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    स्मार्ट फ्लड माॅनिटरिंग नेटवर्क: बाढ़ की चेतावनी मिलेगी रीयल-टाइम, सेंसर और एआई तकनीक से मिलेगी मदद

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 07:56 PM (IST)

    इस वर्ष बाढ़ से हुई भारी क्षति को कम करने के लिए तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। सेंसर आधारित एआई सिस्टम स्मार्ट फ्लड मानिटरिंग नेटवर्क एक सुरक्षा कवच के रूप में उभरा है जो नदियों और नहरों के जल स्तर की निगरानी करता है और बाढ़ की चेतावनी देता है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में सफल परीक्षण के बाद अब 25 राज्यों में विस्तारित करने की योजना है।

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    अब सेंसर आधारित एआई ‘स्मार्ट फ्लड मानिटरिंग नेटवर्क’ से प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा

    अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। बाढ़ और भारी वर्षा ने इस वर्ष उत्तर भारत से लेकर पूर्वोत्तर तक जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था, हजारों घर तबाह हुए, लाखों बेघर हुए और फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। प्राकृतिक आपदा यह कहर वर्ष-दर-वर्ष भारी नुकसान कर रहा है। अब देश को इस कहर से बचाने को तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। ‘सेंसर आधारित एआई सिस्टम स्मार्ट फ्लड मानिटरिंग नेटवर्क’ प्राकृतिक आपदाओं से बचाने को सुरक्षा कवच बनकर सामने आया है।

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    बाढ़ आदि में देगा रीयल टाइम रिपोर्ट

    सेंसर आधारित यह सिस्टम नदियों, नहरों और शहरी नालों के जलस्तर की न सिर्फ रीयल-टाइम निगरानी करता है, बल्कि अचानक बाढ़ आने या जलभराव होने पर एसएमएस और ऐप अर्लट से इसकी चेतावनी नागरिकों और अधिकारियों तक रीयल-टाइम में पहुंचाने का काम भी करता है।

    दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हुए ट्रायल के दौरान यह बाढ़ और जलभराव से सुरक्षा और इनसे होने वाली हानि को कम करने में सहायक सिद्ध हुआ। ट्रायल सफल रहने पर अब इसे 25 राज्यों में विस्तारित करने की योजना है। इसके साथ ही भूकंप और भूस्खलन जैसी अन्य प्राकृतिक आपदाओं से भी इसे जोड़ने की कोशिश की जा रही है।

    वैश्विक माॅडल के तौर पर भी प्रस्तुत कर रही

    स्मार्ट फ्लड माॅनिटरिंग नेटवर्क देश के लिए एक ऐसा सुरक्षा कवच है, जो बाढ़ की त्रासदी को नियंत्रित करने के साथ व्यवस्था को सशक्त बना रहा है। 2030 तक इसे सभी बाढ़-प्रवण क्षेत्रों को इस नेटवर्क से जोड़ने का लक्ष्य है। यह तकनीक भारत को आपदा-प्रतिरोधी राष्ट्र बनाने के साथ आपदा प्रबंधन में देश को वैश्विक माॅडल के तौर पर भी प्रस्तुत कर रही है।

    कैसे करता है काम?

    केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) द्वारा संचालित यह नेटवर्क अल्ट्रासोनिक और एलओ-टी (इंटरनेट आफ थिंग्स) सेंसर पर आधारित है, जो नदियों, नालों और जलाशयों में जलस्तर, प्रवाह और वर्षा को मापता है। सोलर-पावर्ड ये सेंसर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ‘लोरा-वैन’ (लांग रेंज वाइड एरिया नेटवर्क) पर निर्बाध काम करते हैं, इन्हें अन्य किसी उर्जा स्रोत की आवश्यकता नहीं होती।

    जलस्तर खतरे के निशान के आसपास पहुंचता है, सिस्टम ‘फ्लड वाच इंडिा ऐप और एसएमएस के माध्यम से तत्काल अलर्ट जारी करता है। यह सुविधा हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है। विशेष यह कि स्वचलित स्मार्ट फ्लड माॅनिटरिंग नेटवर्क सैटेलाइट डाटा और गणितीय गणना के आधार पर सात दिन का पूर्वानुमान देता है। सीडब्ल्यूसी की 2024-25 की रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में इसके 10 लाख से ज्यादा डाउनलोड्स इसकी लोकप्रियता, विश्वसनीयता और उपयोगिता को दर्शाते हैं।

    दिल्ली और यूपी में प्रयोग रहा सफल

    2025 में दिल्ली में यमुना के बढ़ते जलस्तर पर इस सिस्टम के माध्यम से समय पूर्व मिली सूचना ने हजारों लोगों को समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। उत्तर प्रदेश के वाराणसी और प्रयागराज में गंगा के घाटों पर इसके द्वारा दी गई बाढ़ की चेतावनी ने प्रशासन को त्वरित कार्रवाई का मौका दिया। सीडब्ल्यूसी के आंकड़े बताते हैं कि इस तकनीक ने 2024-25 में बाढ़ से होने वाली क्षति को 20 से 30 प्रतिशत तक कम किया। दिल्ली में शहरी क्षेत्र के बड़े नालों पर लगे सेंसरों ने जलभराव को नियंत्रित कर ट्रैफिक जाम और दुर्घटनाओं को घटाया है।

    देशव्यापी विस्तार की योजना

    जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार मंत्रालय ने 2025-26 के बजट में 5,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें 1,000 नए सेंसर साइट्स शामिल हैं। यह नेटवर्क 25 राज्यों सहित अब महानदी, गोदावरी और कृष्णा जैसी नदियों तक भी पहुंचेगा।

    लोरा-वैन तकनीक ने बढ़ाई कवरेज

    इसकी लोरा-वैन तकनीक (लंबी दूरी तक काम करने वाला कम लागत वाला इंटरनेट, जो सेंसर से आने वाले छोटे-छोटे डाटा को बना किसी रूकावट कंट्रोल रूम तक पहुंचाता है) ग्रामीण कवरेज बढ़ाती है। जबकि एआई और सैटेलाइट डाटा इसके पूर्वानुमानों को सटीक बनाता है। सीडब्ल्यूसी और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) इसे भूकंप, भूस्खलन और चक्रवात जैसी आपदाओं के लिए भी अनुकूलित करने पर काम कर रहे हैं।

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