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    जरूरतमंद बच्चों की देखभाल भी नहीं कर सकी पिछली सरकार, CAG Report में हुआ नया खुलासा

    Delhi Assembly 2025 दिल्ली विधानसभा में चल रहे सत्र में पेश किए कैग रिपोर्ट में एक नया खुलासा हुआ है। जिसमें कहा गया कि जरूरतमंद बच्चों की देखभाल व सुरक्षा प्रदान करने के प्रयास तक तत्कालीन AAP सरकार नहीं कर सकी थी। यहां तक एनजीओ द्वारा संचालित बाल देखभाल संस्थानों को वित्तीय सहायता देने में भी असफल रही थी। लेख में पढ़ें इस रिपोर्ट में और क्या कहा गया है।

    By Rakesh Kumar Singh Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Fri, 28 Feb 2025 05:23 PM (IST)
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    Delhi News: अभावग्रस्त बच्चों में केवल 54 प्रतिशत को ही मिल पा रही थी शिक्षा। फाइल फोटो

    राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली। गरीबी से जूझ रहे राजधानी में बड़ी संख्या ऐसे बच्चे भी हैं, जिनके पास घर नहीं हैं, जो भीख मांगते मिलते हैं। सड़कों पर रहने वाले बच्चे, मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग, अनाथ, तस्करी या यौन शोषण के शिकार, नशीली दवाओं व मादक पदार्थों के सेवन करने वाले बच्चों को कैसे सुधारा जाए, कैग रिपोर्ट कहती है कि इसके लिए दिल्ली सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया।

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    जरूरतमंद बच्चों की देखभाल व सुरक्षा प्रदान करने के प्रयासों में दिल्ली सरकार पूरी तरह से विफल रही। जबकि बच्चों के लिए राष्ट्रीय नीति में प्रविधान है कि राज्य सरकार बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए विशेष सुरक्षा उपाय करने के लिए प्रतिबद्ध है।

    कैग रिपोर्ट खोल रही पोल

    कैग रिपोर्ट (CAG Report) ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली की पोल खोलकर रख दी है। रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार द्वारा जरूरतमंद बच्चों की देखभाल व सुरक्षा प्रदान करने के लिए किए गए प्रयासों में कई खामियां रेखांकित की हैं।

    बाल देखभाल संस्थानों को धन जारी करने व बच्चों को गोद लेने के लिए स्वतंत्र घोषित करने आदि के लिए बाल देखभाल संस्थानों में कर्मचारियों की कमी, अपर्याप्त भौतिक बुनियादी ढांचे और अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं की समस्या थी।

    सरकार ने माता-पिता की देखभाल की जरूरत वाले बच्चों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने और ऐसे बच्चों के पालक माता-पिता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रायोजन योजना और पालक देखभाल योजना को भी लागू नहीं किया।

    जरूरत वाले बच्चों की पहचान करने के लिए नहीं हुआ कोई सर्वेक्षण

    महिला एवं बाल विकास विभाग (डीडब्ल्यूसीडी), दिल्ली राज्य बाल संरक्षण सोसाइटी (डीएससीपीएस), राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (एसएआरए), बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी), जिला बाल संरक्षण इकाइयों (डीसीपीयू) और बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआइ) के रिकॉर्ड की जांच में काफी कमियां पाई गईं।

    कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि एकीकृत बाल संरक्षण योजना के माध्यम से जरूरतमंद बच्चों की देखभाल और सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में दिल्ली सरकार के प्रयास अधिकांश क्षेत्रों में या तो अपर्याप्त थे अथवा धीमे थे। सरकार द्वारा देखभाल की जरूरत वाले बच्चों की पहचान करने के लिए कोई सर्वेक्षण नहीं कराया गया।

    ऐसे बच्चों से संबंधित आंकड़ों के अभाव में सरकार द्वारा कोई ठोस योजना तैयार नहीं की जा सकी और न ही पर्याप्त संसाधन आवंटित किए जा सके। उनके प्रयास केवल उन कमजोर बच्चों की देखभाल प्रदान करने तक सीमित थे, जिन्हें पुलिस व गैर सरकारी संगठनों द्वारा उनके पास लाया गया।

    जानबूझ कर फंड जारी करने में हुई देरी

    दिल्ली राज्य बाल संरक्षण सोसाइटी जो एकीकृत बाल संरक्षण योजना के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च निकाय है, आवश्यक प्रोत्साहन और नेतृत्व प्रदान करने में विफल रहा, क्योंकि इसकी शासी निकाय और कार्यकारी समिति निष्क्रिय थी। यहां तक कि सरकार एनजीओ द्वारा संचालित बाल देखभाल संस्थानों को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करने में विफल रही, जानबूझ कर उन्हें फंड जारी करने में देरी की गई।

    सरकार एकीकृत बाल संरक्षण योजना के कार्यान्वयन के लिए अनुदान में बढ़ी हुई केंद्रीय हिस्सेदारी का लाभ उठाने में भी विफल रही। बच्चों की देशभाल, संरक्षण व उचित पुनर्वास के लिए जिम्मेदार बाल कल्याण समितियों का गैर जिम्मेदार रवैया सामने आया। उन्होंने विभिन्न एजेंसियों द्वारा बरामद बच्चों की तस्वीरों को फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम पर भी अपलोड नहीं किया।

    जिससे लापता बच्चों के विवरण से उनका मिलान किया जा सके और उन्हें उनके स्वजन को सौंपा जा सके। लापता बच्चों के विवरण से उनका मिलान किया जा सके। इससे माता-पिता और बच्चों के अलगाव के आघात को कम करने के प्रति चिंता की कमी का संकेत मिलता है।

    सिर्फ 54 फीसदी बच्चों को ही मिल पा रही थी शिक्षा

    रिपोर्ट में कहा गया है कि बाल देखभाल संस्थान बिना पंजीकरण के काम कर रहे थे, जिससे दिल्ली राज्य बाल संरक्षण सोसाइटी को किशोरों के बारे में निर्णय लेने में देरी हुई, जिससे उन्हें अपेक्षित सुविधाओं के बिना काम करना पड़ा और बच्चों को अनुपयुक्त परिस्थितियों में रहना पड़ा।

    बाल देखभाल संस्थानों में बाल कल्याण अधिकारी, परामर्शदाता और शिक्षकों आदि के महत्वपूर्ण पदों पर कर्मचारियों की 76 प्रतिशत तक पाई गई, जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण देखभाल करने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई।

    बाल देखभाल संस्थानों को अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं, बच्चों को दिए जाने वाले अपर्याप्त पोषण, कपड़े, बिस्तर और प्रसाधन, अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं और शिक्षा के अभाव का भी सामना करना पड़ा। वहां केवल 54 प्रतिशत बच्चों को ही शिक्षा मिल पा रही थी।

    सरकार ने "प्रायोजन" और 'पालक देखभाल' योजनाओं को लागू नहीं किया, जिसके कारण पारिवारिक वातावरण में बच्चों की वृद्धि और विकास नहीं हो सका, खासकर उन मामलों में जहां परिवार, रिश्तेदार या अन्य व्यक्ति बच्चों की मदद करने के इच्छुक थे, लेकिन वित्तीय बाधाओं के कारण ऐसा करने में असमर्थ थे।

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