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    हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को लगाई फटकार, बेंच ने इन कॉलोनियों को लेकर पूछा बड़ा सवाल

    Updated: Thu, 14 Aug 2025 09:45 AM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सैनिक फार्म कॉलोनी के नियमितीकरण मामले में केंद्र और दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने पूछा कि सरकार इन कॉलोनियों को नियमित करने के लिए क्या कर रही है? अदालत ने अधिकारियों को निवासियों के भविष्य पर मिलकर फैसला लेने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि निवासियों को दशकों से उनके हाल पर छोड़ दिया गया।

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र व दिल्ली सरकार को फटकारा।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दक्षिण दिल्ली की सैनिक फार्म कॉलोनी के नियमितीकरण को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बार फिर केंद्र और दिल्ली सरकार की खिंचाई की।

    मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि अधिकारी इस मुद्दे पर कोई अंतिम निर्णय लेने के बजाय जिम्मेदारी दूसरे पर डाल रहे हैं और अंत में मामला अदालत में आता है। पीठ ने कहा कि मूल प्रश्न यह है कि केंद्र व दिल्ली सरकार इन कॉलोनियों को नियमित करने के लिए क्या कर रही है?

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    पीठ ने दोहराया कि केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय, दिल्ली सरकार, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अधिकारियों को एक साथ बैठकर याचिकाकर्ता निवासियों के भाग्य का फैसला करना चाहिए।

    अदालत ने उक्त टिप्पणी सैनिक फार्म कॉलोनी के नियमितीकरण से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की। इसमें कुछ याचिकाकर्ताओं ने पीठ से एक आदेश पारित करने का भी आग्रह किया था, ताकि उन्हें अपनी संपत्तियों की मरम्मत करने की अनुमति मिल सके।

    बुधवार की सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि अधिकारी निवासियों की समस्याओं को कम करने के लिए एक सरल कानून क्यों नहीं बना सकते। पीठ ने कहा कि वे मरम्मत के लिए भी एक ईंट भी नहीं रख पाए हैं और पिछले 10-15 सालों से उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है और कोई भी सरकार उनकी समस्याओं को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रही है।

    अदालत ने आगे कहा कि स्थानीय निवासी दशकों से वहां रह रहे हैं और अब कहीं नहीं जा रहे हैं। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के ने कहा कि केंद्र की 2019 की अधिसूचना दिल्ली सरकार को समृद्ध कालोनियों के मुद्दों में हस्तक्षेप करने से रोकती है।

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    इस पर पीठ ने कहा कि दिल्ली प्रशासन को संबंधित अधिकारियों के समक्ष अपनी बात रखनी होगी। पीठ ने कहा कि निवासी 1950 के दशक से रह रहे हैं और सभी निर्माण अवैध हैं, लेकिन अगर आप इतने बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ करते हैं तो हम याचिकाओं को खारिज करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।