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    Nirbhaya Case: फांसी से पहले क्या होती है कैदियों की मनः स्थिति, जानने के लिए पढ़िए- यह स्टोरी

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Wed, 25 Mar 2020 10:17 AM (IST)

    Nirbhaya Case Anthropologist डॉ. अनुपमा भारद्वाज बताती हैं कि फांसी से ठीक पहले दोषियों के जेहन में 16 दिसंबर 2012 की रात का वह लम्हा फ्लैश बैक की तरह तेजी से आया होगा।

    Nirbhaya Case: फांसी से पहले क्या होती है कैदियों की मनः स्थिति, जानने के लिए पढ़िए- यह स्टोरी

    नई दिल्ली [ऑनलाइड डेस्क]। Nirbhaya Case : निर्भया के चारों दोषियों को फांसी देने के साथ आखिरकार 7 साल बाद अब जाकर 23 वर्षीय पैरा मेडिकल की छात्रा के साथ इंसाफ हुआ। आइये जानते हैं कि 20 मार्च को सुबह 5:30 बजे फांसी से ठीक पहले क्या चल रहा था निर्भया के दोषी चारों कैदियों के मन में, बता रही हैं सोशल एंड क्लचरल एंथ्रोपॉलोजिस्ट डॉ. अनुपमा भारद्वाज (Dr. Anupma S. Bhardwaj, Social and cultural Anthropologist)।

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    बढ़ जाती है जीने की तीव्र चाहत

    फांसी से पहले चारों दोषियों (विनय कुमार शर्मा, पवन कुमार गुप्ता, मुकेश और अक्षय कुमार सिंह) की मनः स्थिति को लेकर डॉ. अनुपमा कहती हैं- 'आखिर जीना कौन नहीं चाहता है? जीने की जिजीविषा तब और बढ़ जाती है, जब जीवन पर कोई संकट आता है। क्योंकि जीवन के बाद कुछ नहीं होता, इसलिए जाहिर है कि पहले तो मनुष्य और उस पर सचेतन होने के नाते निर्भया के दोषियों की भी जीने की इच्छा फांसी से चंद सेकेंड पहले प्रबल हो गई होगी। यहां पर बता दें कि जिजीविषा शब्द मुख्यतः संस्कृत का और जिजीविषा से तात्पर्य जीने की प्रबल इच्छा से है।

    बंध जाती है चमत्कार की उम्मीद

    डॉ. अनुपमा की मानें तो फांसी से पहले चारों दोषियों के सामने मौत नजर आ रही होगी, क्योंकि उन्होंने एक आस के तहत कई तरह के कानूनी दांवपेंच चले थे और 3 बार डेथ वारंट जारी होने के बाद उनकी फांसी टल भी गई थी। ऐसे में वह ऐसा कुछ सोच रहे होंगे कि शायद मौत (फांसी) का ये लम्हा भी टल जाए। कई दोषी तो इस दौरान अपने आपको दूसरी ही दुनिया में ले लाने की कोशिश करते हैं कि 'वर्तमान में जो चल रहा है यह सब झूठ हो यानी कि उन्हें फांसी नहीं होने जा रही है।' यह भी सोच लेते हैं, क्योंकि इससे उन्हें थोड़ी राहत मिलती है।

    मिलती रहे दिलासा

    निर्भया के चारों दोषी यह बखूबी जानते थे कि उन्हें फांसी होकर रहेगी, लेकिन फिर भी वे लगातार वहां मौजूद अधिकारियों से माफी मांग रहे थे कि उन्हें छोड़ दिया जाए। दरअसल, इसके पीछे भी चारों की यही सोच रही होगी कि उन्हें दिलासा भर मिल जाए। वैसे बताया जा रहा है कि रोने और भावुक होने की स्थिति में वहां मौजूद अधिकारी लगातार उनकी पीठ ठोक रहे थे, ताकि नर्वस ब्रेक डाउन से बचा जा सके। कई बार यह स्थिति भी आ जाती है, खासकर बड़ी उम्र में।

    माफी मांगते हैं गुनाह के लिए

    डॉ. अनुपमा बताती हैं कि फांसी से ठीक पहले चारों दोषियों के जेहन में 16 दिसंबर, 2012 की रात का वह लम्हा फ्लैश बैक फिल्म की तरह तेजी से आया होगा, जब उन्होंने यह घिनौना कृत्या किया था। इस दौरान वह अपने गुनाह के लिए भगवान का नाम लेकर माफी तक मांगते हैं कि काश उन्हें भगवान बचा ले। ऐसे वे अपने आपको दिलासा देने के लिए कर रहे होंगे। 

    पछतावा

    फांसी से पहले चारों के मन में एक ऐसा लम्हा आया होगा, जब वे चारों बहुत पछताएं होंगे, क्योंकि उन्हें यह लगने लग जाता है कि वह इस दुनिया को छोड़कर जा रहे हैं और जहां वह जा रहे हैं उसके बारे में कुछ नहीं जानते।

    करते हैं मां-बाप और बच्चों को याद

    फांसी से ठीक पहले निर्भया के चारों गुनाहगारों ने जरूर सोचा होगा कि मरने के बाद हमारे माता-पिता का क्या होगा? दरअसल, यह याद कर वे रोते हैं। मसलन विनय, पवन और मुकेश ने जरूर माता-पिता को याद किया होगा और सोचा होगा कि अब उनसे कभी मुलाकात नहीं होगी और उनके जाने के बाद कैसे जिएंगे।

    अक्षय ने याद किया होगा अपने बच्चे को

    चारों में एक दोषी अक्षय कुमार सिंह ने जब यह अपराध किया तो उसके तीन महीने का बेटा था। वह फिलहाल सात साल का हो चुका होगा और तय है कि वह अपने बच्चे और पत्नी को याद कर रोयो होगा।  

     निर्भया में भी जीने की तीव्र इच्छा 

    16 दिसंबर, 2012 की रात को छह लोगों की दरिंदगी का शिकार हुई निर्भया जीना चाहती थी, लेकिन वह मौत से लड़ने के दौरान जिंदगी जंग हार गई। उसने अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ाई के दौरान कई भावुक नोट भी लिखे, जिससे उसके जीने की जीजीविषा के बारे में पता चलता है। 

    बता दें कि दोषी विनय कुमार शर्मा ने राष्ट्रपति के समक्ष दायर अपनी दया याचिका में अपनी मां और पिताजी से मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा था कि वह जीना नहीं चाहता था, लेकिन जब उससे उनके मां-बाप मिलने आए तो उसमें जीवित रहने की ललक जगी। तब विनय ने बताया था कि उसके मां-बाप ने कहा था- 'बेटा तुमको देखकर हम जिंदा हैं तब से मैंने मरने का खयाल छोड़ दिया है। 

    जीना चाहते थे चारों पर फांसी थी तय

    दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा जारी पहले डेथ वारंट के बाद से ही चारों दोषियों (विनय कुमार शर्मा, पवन कुमार गुप्ता, मुकेश सिंह और अक्षय कुमार सिंह) को लगने लगा था कि फांसी करीब है। ऐसे में चारों में जीने की जीजीविषा बढ़ गई थी। चारों ही मरना नहीं चाहते थे और इसी उम्मीद में उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति के दर पर दया की गुहार लगाई।

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