्ट रूप से पति और उसके परिवार के सदस्यों के प्रति क्रूरता है।

    पत्नी के प्रति व्यवहार की अदालत ने की आलोचना 

    हालांकि, गर्भावस्था के बारे में सूचित करने पर व्यक्ति का पत्नी के प्रति व्यवहार की अदालत ने आलोचना की। अप्रैल 2013 में महिला ने अपना वैवाहिक घर छोड़ने के बाद पति को गर्भावस्था की जानकारी दी थी और उसने इसके जवाब में बच्चे के पितृत्व से इन्कार करते हुए एक संदेश लिखा था।

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    अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है, प्रतिवादी (पुरुष) का आचरण न केवल अनुचित था, बल्कि अपीलकर्ता (महिला) के चरित्र के बारे में अंतर्निहित आक्षेप था। अदालत ने कहा कि व्यक्ति के संदेश को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। महिला की अप्रैल 2012 में हुई थी और नवंबर 2013 में एक बच्चे का जन्म हुआ। कुछ समय बाद उनके बीच मतभेद हो गया था और महिला ने अप्रैल 2013 में अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया।

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