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    IIT बॉम्बे और पुणे की रिसर्च में खुलासा, नदियों को आपस में जोड़ने से मानसून पर पड़ सकता प्रतिकूल असर

    By Jagran NewsEdited By: Shubham Sharma
    Updated: Sat, 07 Oct 2023 04:30 AM (IST)

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बाम्बे (आईआईटी-बी) भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे आस्ट्रेलिया व सऊदी अरब के विश्वविद्यालयों द्वारा देश में जारी रिवर इंटरलिंकिंग परियोजनाओं पर किए गए एक अध्ययन से। कुछ दिन पहले ही में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार भारत के कुछ शुष्क क्षेत्रों में सितंबर के दौरान औसत वर्षा में 12 प्रतिशत तक की संभावित कमी दर्ज की जा सकती है।

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    नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाएं मानसून पर डाल सकती प्रतिकूल असर।

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत ने बढ़ती आबादी की पानी की मांग को पूरा करने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने यानी रिवर इंटरलिंकिंग से मानसून पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। एक शोध से पता चला है कि रिवर इंटरलिंकिंग परियोजनाएं भूमि एवं वायुमंडल के बीच परस्पर क्रिया को बाधित कर सकती हैं और हवा में नमी की मात्रा व हवा के पैटर्न को भी प्रभावित कर सकती हैं।

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    रिवर इंटरलिंकिंग परियोजना पर अध्य्यन

    इसके चलते पूरे देश में बरसात के पैटर्न में बदलाव आ सकता है। यह सामने आया है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बाम्बे (आईआईटी-बी), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे, आस्ट्रेलिया व सऊदी अरब के विश्वविद्यालयों द्वारा देश में जारी रिवर इंटरलिंकिंग परियोजनाओं पर किए गए एक अध्ययन से। कुछ दिन पहले ही में 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित इस अध्ययन कि मानें तो इसी के चलते भारत के कुछ शुष्क क्षेत्रों में सितंबर के दौरान औसत वर्षा में 12 प्रतिशत तक की संभावित कमी दर्ज की जा सकती है।

    पानी की बढ़ती मांग

    यह वो क्षेत्र हैं जो पहले से ही पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने नीति निर्माताओं और हितधारकों से जल सुरक्षा और जलवायु लचीलेपन पर जल प्रबंधन की योजना बनाते समय नदियों को आपस में जोड़ने के संभावित परिणामों पर विचार करने का आग्रह किया है। मालूम हो कि भारत की रिवर इंटरलिंकिंग परियोजनाओं का उद्देश्य है आमजन की पानी की बढ़ती मांग को देखते हुए वाटर बेसिनों में अधिकतम पानी बनाए रखना।

    यह वो पानी है जो पहले नदी घाटियों से महासागरों तक पहुंचता था। शोधकर्ताओं ने भारत की प्रमुख नदी घाटियों जैसे गंगा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, नर्मदा-तापी और कावेरी पर मिट्टी की नमी, वर्षा, सापेक्ष आर्द्रता और हवा सहित विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया।

    हाइड्रोलॉजिकल परियोजनाओं से अधिकतम लाभ

    आईआईटी बाम्बे के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता सुबिमल घोष कहते हैं, 'ऐसे जल प्रबंधन निर्णय अगर जल चक्र के पूरे सिस्टम दृष्टिकोण, विशेष रूप से भूमि से वायुमंडल और मानसून तक फीडबैक प्रक्रियाओं पर विचार करते हुए लिए जाते हैं, तो रिवर इंटरलिंकिंग जैसी बड़े पैमाने की हाइड्रोलॉजिकल परियोजनाओं से अधिकतम लाभ मिलेगा।'

    वहीं, सेंटर फार क्लाइमेट चेंज रिसर्च, आईआईटीएम पुणे के जलवायु विज्ञानी राक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं, 'दीर्घकालिक डेटा की एनालिसिस से पता चलता है कि कुछ नदी घाटियों में मानसूनी वर्षा पैट्रन में बदलाव हुआ है। विशेष रूप से मानसूनी वर्षा की कुल मात्रा में कमी और लंबी शुष्क अवधि की ओर रुझान दिखाई दिया है। इसके चलते यह बेहद ज़रूरी है कि किसी भी नदी जोड़ने की परियोजना से पहले उसका पूरा मूल्यांकन किया जाए।'

    भूमि वायुमंडल प्रतिक्रिया के प्रभाव को समझाना जरूरी

    उन्होंने बताया कि 'वर्षा में कमी के चलते मानसून के बाद एक पानी देने वाले बेसिन की दूसरे कम पानी वाले बेसिनों में पानी भेजने की क्षमता भी कम हो सकती है। इसलिए, हमारा सुझाव है कि रिवर इंटरलिंकिंग के फैसलों से पहले भूमि-वायुमंडल प्रतिक्रिया के प्रभावों को समझा जाए, फैसले का पुनर्मूल्यांकन किया जाए। क्योंकि आपस में जुड़े नदी बेसिनों में जल संतुलन की काफी आवश्यकता है।'

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