दिल्ली में दिखने लगे लुप्तप्राय ग्रेटर फ्लेमिंगो और इंडियन पिट्टा, इस साल दिल्ली में पहली बार दिखीं 21 प्रजातियां
इस गर्मी में दिल्ली में 21 दुर्लभ पक्षी प्रजातियां पहली बार देखी गईं जिनमें ग्रेटर फ्लेमिंगो और इंडियन पिट्टा शामिल हैं। दिल्ली बर्ड एटलस में 160 से अधिक प्रजातियां दर्ज हैं। वन्यजीव एसओएस और वन विभाग की पहल में नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है जिससे लगभग 500 पक्षियों को बचाया गया। यह पहल जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में संरक्षण के लिए आवश्यक है।

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। लंबी गर्दन और गुलाबी-सफेद पंखों वाला ग्रेटर फ्लेमिंगो (राजहंस) और अपनी विशिष्ट आवाज के लिए पहचाना जाने वाला भारतीय पिट्टा, इस गर्मी में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पहली बार नजर आये 21 पक्षी प्रजातियों में शामिल हैं। ‘दिल्ली बर्ड एटलस’ में 160 से अधिक पक्षी प्रजातियां दर्ज की गयी हैं, जिनमें लुप्तप्राय और प्रवासी प्रजातियां भी हैं।
एक बयान के अनुसार, एटलस के ग्रीष्मकालीन चरण में 21 पक्षी (प्रजातियां) पहली बार नजर आये जबकि ‘ईबर्ड प्लेटफार्म’ पर 600 से अधिक पक्षियों को अपलोड किया गया, जो शीतकालीन में दर्ज की गयी संख्या से अधिक है।
पहली बार देखे जाने वाले पक्षी
यह वन्यजीव एसओएस और दिल्ली वन एवं वन्यजीव विभाग द्वारा समर्थित एक अग्रणी नागरिक विज्ञान पहल है। ग्रेटर फ्लेमिंगो (फोनीकोप्टेरस रोजस), ब्लैक बिटर्न (इक्सोब्रीचस फ्लेविकोलिस), बोनेली ईगल (एक्विला फैसिआटा) और इंडियन पिट्टा (पिट्टा ब्रैच्युरा) पहली बार देखे जाने वाले पक्षियों में शामिल हैं।
अधिकारियों ने बताया कि इस परियोजना के लिए दिल्ली को 145 अवलोकन क्षेत्रों में विभाजित किया गया था जिसका उद्देश्य विभिन्न मौसमों में पक्षियों के वितरण पैटर्न की दीर्घकालिक समझ पैदा करना है। वाइल्डलाइफ़ एसओएस में विशेष परियोजनाओं के निदेशक वसीम अकरम ने कहा दिल्ली में अनियमित जलवायु पैटर्न और बढ़ते प्रदूषण के कारण बर्ड एटलस जैसी पहल और भी जरूरी हो गई है।
डेटा-समर्थित संरक्षण रणनीति बनाने के लिए एक ‘समुदाय-संचालित प्रयास'
मुख्य वन्यजीव वार्डन श्याम सुंदर कांडपाल ने कहा कि यह सिर्फ एक वैज्ञानिक पहल नहीं है, बल्कि लोगों को प्रकृति से फिर से जोड़ने और राजधानी के लिए डेटा-समर्थित संरक्षण रणनीति बनाने के लिए एक ‘समुदाय-संचालित प्रयास’ है।
यह पहल घायल या संकटग्रस्त पक्षियों को खोजने और रिपोर्ट करने में नागरिकों की बढ़ती भूमिका को भी रेखांकित करती है, जिससे अक्सर बचाव अभियान में मदद मिलती है। मई में ही इसकी मदद से लगभग 500 पक्षियों को बचाया गया।
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