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54 वर्ष पहले नांगल ठाकरान गांव में इन्हीं दिनों शुरू हुई थी सुपरहिट फिल्म उपकार की शूटिंग

सुपरहिट फिल्म उपकार की शूटिंग बाहरी दिल्ली के नांगल ठाकरान गांव में 54 वर्ष पहले हुई थी। फिल्म के मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती... गीत में मनोज कुमार जिन खेतों में जुताई करते नजर आए थे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 03:29 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 03:29 PM (IST)
54 वर्ष पहले नांगल ठाकरान गांव में इन्हीं दिनों शुरू हुई थी सुपरहिट फिल्म उपकार की शूटिंग
सुपरहिट फिल्म उपकार की शूटिंग बाहरी दिल्ली के नांगल ठाकरान गांव में 54 वर्ष पहले हुई थी। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली [सोनू राणा]। मशहूर अभिनेता मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्म उपकार की शूटिंग बाहरी दिल्ली के नांगल ठाकरान गांव में 54 वर्ष पहले इन्हीं दिनों शुरू हुई थी। कुछ किसानों ने धान की फसल काट ली थी और कुछ की बाकी थी।

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फिल्म के मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती... गीत में मनोज कुमार जिन खेतों में जुताई करते व धान की फसल में हाथ लहराते नजर आ रहे हैं वो नांगल ठाकरान के ही हैं। फिल्म के जो स्कूल व मनोज कुमार का घर दिखाया गया है, वह भी इसी गांव का है। वर्ष 1966 में जिस समय देहात के गांवों में न लाइट होती थी न टीवी होता था। 

उस समय मनोज कुमार बड़े-बड़े जेनरेटर लेकर नांगल ठाकरान के चौधरी जुमन्न सिंह के घर शूटिंग करने पहुंचे थे। करीब दो महीने तक फिल्म की शूटिंग हुई थी। धान कटने से लेकर, खेत की हल से जुताई व गेहूं की बुआई तक के सीन इसी गांव में लिए गए थे। इसके अलावा कुछ सीन दरियापुर झाल व घेवरा रेलवे स्टेशन पर भी फिल्माए गए थे। फिल्म में जो बैल दिखाए गए हैं वह भी गांव के महाबीर, दरियाव सिंह व जीते के बताए जाते हैं। इसके अलावा घोघा गांव के किसानों के बैल भी शुटिंग के दौरान यहां लाए जाते थे। 

पंजाब से शूटिंग देखने आते थे लोग 

जुम्मन सिंह के पोते महेंद्र सिंह ने बताया कि जब गांव में शूटिंग हुई तो वह 14 वर्ष के थे। उस दौरान मनोज कुमार, आशा पारेख, कामिनी कौशल, प्रेम चोपड़ा, प्राण आदि कलाकारों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते थे। आसपास के ग्रामीणों के साथ-साथ पंजाब से भी लोग फिल्म की शुटिंग देखने आते थे।

फिल्म को मिले हैं छह फिल्मफेयर पुरस्कार: 

1967 में रिलीज हुए उपकार फिल्म का निर्देशन भी मनोज कुमार ने ही किया है। इसी फिल्म से मनोज कुमार की भारत कुमार की छवि बनी थी। फिल्म को छह फ़िल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 

ऐसे नांगल ठाकरान पहुंचे थे मनोज कुमार: 

महेंद्र सिंह ने कहा कि मनोज कुमार जब दरियापुर झाल पर इस फिल्म की शुटिंग करने पहुंचे थे तो उन्हे किसी ने नांगल ठाकरान में 13 एकड़ जमीन में धान की खेती कर रहे उनके दादा जुम्मन सिंह के बारे में बताया। इसके बाद वह उनके दादा के पास पहुंचे। उन्होंने घर व खेतों की लोकेशन देखी और एक सप्ताह बाद क्रू को लेकर गांव में पहुंच गए और शूटिंग शुरू कर दी।

गांव के ही मानसिंह ने भी किया है फिल्म में काम: 

नांगल ठाकरान गांव निवासी मानसिंह ने बताया कि उन्होंने भी इस फिल्म में काम किया है। उन्होंने बताया कि फिल्म में जो बच्चा कोल्हु के पास बैलों का चला या हाक रहा है वह वो ही हैं। उन्होंने नीले रंग की शर्ट और निक्कर पहन रखी है।

लस्सी व सरसों का साग करते थे पसंद: 

महेंद्र सिंह ने बताया कि मनोज कुमार व क्रू के सदस्यों को गांव की लस्सी व सरसों का साग काफी पसंद था। वह कई बार गांव में बना सरसों का साग खाते थे और लस्सी भी पीते थे।

मनोज कुमार को अभी भी याद है गांव के खेत! 

मनोज कुमार को अभी भी नांगल ठाकरान गांव के खेत याद हैं! पास के गांव के एक व्यक्ति ने बताया कि वह करीब डेढ़ वर्ष पहले मनोज कुमार से मिलने उनके मुंबई स्थित घर के बाहर पहुंचे थे। जब उन्होंने नांगल ठाकरान गांव का नाम लिया तो मनोज कुमार ने उन्हें अंदर बुलाया और पुराने दिनों को याद किया। उनके अनुसार, मनोज कुमार ने उन्हें बताया भी था कि कैसे उन्होंने दिल्ली से मुंबई तक के ट्रेन के सफर में फिल्म की कहानी लिख दी थी। 

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