अस्पताल प्रबंधन नहीं मरीजों के हित को प्रमुखता दें डॉक्टर: आइएमए
आइएमए ने 30 सूत्रीय दिशा-निर्देश प्रस्तुत किया। उसने निजी अस्पतालों से अपील की कि वे इलाज व दवा लिखते समय मरीजों के हित का ख्याल रखें, न कि अस्पताल प्रबंधन व मुनाफे का।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में डेंगू के इलाज के लिए भारी-भरकम बिल वसूलने के बाद भी बच्ची की मौत व शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल में जिंदा नवजात को मृत बताने के मामले में सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि आइएमए हर राज्य में मेडिकल रिड्रेसल आयोग गठित करेगा, जो निजी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता व इलाज के खर्च का निरीक्षण करेगा।
30 सूत्रीय दिशा-निर्देश प्रस्तुत
आइएमए ने 30 सूत्रीय दिशा-निर्देश प्रस्तुत किया। उसने निजी अस्पतालों से अपील की कि वे इलाज व दवा लिखते समय मरीजों के हित का ख्याल रखें, न कि अस्पताल प्रबंधन व मुनाफे का। हालांकि, आइएमए के दिशा-निर्देश को कितने निजी अस्पताल मानेंगे इस पर संदेह है।
दिशा-निर्देश को मानने का आश्वासन
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अपोलो, मेदांता, फोर्टिस व मैक्स अस्पताल सहित सभी बड़े अस्पतालों के प्रबंधन से बात कर यह फैसला लिया गया है। सभी अस्पतालों ने आइएमए के दिशा-निर्देश को मानने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि हाल की घटनाओं से डॉक्टर भी तनाव में हैं। मरीजों का भी डॉक्टरों पर से विश्वास उठता जा रहा है। यह चिकित्सा जगत के लिए ठीक नहीं है। निजी अस्पतालों पर आरोप लगता है कि दवा कंपनियों से साठगांठ कर मनमुताबिक दवाओं की एमआरपी तय करा लेते हैं। दवाओं पर सेवा शुल्क लेने का भी आरोप लगता है। एसोसिएशन ने सभी अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वे सरकार द्वारा निर्धारित जरूरी दवाओं की सूची से ही दवाएं लिखें। इस दायरे से बाहर की दवा लिखते समय मरीज को उसका कारण बताएं।
एक दवा, एक कीमत तय करे सरकार
एसोसिएशन ने दवाएं महंगी होने के लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि एक ही तरह की दवाएं तीन अलग-अलग कीमतों पर बिक रही हैं। दवा कंपनियां डॉक्टरों को महंगी दवा लिखने का लालच देती हैं। इसे रोकने के लिए सरकार एक दवा, एक कीमत तय करे। डिस्पोजेबल को जरूरी दवाओं की सूची में शामिल कर उसकी कीमत निर्धारित की जाए। एसोसिएशन के पदाधिकारी एक-दो दिनों में दिल्ली सरकार से मुलाकात करेंगे।
अस्पताल होटल की तरह का व्यवसाय नहीं है
एसोसिएशन का कहना है कि अस्पताल होटल की तरह का व्यवसाय नहीं है। इसलिए मरीजों से पूछकर ही अस्पतालों में सिंगल रूम या जनरल वार्ड की सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए। अस्पताल से अनुबंध करते समय डॉक्टर यह ध्यान दें कि कोई अस्पताल प्रबंधन उन पर टारगेट थोपने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। इलाज से पहले मरीज को संभावित खर्च व इलाज के दौरान होने वाली परेशानियों की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।
सरकारी अस्पतालों में सुधार करे सरकार
उन्होंने कहा कि इमरजेंसी सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। निजी अस्पतालों में आइसीयू केयर महंगा है। इसलिए सरकार को उन्हें सब्सिडी देनी चाहिए। सरकारी अस्पतालों में सुविधा नहीं होने से मरीज निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। इसलिए केंद्र व दिल्ली सरकार सरकारी अस्पतालों में भी सुविधाओं में सुधार करे। इस बाबत एसोसिएशन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य सचिव व दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को पत्र लिखेगा। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन द्वारा तैयार दिशा-निर्देश को भारतीय मेडिकल काउंसिल (एमसीआइ) व राज्यों के मेडिकल काउंसिल अपने प्रोटोकॉल में शामिल करे। इसके लिए एसोसिएशन मेडिकल काउंसिल को भी पत्र लिखेगा।
अस्पतालों को जारी अन्य निर्देश
-सभी निजी अस्पताल शिकायतों के निवारण के लिए कमेटी बनाएं जिसका चेयरमैन बाहर का कोई सदस्य हो।
-निजी अस्पतालों में अर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की मदद के लिए सामाजिक कल्याण केंद्र खोले जाएं।
-बिल में विवाद होने पर भी अस्पताल मरीज का इलाज बंद नहीं करेंगे।
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