बच्चों के लिए Cyber Space में फैले खतरों को हल्के में नहीं लिया जा सकता: Delhi High Court
दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चों के लिए सुरक्षित डिजिटल स्पेस की आवश्यकता पर बल दिया है। अदालत ने पाक्सो मामले में एक दोषी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि साइबर स्पेस में खतरों को कम नहीं आंका जा सकता। दोषी ने एक नाबालिग लड़की की तस्वीर से छेड़छाड़ की थी। अदालत ने कहा कि तकनीक का इस्तेमाल कर बच्चों को मानसिक जख्म देना शारीरिक हमले से अधिक गंभीर है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। बच्चों के लिए Safe Digital Space मुहैया कराने की बात करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि बदलते दौर में केवल फिजिकल स्पेस तक बच्चों की सुरक्षा सीमित नहीं हो सकती है।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि Cyber Space में फैले खतरों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इससे होने वाले नुकसान को यह कह कर कम नहीं कर सकते हैं कि कोई शारीरिक संपर्क नहीं हुआ था।
अदालत ने कहा कि शैक्षिक जरूरतों के लिए डिजिटल स्पेस में आज बच्चे काफी समय बिता रहे हैं और डिजिटल दुनिया की मांग है कि उसे लेकर सुरक्षा बढ़ाई जाए।
अदालत ने कहा कि कोरोना महामारी के बाद मोबाइल फोन और इंटरनेट का उपयोग सीखने के लिए जरूरी साधन बन गए हैं और इसके दुरुपयोग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि दोषी तकनीक का इस्तेमाल कर बच्चों को मानसिक व दर्दनाक जख्म देते हैं, जो कई बार शारीरिक हमले से अधिक खतरनाक होता है।
अदालत ने यह टिप्पणियां पाक्सो मामले में दोष सिद्धि और पांच साल की सजा को चुनौती देने वाली एक दोषी की अपील याचिका खारिज करते हुए की।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि दोषी ने नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की का चेहरा किसी अन्य के नग्न शरीर पर बदल कर छेड़छाड़ की थी।
दोषी अपीलकर्ता ने धमकी भरा संदेश भेजकर पीड़िता को चेतावनी दी थी कि अगर वह उसकी मांगें पूरी नहीं करती है तो अश्लील सामग्री इंटरनेट पर अपलोड और प्रसारित कर दी जाएगी।
पीठ ने कहा कि एक बार बनाई और प्रसारित की गई एक विकृत तस्वीर, किसी बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य, गरिमा और उसकी प्रतिष्ठा को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकती है।
इस तरह के प्रसार का डर, भले ही तस्वीर वास्तव में कभी प्रकाशित न हुई हो, एक युवा मन को आतंकित करने के लिए पर्याप्त है।
दोष सिद्धि को बरकरार रखते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता की गवाही, विशेषज्ञ साक्ष्य और फोरेंसिक रिपोर्ट द्वारा के आधार पर मामले को संदेह से परे साबित करने में सफल रहा।
झूठा फंसाने के दोषी के तर्क को अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि किसी भी विश्वसनीय साक्ष्य से इसकी पुष्ट नहीं हुई।
दोषी के प्रति नरमी बरतने की दलील पर पीठ ने कहा कि कानून को यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि साइबर स्पेस में बच्चों के खिलाफ किए गए अपराधों को अत्यंत गंभीरता से लिया जाता है और इसके परिणाम पीड़ित पर पड़ने वाले प्रभाव की गंभीरता को दर्शाते हैं।
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