Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Poet Manglesh Dabral:...और बुझ गई 'पहाड़ पर लालटेन', कुछ इस तरह याद किए गए मंगलेश

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Thu, 10 Dec 2020 01:37 PM (IST)

    मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह पहाड़ पर लालटेन घर का रास्ता हम जो देखते हैं आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु प्रकाशित हुए। इसके अलावा इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन भी प्रकाशित हुए हैं।

    Hero Image
    प्रसिद्ध साहित्यकार मंगलेश डबराल की फाइल फोटो

    नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। प्रसिद्ध साहित्यकार मंगलेश डबराल का बुधवार शाम निधन हो गया। करीब 15 दिनों तक कोरोना से लड़ने के बाद मंगलेश डबराल ने आखिरी सांस ली। उनके निधन के बाद साहित्य जगत स्तब्ध हैं। वरिष्ठ साहित्यकार समेत पाठक द्वारा फेसबुक, ट्विटर पर शोक संदेश लिख श्रद्धांजलि अíपत कर रहे हैं। मंगलेश डबराल के शब्दों की गूंज हमेशा कायम रहेगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने कहा कि वे एक अच्छे और लोकप्रिय कवि ही नहीं श्रेष्ठ अनुवादक और संगीत और सिनेमा के गहरे पारखी थे। उनके किए अनुवादों से हिंदी पाठक कई विदेशी कवियों को पढ़ और समझ पाए। उनके निधन से भारतीय साहित्य को बड़ी क्षति पहुंची है। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने भावुक फेसबुक पोस्ट लिखा। उन्होने लिखा कि मंगलेश तुम्हें वेंटिलेटर पर जाते देखकर भी हताश निराश नहीं हुए थे हम। मगर तुमने तो ऐसी दूरी बना ली कि पुकारने की बात ही..।

    मंगलेश डबराल की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा देहरादून में हुई। दिल्ली आकर हिंदी पैट्रियट, प्रतिपक्ष में काम किया। जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद भी संभाला। मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु प्रकाशित हुए। इसके अलावा इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन भी प्रकाशित हुए हैं।

    वरिष्ठ साहित्यकार दिविक रमेश ने लिखा सचमुच बहुत ही दुखद। शाम छह बजे के लगभग उनकी बेटी अलमा से पता चला था कि किडनी में दिक्कत के चलते स्वास्थ्य में सुधार नहीं है। तो भी पूरा भरोसा था कि इस दिक्कत से हमारे प्यारे और मजबूत कवि मंगलेश डब्राल निपट लेंगे। ओह, विनम्र श्रद्धांजलि।

    23 नवंबर को लिखा था बुखार वाला किस्सा

    बीमारी के बावजूद मंगलेश डबराल फेसबुक पर सक्रिय थे। 23 नवंबर को उन्होने बुखार का एक किस्सा लिखा था। उन्होने लिखा कि बुखार की दुनिया भी बहुत अजीब है। वह यथार्थ से शुरू होती है और सीधे स्वप्न में चली जाती है। वह आपको इस तरह झपोड़ती है जैसे एक तीखी-तेज हवा आहिस्ते से पतझड़ में पेड़ के पत्तों को गिरा रही हो। वह पत्ते गिराती है और उनके गिरने का पता नहीं चलता। जब भी बुखार आता है, मैं अपने बचपन में चला जाता हूं। हर बदलते मौसम के साथ बुखार भी बदलता था। बारिश है तो बुखार आ जाता था, धूप अपने साथ देह के बढ़े हुए तापमान को ले आती और जब बर्फ गिरती तो मां के मुंह से यह जरूर निकलता..अरे भाई, बर्फ गिरने लगी है, अब इसे जरूर बुखार आएगा। उन्होने बुखार उतरने के दौरान की यादों को भी पोस्ट में सहेजा। लिखा कि बुखार सरसरा कर उतरता। बहुत आहिस्ता, जैसे सांप अपनी केंचुली उतारता। 

    Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो