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बिना बुनाई वाले बैग में भी हो रहा प्लास्टिक का इस्तेमाल, सामने आया चौकाने वाला शोध

टॉक्सिक लिंक की तरफ से बताया गया है कि पर्याप्त जानकारी के अभाव में बहुत से विक्रेता सामान्य प्लास्टिक के विकल्प के रूप में अभी भी प्लास्टिक (नॉन-वोवन PP) का ही इस्तेमाल कर रहे हैं

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 06:59 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 08:20 PM (IST)
बिना बुनाई वाले बैग में भी हो रहा प्लास्टिक का इस्तेमाल, सामने आया चौकाने वाला शोध
बिना बुनाई वाले बैग में भी हो रहा प्लास्टिक का इस्तेमाल, सामने आया चौकाने वाला शोध

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही दिल्ली की गैर सरकारी संस्था टॉक्सिक लिंक की एक शोध में बिना बुनाई वाले बैग को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। शोध से पता चला है कि 88 फीसद लोगों ने प्लास्टिक बैग की जगह दूसरे विकल्पों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है जबकि 45 फीसद लोग प्लास्टिक बैग के स्थान पर गैर-बुने बैग का प्रयोग कर रहे हैं। लेकिन ये बैग भी पॉलीप्रोपीलिन (एक प्रकार का प्लास्टिक) से ही बने होते हैं।

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लिहाजा, उपभोक्ताओं को इनकी वास्तविकता के बारे में जागरूक और शिक्षित करने की जरूरत है। टॉक्सिक लिंक की इस शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि पर्याप्त जानकारी के अभाव में बहुत से विक्रेता सामान्य प्लास्टिक के विकल्प स्वरूप अभी भी प्लास्टिक का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। नई दिल्ली स्थित एक मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में इस तरह के बैग के पांच नमूने भेजे गए और जांच में इन सभी में पॉलीप्रोपीलिन और पॉलिएस्टर (दोनों प्लास्टिक रेजिन हैं) की उपस्थिति पाई गई।

संस्था का दावा है कि शोध से स्पष्ट है कि उपभोक्ताओं की आंखों में धूल झोंकी जा रही है और कपड़े के जैसे दिखाई देने वाले बैग सच्चाई से कोसों दूर हैं। टॉक्सिक लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश ने बताया कि अन्य उपलब्ध विकल्पों के मुकाबले गैर बुनाई वाले बैग की कीमतें कम होना इनके उपयोग बड़ा कारण है। चूंकि इन बैग को बनाने के लिए भी प्लास्टिक का ही इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए प्लास्टिक बैग की तरह इनसे भी पर्यावरण को खतरा होता है। वहीं टॉक्सिक लिंक के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने कहा कि प्लास्टिक रेजिन युक्त गैर बुनाई वाले बैग को प्रतिबंधित या सीमित रूप से प्रतिबंधित प्लास्टिक बैग की सूची में शामिल करने में नियामक संस्थानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, कुछ राज्य पहले ही ऐसे कदम उठा चुके हैं।

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