नियमों ने निकाल दी दिल्ली की हवा: प्रदूषण बनी सबसे बड़ी चुनौती, कागजी प्लान नहीं; समन्वय से सुधरेंगे हालात
Delhi pollution राजधानी दिल्ली में प्रदूषण सबसे बड़ी चुनौती है। हाल यह है कि स्वच्छ वायु सर्वेक्षण की रिपोर्ट आती है तो दिल्ली दो पायदान नीचे खिसक जाती है। वहीं नियमों ने भी दिल्ली की हवा निकाल दी है। लेकिन प्रदूषण को कम करने के लिए कागजी प्लान नहीं बल्कि समन्वय से हालात सुधरेंगे। पढ़िए दैनिक जागरण की यह खास रिपोर्ट।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण कम करने के दावे और प्रयास दोनों ही खूब किए जा रहे हैं। बावजूद इसके जब स्वच्छ वायु सर्वेक्षण की रिपोर्ट आती है तो दिल्ली दो पायदान नीचे खिसक जाती है। जहां सर्दी-गर्मी हर मौसम के हिसाब से एक्शन प्लान बन रहा है, इसे लागू करने के दावे हो रहे हैं।
इसके आधार पर सरकार अपने तथ्यों को भी प्रस्तुत कर रही है। वहीं जब देश के 47 बड़े शहरों की स्वच्छ वायु सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी होती है तो दिल्ली 11वें स्थान पर होती है। इस बात को पूरी तरह से नहीं नकारा जा सकता कि सरकार प्रयास नहीं कर रही, लेकिन यहां तालिका में जिन प्रमुख कारणों पर ध्यान देने की जरूरत थी उनमें शुद्ध हवा सुधार की दिशा में अभी और जिम्मेदारी से काम करने की कमी दिखती है। समन्वय का अभाव दिखता है।
दिल्ली के सामने एक प्रमुख चुनौती यह भी है कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के आसपास के राज्यों को शामिल करने वाले एक बड़े वायुमंडल के भीतर स्थित है। जिससे आसपास के क्षेत्रों से होने वाला प्रदूषण दिल्ली की वायु गुणवत्ता को काफी हद तक प्रभावित करता है। प्रदूषण उत्सर्जनों पर कैसे और प्राथमिकता से काम किया जाए इसकी पड़ातल करना हमारा आज का मुद्दा है।
कागजी प्लान नहीं, समन्वय से होगा सुधार
सुनील दहिया, एनालिस्ट, सेंटर फार रिसर्च एंड क्लीन एयर। दिल्ली का प्रदूषण कम करने के लिए कागजी प्लान नहीं, आसपास के राज्यों को भी मिलाकर एक क्षेत्रीय कार्य योजना बनाई जानी चाहिए। इसमें हर क्षेत्र, प्रदूषण कारक एवं जिम्मेदार अधिकारी और विभाग के लिए स्पष्ट प्रदूषण भार कटौती के वार्षिक, मध्यकालीन, दीर्घकालीन लक्ष्य निर्धारित किए जाने चाहिए। इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं करने पर सख्त कार्यवाही भी की जानी चाहिए।
वाहनों की बढ़ती संख्या एवं बढ़ती पेट्रोलियम उत्पाद की खपत को कम करने के लिए स्पष्ट योजना एवं वार्षिक लक्ष्य भी निर्धारित किए जाने चाहिए। दिल्ली के 300-400 किलोमीटर के क्षेत्र में नए कोयला संयंत्र एवं प्रदूषणकारी कारखानों के रूप में नए प्रदूषण के स्रोत नहीं लाए जाएं, मौजूदा स्रोत से वायु प्रदूषण का उत्सर्जन सख्ती से कम किया जाए। पराली जलाना कम करने के लिए किसानों से साल भर बातचीत कर उन्हें अन्य फसल पर शिफ्ट करने के साथ-साथ पराली के बेहतर प्रबंधन की तरफ प्रेरित करने के लगातार प्रयास किए जाएं।
स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2024 ने गुजरात के सूरत को 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ शहर का दर्जा दिया, जबकि उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद और रायबरेली को क्रमश: 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार तीन से 10 लाख और तीन लाख से कम आबादी वाले शहरों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ शहर बताया गया है। सर्वेक्षण में दस लाख से अधिक आबादी वाले 47 शहरों की सूची में दिल्ली को 11वां स्थान दिया गया है।
यह सर्वेक्षण हर संकेतक को अलग-अलग अंक देता है, जिसमें पीएम 10 प्रदूषण की मात्रा में सुधार का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है। किंतु उसे रैंकिंग के तहत केवल 2.5% वेटेज मिलता है, जबकि यह सभी संकेतक किसी न किसी तरह से सबसे प्रमुख जिम्मेदार क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन को संबोधित करते हैं, उन्हें वायु गुणवत्ता में वास्तविक सुधार करने के लिए सक्षम बनाने के लिए इनमें बदलाव की आवश्यकता है। संकेतक प्रदूषण उत्सर्जन क्षेत्रों से पूर्ण उत्सर्जन में कमी के सिद्धांत पर आधारित नहीं हैं।
उदाहरण के लिए रैंकिंग प्रदूषण उत्सर्जन करने वाले उद्योगों में आनलाइन डाटा मॉनिटरिंग, उत्सर्जन मानकों का अनुपालन और पीएनजी में रूपांतरण को अहम स्थान देता है, लेकिन यह कहीं भी सुनिश्चित नहीं करती कि उद्योगों से उत्सर्जन भार कम हो सके क्योंकि यह सबसे पहले गंदे ईंधन पर चलने वाले उद्योगों की संख्या को प्रतिबंधित नहीं करता है। दूसरे, उत्सर्जन में कमी केवल तभी हासिल की जा सकती है जब उद्योग मौजूदा मानकों की तुलना में सख्त उत्सर्जन मानकों को अपनाएंगे, न कि केवल मौजूदा मानकों का अनुपालन करके और प्रदूषण उत्सर्जन की निगरानी करके।
एक अन्य उदाहरण परिवहन क्षेत्र का है, जहां सर्वेक्षण परिवहन उत्सर्जन को विनियमित करने के लिए पीयूसी प्रमाणपत्रों और पीयूसी केंद्रों के विस्तार पर जोर देता है। हालांकि, कोई भी संकेतक पूर्ण पेट्रोल और डीजल की खपत को कम करने, प्रदूषण फैलाने वाले निजी वाहनों के पंजीकरण को प्रतिबंधित करने या परिवहन बेड़े को शून्य-उत्सर्जन वाहनों के लिए आधुनिक बनाने के प्रयासों को नहीं मापता है। अन्य क्षेत्रों के संकेतक भी लक्षित पूर्ण उत्सर्जन भार कटौती दृष्टिकोण से चूक जाते हैं। उन कारणों से, पूर्ण वायु गुणवत्ता में सुधार, उत्सर्जन भार में कमी की रिपोर्ट और स्वच्छ वायु सर्वेक्षण रैंकिंग में बहुत कम या कोई संबंध नहीं दिखता है।
दिल्ली या किसी अन्य शहर में वायु गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार दिखाने के लिए एक समकालिक योजना दृष्टिकोण को लागू करना महत्वपूर्ण है। इसकी शुरुआत मजबूत निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम, सेक्टर-विशिष्ट समयबद्ध पूर्ण उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों की स्थापना करने और संबंधित माप संकेतकों के उपयोग से होनी चाहिए। ये उपाय, जब शहरी स्थानीय निकायों और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को तकनीकी कौशल और क्षमता प्रदान करके सक्षम किए जाते हैं, तो प्रदूषणकारी क्षेत्रों और विभागों द्वारा की गई प्रगति के आधार पर कुशल निगरानी, रिपोर्टिंग, निरीक्षण, दंड व प्रोत्साहन सुनिश्चित कर सकते हैं।
आसपास के क्षेत्रों का प्रदूषण दिल्ली के लिए बड़ी चुनौती
डॉ. अंजू गोयल, एसासिएट निदेशक, द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी)। टेरी द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि शहर में 76% प्रदूषण दिल्ली के बाहर स्थित स्रोतों से आता है। अध्ययन के अनुसार परिवहन (23%), उद्योगों सहित बिजली संयंत्र (23%) और बायोमास जलाने (14%) ने 2019 की सर्दियों के दौरान शहर की पीएम 2.5 की सांद्रता बढ़ाने में मुख्य योगदान दिया।
प्रदूषण से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए विशेष रूप से परिवहन क्षेत्र में, सरकार ने पहले ही वाहन की उम्र पर प्रतिबंध लागू कर दिए हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने और मौजूदा वाहनों के निरीक्षण और रखरखाव प्रणाली को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त उपायों की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना कि सड़क पर चलने वाले वाहन उत्सर्जन मानकों को पूरा करें, परिवहन से संबंधित प्रदूषण को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
वायु प्रदूषण में एक और बड़ा योगदानकर्ता ठोस कचरे को जलाना और पुराने कचरे का अनुचित प्रबंधन है। इन मुद्दों पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। खासकर जब ठोस कचरे को जलाना शहर की रैंकिंग में उतार-चढ़ाव का बड़ा कारण बनता हो। सरकार सामग्री पुनः प्राप्त सुविधाओं को स्थापित करके अधिक कुशलता से कचरे को संसाधित करने के लिए सक्रिय कदम उठा सकती है। इसके अलावा, पुराने कचरे को रिफ्यूज-डिराइव्ड फ्यूल (आरडीएफ) में परिवर्तित करना और उद्योगों में ईंधन स्रोत के रूप में आरडीएफ का उपयोग करना प्रदूषण स्तर को काफी हद तक कम कर सकता है।
दिल्ली की वायु गुणवत्ता के स्कोर में कुछ प्रगति तो हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। क्षेत्रीय नीतियों को सख्ती से लागू करना, विशेष रूप से वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा, दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक है। एनसीआर राज्यों के बीच सहयोगात्मक प्रयास, परिवहन और कचरा प्रबंधन में लक्षित उपायों के साथ, शहर और उसके निवासियों के लिए स्वच्छ हवा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। हरित ऊर्जा (सौर उद्योग आदि) का उपयोग करके दीर्घकालिक सुधार लाए जा सकते हैं। ग्रीनहाउस गैसों को कैप्चर करना एक संभव दृष्टिकोण है।
इसी तरह निर्माणाधीन स्थलों पर यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त मानदंडों की आवश्यकता है कि धूल बिलकुल नहीं उड़ेगी। अधिक पेड़ लगाने और डीजल जेनरेटर से गैस जेनरेटर में शिफ्ट करने से और भी कमी आएगी। यदि इसे गंभीरता से लागू कराया जाता है, तो यह सुधार गर्मियों के दौरान भी वायु गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा। योजनाओं की व्यापक पहुंच और प्रसार की आवश्यकता है। योजनाओं को सरल रूपों और प्रारूपों में जनता तक पहुंचाने की जरूरत है। वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण बेहतर सार्वजनिक परिवहन के लिए नीति और बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता है। हाइब्रिड/इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग भी समय की मांग है।
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वैसे दिल्ली सरकार ने भी शहर में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इन कदमों में सर्दियों के मौसम में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध, स्वच्छ निर्माण दिशा निर्देशों का क्रियान्वयन, कचरा संग्रहण में सुधार, 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध शामिल हैं। लेकिन, इन नीतियों के मजबूत क्रियान्वयन, शहर में सड़कों के बुनियादी ढांचे के रखरखाव और दीवार-से-दीवार पक्कीकरण की आवश्यकता है ताकि धूल उड़ने को और कम किया जा सके। - संजीव गुप्ता से बातचीत पर आधारित
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