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    'स्वास्थ्य का अधिकार' अधिनियम से अस्पतालों की मनमानी पर से लगेगा अंकुश

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Tue, 12 Dec 2017 03:38 PM (IST)

    अशोक अग्रवाल ने कहा कि निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक तभी लग सकती है जब स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम बने, स्वास्थ्य विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में लाया जाए।

    'स्वास्थ्य का अधिकार' अधिनियम से अस्पतालों की मनमानी पर से लगेगा अंकुश

    नोएडा [ललित मोहन बेलवाल]। स्वास्थ्य सुविधा जिदंगी की मूलभूत जरूरतों में से एक है, लेकिन इसके लिए लोगों को बेहद जद्दोजहद करनी पड़ती है। निजी अस्पतालों की मनमानी और संगठित लूट तो जगजाहिर है। बीते दिनों सात वर्षीय डेंगू पीड़ित बच्ची आद्या की मौत व गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल द्वारा उसके इलाज के लिए 16 लाख रुपये का बिल मांगने तथा दिल्ली के मैक्स अस्पताल के दो डॉक्टरों द्वारा जीवित नवजात को मृत बताने के मामलों ने इस समस्या को केंद्र बिंदु पर ला दिया है। सोमवार को दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में निजी अस्पतालों की मनमानी पर कैसे लगाम लगे विषय पर आयोजित अकादमिक गोष्ठी में बतौर अतिथि वक्ता हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील अशोक अग्रवाल पहुंचे।

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    स्वास्थ्य विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में लाया 

    अशोक अग्रवाल ने कहा कि निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक तभी लग सकती है जब स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम बने, स्वास्थ्य विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में लाया जाए और राष्ट्रीय स्तर का कानून बने। देश में स्वास्थ्य का अधिकार कानून बनाए जाने की जरूरत है। इसके जरिये अस्पतालों द्वारा इलाज करने से इन्कार पर लोग अदालत में जा सकते हैं।

    स्वास्थ्य का अधिकार कानून

    मौजूदा समय में कुछ राज्यों में लागू क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 को उन्होंने नाकाफी बताया। उन्होंने कहा कि यह कानून न तो सभी राज्यों में लागू है और न इसमें अस्पतालों की लूट पर कार्रवाई के बारे में कुछ दिखता है। इसकी जगह स्वास्थ्य का अधिकार कानून हो, इसके लिए वह दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार के समय स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया से मिले थे।

    देशव्यापी कानून बनाने को इच्छुक नहीं

    अग्रवाल ने उनसे दिल्ली राइट टू पब्लिक हेल्थ बनाने की मांग की तो किरण वालिया का जवाब था, कैसे लाएंगे, ऐसा करने पर तो हमारे ऊपर मुकदमे हो जाएंगे। इसके बाद मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने उन्हें बुलाया तो उनसे भी उन्होंने यही मांग की। दिलचस्प है कि जैन भी बिल्कुल वही जवाब देकर मुकर गए जो किरण वालिया ने दिया था। बकौल अग्रवाल कोई भी स्वास्थ्य को लेकर देशव्यापी कानून बनाने को इच्छुक नहीं है।

    जनता का मूलभूत अधिकार 

    अग्रवाल ने स्वास्थ्य के अधिकार कानून की महत्ता बताते हुए कहा कि मौजूदा समय में यदि कोई अस्पताल इलाज करने से मना करता तो व्यक्ति अदालत जाता है। कोर्ट अस्पताल से कहता है कि इलाज कीजिए लेकिन पहले यह सुनिश्चित कर लें कि मरीज सरकार की किसी योजना के अंतर्गत आता हो। यानी यदि आप सरकार की किसी स्कीम में हैं तभी आपके पास स्वास्थ्य का अधिकार है। यदि स्वास्थ्य का अधिकार एक्ट होगा तो यह जनता का मूलभूत अधिकार बन जाएगा।

    छूट देने से बचते हैं अस्पताल 

    उन्होंने दिल्ली-एनसीआर के कई निजी अस्पतालों का उदाहरण देते हुए उनके द्वारा की जा रही संगठित लूट के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि निजी अस्पताल ईडब्ल्यूएस वर्ग को ओपीडी व ईपीडी में मिलने वाली क्रमश: 25 फीसद और 10 फीसद की छूट देने से अक्सर बचते हैं। उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा कि यदि सरकारी अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं होंगी तो आम आदमी को निजी अस्पतालों में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

    स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठाए सवाल

    दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था के बारे में वरिष्ठ वकील अशोक अग्रवाल ने कहा कि उसकी मंशा है कि दिल्ली से बाहर के मरीजों का इलाज दिल्ली में न हो। मसलन, हाल ही में दिल्ली सरकार ने आदेश दिया कि यदि सरकारी अस्पताल इलाज के लिए 30 दिन से ज्यादा का समय देते हैं तो मरीज निजी अस्पताल में इलाज करा सकता है। इस पर आने वाला खर्च दिल्ली सरकार वहन करेगी, लेकिन शर्त यह है कि वह दिल्ली का निवासी हो। वहीं, अगर किसी को जानलेवा बीमारी है तो मरीज को पांच लाख तक की मदद दी जा सकती है। शर्त फिर वही कि मरीज दिल्ली का रहने वाला हो। यहां देशभर के लोग इलाज के लिए आते हैं।

    मैक्स का लाइसेंस रद करना लोकलुभावन फैसला

    दिल्ली सरकार द्वारा मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद करने के फैसले को उन्होंने लोकलुभावन बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर के आधार पर रजिस्ट्रेशन होता है और इसी आधार पर लाइसेंस रद किया जा सकता है। बकौल, अशोक अग्रवाल यदि मामला अदालत में जाता है तो फैसला अस्पताल के पक्ष में आएगा। 

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