Delhi Water Crisis: दिल्ली में क्यों बढ़ता जा रहा जल संकट? कागजों पर कुछ और हकीकत चौंकाने वाली
दिल्ली में अधिकतर जलस्रोत अतिक्रमण का शिकार हैं। अवैध अतिक्रमण हटाना और जलस्रोतों को उनके मूल स्वरूप में वापस लाना बड़ी चुनौती है। इसके आगे प्रशासन भी बेबस नजर आ रहा है। यही वजह है कि अधिकतर जलस्रोत अब इस्तेमाल लायक नहीं बचे हैं। प्रशासनिक लापरवाही का अंदाजा दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी गई रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते राजधानी में जलस्रोत खत्म होते जा रहे हैं। अधिकतर जलस्रोत अतिक्रमण का शिकार हैं। अवैध अतिक्रमण हटाना और जलस्रोतों को उनके मूल स्वरूप में वापस लाना बड़ी चुनौती है।
जलस्रोत अब इस्तेमाल लायक नहीं
इसके आगे प्रशासन भी बेबस नजर आ रहा है। यही वजह है कि अधिकतर जलस्रोत अब इस्तेमाल लायक नहीं बचे हैं। प्रशासनिक लापरवाही का अंदाजा दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी गई रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, शहर में सूचीबद्ध 50 फीसदी जलस्रोतों का अस्तित्व खत्म हो चुका है।
दिल्ली में कागजों पर कुल 1367 जल निकाय
वर्ष 2021 में राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली में 1045 जल निकायों की पहचान की गई है और इसके बाद उपग्रह चित्रों से जियोस्पेशियल दिल्ली लिमिटेड (जीएसडीएल) द्वारा 322 अन्य जल निकायों की पहचान की गई है।
इस तरह, दिल्ली में कागजों पर कुल 1367 जल निकाय हैं। लेकिन, जमीनी हकीकत इससे अलग है। 1045 में से, केवल 631 ही अब अस्तित्व में हैं। वहीं, जीएसडीएल द्वारा पहचाने गए 322 में से, केवल 43 ही जमीन पर पाए गए हैं। इस तरह, दिल्ली में वर्तमान में 674 जल निकाय मौजूद हैं। इनमें से भी अधिकांश की हालत दयनीय है।
दो साल पहले जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में केवल 237 जल निकाय ही उपयोग करने योग्य बचे हैं। अतिक्रमण और अन्य कारणों से, अधिकांश जल स्रोत या तो गायब हो गए हैं या अब उपयोग करने योग्य नहीं हैं।
जल निकायों की जमीन पर अतिक्रमण
एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट और जल शक्ति मंत्रालय की सर्वे रिपोर्ट से साफ है कि दिल्ली में जल निकायों को संरक्षित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। कहीं निजी लोगों ने जल निकायों की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया, तो कई जगहों पर सरकारी एजेंसियों ने निर्माण कर लिए।
कई जगहों पर कचरा डालकर जल निकायों को नष्ट कर दिया गया। इनके संरक्षण का काम सिर्फ कागजों पर ही हुआ।
आम लोग, औद्योगिक इकाइयां और सरकारी एजेंसियां कई जल निकायों में कचरा डालकर उनके पानी को प्रदूषित कर रही हैं। इसे रोकने के लिए उन्हें वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 के तहत अधिसूचित किया जाना जरूरी है।
दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी द्वारा चिन्हित 20 जल निकायों को इस नियम के तहत लाया जाना है, जिनमें संजय झील, हौज खास झील, भलस्वा झील, टिकरी खुर्द झील, वेलकम झील, दरियापुर कलां, सरदार सरोवर झील शामिल हैं। लेकिन आज तक इनमें से एक भी इसके तहत अधिसूचित नहीं हुआ है।
सरकार की लापरवाही
नेचुरल हेरिटेज फर्स्ट के संयोजक दीवान सिंह का कहना है कि सरकार की इच्छा शक्ति की कमी के कारण दिल्ली के जलस्रोत खत्म होते जा रहे हैं। तालाबों को पुनर्जीवित करने का अधिकार समुदाय को नहीं है और सरकार यह काम नहीं करना चाहती।
अगर कोई आम नागरिक अपने स्तर पर तालाबों को बचाने की कोशिश करता है तो उसे यह कहकर रोक दिया जाता है कि यह सरकारी संपत्ति है। रोहिणी, द्वारका, वसंत कुंज जैसी नियोजित कॉलोनियों में सीवर लाइन और स्टॉर्म ड्रेन अलग-अलग हैं। यहां स्थित जलस्रोतों को थोड़े प्रयास से बचाया जा सकता है। स्टॉर्म ड्रेन से तालाबों तक साफ पानी पहुंचाना होगा।
यह काम भी नहीं हो रहा है। हाईकोर्ट ने वर्ष 2000 में दिल्ली के छह सौ से अधिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का आदेश दिया था, लेकिन उसका पालन आज तक नहीं हुआ।
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