देश के पहले राष्ट्रपति से लेकर डॉ. कलाम तक ने किया इसमें सफर, जानें कहां देख सकते हैं ये अनोखी ट्रेन
यह लेख राष्ट्रपति सैलून के बारे में है जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस सैलून का उपयोग भारत के पहले राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर डाॅ. एपीजे. अब्दुल कलाम तक कुल ग्यारह राष्ट्रपतियों ने किया था। यह सैलून न केवल तकनीक और शाही ठाठ-बाट का प्रतीक था बल्कि राष्ट्रपति और जनता के बीच की दूरी को भी कम करता था।

शशि ठाकुर, नई दिल्ली। पटरियों पर दौड़ती ट्रेन को आम लोग हमेशा सफर और रफ्तार से जोड़ते रहे हैं, लेकिन कभी कोई रेल का डिब्बा राष्ट्रपति भवन का रूप भी ले सकता है। इस अनोखी ट्रेन को रेल संग्रहालय में देखा जा सकता है।
एक बार फिर राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में नए रूप में सजा राष्ट्रपति सैलून अनोखी परिकल्पना का जीता-जागता उदाहरण है। चमचमाती लाल रंग की बाॅडी, सुनहरी धारियों से सजा बाहरी हिस्सा और भीतर की आलीशान सुविधाएं इसे किसी शाही महल से कम नहीं बनातीं।
यह सिर्फ एक रेल कोच नहीं है बल्कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की वह चलती-फिरती निशानी व शान है, जिसने राष्ट्रपति और जनता के बीच की दूरी को पटरियों के जरिये समेट था।
भारत के पहले राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर डाॅ. एपीजे. अब्दुल कलाम तक कुल 11 राष्ट्रपतियों ने इस सैलून में सफर किया था। रेल पटरियों पर दौड़ता यह सैलून तकनीक और शाही ठाठ- बाट के साथ भारत की लोकतांत्रिक धड़कनों को भी अपनी रफ्तार से जीवंत करता रहा।
भारतीय रेल ने 1953 में राष्ट्रपति के लिए एक विशेष सैलून का डिजाइन तैयार किया था। तीन साल की मेहनत के बाद 1956 में यह रेल सैलून तैयार हुआ और एक जनवरी 1957 को प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद ने इसमें यात्रा की। उनकी यह यात्रा उस परंपरा की शुरुआत थी, जिसने राष्ट्रपति और जनता के बीच की दूरी मिटा दी।
दो कोचों में बंटा सैलून
राष्ट्रपति सैलून दो विशेष डिब्बों में बंटा है। यह कोच संख्या 9000 और 9001 से मिलकर बना है। पहले कोच संख्या 9000 कार ‘ए’ में राष्ट्रपति का दफ्तर, बैठक कक्ष, विश्राम कक्ष, अतिथि कक्ष, स्नानघर. आलीशान किचन और शौचालय शामिल है।
इस हिस्से में राष्ट्रपति अपनी औपचारिक बैठक और राजकीय कार्य करते थे। यहां 14.5 किलोग्राम चांदी के बर्तन थे, जिनमें राष्ट्रपति खाना खाते थे।
वहीं, दूसरे कोच संख्या 9001 कार ‘बी’ में चिकित्सक और सचिव का केबिन, भोजन कक्ष, रसोईघर तथा पेट्री स्टोर जैसी सुविधाएं मौजूद है। यह कोच राष्ट्रपति के स्टाफ और टीम के लिए तैयार किया गया गया था।
तकनीकी कौशल और रफ्तार
शाही ठाठ का प्रतीक सैलून अधिकतम गति 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ती थी। वैक्यूम ब्रेक प्रणाली से लैस इस सैलून को चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) ने स्टील से तैयार किया था।
सैलून इन महामहिमों के सफर का रहा साक्षी
भारत के पहले राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद को रेल यात्रा का काफी शौक था। उन्होंने 11 जनवरी 1957 में दिल्ली से कुरुक्षेत्र तक के लिए राष्ट्रपति सैलून की पहली यात्रा शुरू की थी। पूरे कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रपति सैलून में कुल 44 बार यात्रा की थी।
देश के दूसरे राष्ट्रपति रहे डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कार्यकाल में राष्ट्रपति सैलून में 19 बार यात्रा की थी। इसमें उनकी लगातार दस दिन चलने वाली यात्रा भी शामिल थी। इसके अलावा चौथे राष्ट्रपति रहे वी.वी. गिरि ने भी राष्ट्रपति सैलून में 12 बार यात्रा की थी।
डाॅ. अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति के 11 वें राष्ट्रपति बने। उन्होंने राष्ट्रपति सैलून में तीन बार यात्रा की। इसके बाद राष्ट्रपति सैलून का संचालन बंद कर दिया गया।
भारत के 14 वें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कंडम हो रहे राष्ट्रपति सैलून को एक प्रदर्शनी के रूप में राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में भेजने का सुझाव दिया। जिसके बाद वर्ष 2021 में सैलून को राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में एक स्टार प्रदर्शनी के रूप में शामिल किया गया।
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