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    आखिर 'काला'‌ क्यों पड़ रहा है 'लाल किला'? रिपोर्ट में सामने आई चौंकाने वाली वजह

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 05:53 PM (IST)

    दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से लाल किले की दीवारों पर काली परत जम रही है। एक अध्ययन में पाया गया है कि सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे जहरीले तत्व लाल किले की सतह पर जमा हो रहे हैं जिससे इसका लाल रंग काला पड़ रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि प्रदूषण नियंत्रित नहीं किया गया तो अन्य ऐतिहासिक इमारतों को भी नुकसान पहुंच सकता है।

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    17वीं सदी में बना लाल किला, अब धीरे-धीरे अपना लाल रंग खो रहा है।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली की दमघोंटू जहरीली हवा सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि इतिहास के लिए भी खतरा बन चुकी है।

    जी हां ! लाल किला काला पड़ रहा है। विश्वास नहीं हो रहा न, लेकिन वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में इसकी तस्दीक की है।

    17वीं सदी में बना लाल किला, जो सूरज की रोशनी में लाल चमकता था, अब धीरे-धीरे अपना यही लाल रंग खो रहा है।

    इसकी लाल बलुआ पत्थर की दीवारें काली पड़ने लगी हैं। क्या आप जानते हैं कि इसकी वजह क्या है? इसकी वजह कुछ और नहीं बल्कि दिल्ली का प्रदूषण ही है।

    प्रदूषण की वजह से बन रही हैं ‘काली परतें’

    • एक नए Indo-Italian वैज्ञानिक अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली की जहरीली हवा में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य रासायनिक तत्व लाल किले की सतह पर 'Black Crust' यानी काली परतें जमा रहे हैं।
    • इन परतों में जिप्सम, क्वार्ट्ज, सीसा (Lead), तांबा (Copper) और जिंक (Zinc) जैसे भारी धातु अध्ययन में पाई गई हैं।
    • ये सभी तत्व वाहनों व फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं और निर्माण कार्यों की धूल से हवा में घुल जाते हैं। जोकि लाल किला की दीवारों पर जमकर इस पर काले रंग की परत जमा रहे हैं। इतना ही नहीं लाल किला के ढांचे को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

    Indo-Italian अध्ययन के सामने आए चौंकाने वाले नतीजे

    यह अध्ययन 2021 से 2023 के बीच भारत और इटली के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया था। जिसकी 

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    रिपोर्ट जून 2025 में Heritage जर्नल में प्रकाशित हुई है।

    वैज्ञानिकों ने किले की दीवारों से लिए गए नमूनों का रासायनिक विश्लेषण किया और उनकी दिल्ली की वायु गुणवत्ता से तुलना की।

    नतीजा चौंकाने वाला था। किले की सतह पर बनने वाली ये काली परतें 55 से 500 माइक्रोमीटर मोटी हैं और इनमें जिप्सम, बैसानाइट और वेडलाइट जैसे तत्व मौजूद हैं। इन पदार्थों में कैल्शियम के बाहरी स्रोत पाए गए, जो साफ तौर पर यह साबित करते हैं कि ये प्रदूषण की देन हैं।

    काली परत बनने के हैं ये मुख्य कारण

    1. निर्माण और औद्योगिक गतिविधियां: सड़कों की धूल, सीमेंट फैक्ट्रियों और निर्माण कार्यों से निकलने वाले कण बड़ी वजह हैं।
    2. वाहन से निकल रहा धुआं: वाहनों के धुएं से निकलने वाले तत्व जैसे टाइटेनियम, वैनाडियम, क्रोमियम, मैंगनीज, निकल, तांबा, जिंक, बैरियम और सीसा।
    3. जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल: कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों के जलने से निकलने वाले गैसें और सूक्ष्म धूलकण।

    अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दी है चेतावनी

    अध्ययन में वैज्ञानिकों की ओर से दी गईं चेतावनियां बेहद गंभीर हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो हुमायूं का मकबरा जैसे अन्य ऐतिहासिक स्मारक भी जल्द ब्लैक क्रस्ट की भेंट चढ़ जाएंगे।

    वैज्ञानिकों से इससे बचाव के समाधान भी सुझाएं

    रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने इस स्थिति से बचाव के लिए कुछ समाधान भी सुझाए हैं। उनका कहना है कि शुरुआती चरण में बनने वाली काली परतें बिना पत्थर को नुकसान पहुंचाए हटाई जा सकती हैं।

    इसके लिए नियमित सफाई और रखरखाव अभियान की जरूरत है। स्टोन प्रोटेक्टिव कोटिंग्स लगाई जा सकती है, जिससे पत्थर की सतह को प्रदूषण से नुकसान नहीं होगा।

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