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    Nirbhaya case: टल सकती है 22 जनवरी को होने वाली फांसी, इन 2 वजहों से बना सस्पेंस

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Sat, 11 Jan 2020 07:56 AM (IST)

    Nirbhaya case चारों दोषी जिस तरह से कानूनी दांवपेंच चल रहे हैं उससे लगता नहीं कि 22 फरवरी को उन्हें फांसी हो पाएगी क्योंकि दोषियों के पास अब भी कई कानूनी रास्ते बचे हैं

    Nirbhaya case: टल सकती है 22 जनवरी को होने वाली फांसी, इन 2 वजहों से बना सस्पेंस

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 2012 Delhi Nirbhaya Case: निर्भया मामले में 7 जनवरी को अपने फैसले में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट डेथ वारंट जारी कर चुकी है, जिसके तहत आगामी 22 जनवरी की सुबह 7 बजे चारों दोषियों अक्षय ठाकुर, मुकेश, विनय कुमार शर्मा और पवन कुमार गुप्ता को तिहाड़ जेल संख्या-3 में फांसी दी जानी है। इसके लिए तिहाज जेल संख्या-3 में पूरी तैयारी भी की जा चुकी है। यहां तक कि अगले कुछ दिनों में फांसी के लिए डमी ट्रायल भी शुरू किया जाना है।  इसी के साथ यूपी के मेरठ के रहने वाले जल्लाद पवन को लेकर यूपी पुलिस की ओर से भी सहमति आ चुकी है।

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    कुछ समय और टल सकती है सुनवाई

    वहीं, निर्भया के चारों दोषी जिस तरह से कानूनी दांवपेंच चल रहे हैं, उससे लगता नहीं है कि 22 जनवरी को उन्हें फांसी हो पाएगी, क्योंकि दोषियों के पास अब भी कई कानूनी रास्ते बचे हैं, जिनकी मदद से वे अपनी फांसी की सजा को कुछ और समय के लिए टाल सकते हैं। 

    क्यूरेटिव पेटिशन और दया याचिका से टल सकती है सजा

    दरअसल, चारों दोषियों के पास फिलहाल फांसी टालने के लिए दो विकल्प हैं। पहला क्यूरेटिव पेटिशन तो दूसरा राष्ट्रपति के पास दया याचिका। क्यूरेटिव पेटिशन सिर्फ विनय कुमार शर्मा और मुकेश कुमार ने ही अपने वकील के जरिये सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है, जिस पर अगले कुछ दिनों में सुनवाई हो सकती है। वहीं, बाकी बचे दोषियों अक्षय ठाकुर और पवन कुमार गुप्ता की ओर से इस दिशा कोई कदम नहीं उठाया गया है। इसी तरह सिर्फ विनय कुमार शर्मा ने ही राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी है, बाकी तीनों की ओर से इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। आइये जानते हैं कौन से दो विकल्प चारों दोषियों की फांसी को 22 जनवरी की फांसी को टाल सकते हैं।

    आखिर क्या होती है क्यूरेटिव पेटिशन

    दोषी क्यूरेटिव पेटिशन सुप्रीम कोर्ट में तब दायर करता है, जब उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो जाती है। खासकर फांसी जैसे मामलों में क्यूरेटिव पेटिशन दोषी के पास अंतिम मौका होता है। इस याचिका के जरिये वह फांसी जैसी सजा को चुनौती दे सकता है, साथ ही रहम की गुहार भी लगा सकता है। याचिकाकर्ता को अपनी क्यूरेटिव पेटिशन में यह भी स्पष्ट करना होता है कि उसके पास सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का आधार क्या है? क्यूरेटिव पेटिशन को किसी सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाई होना आवश्यक होता है। नियमानुसार, क्यूरेटिव पेटिशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों और जिन्होंने सजा सुनाई है उनके पास भी भेजा जाना जरूरी होता है। इस दौरान तीनों वरिष्ठ न्यायाधीश यह पाते हैं कि ये पेटिशन आगे बढ़ाने लायक है तो यह याचिका यानी क्यूरेटिव पेटिशन उन्हीं जजों के पास भेज दी जाती है, जिन्होंने फैसला सुनाया जाता है।

    राष्ट्रपति के पास दया याचिका

    सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका और क्यूरेटिव पेटिशन खारिज होने के बाद दोषी के पास सजा से बचने या सजा कम कराने के लिए सिर्फ राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करना ही एक मात्र विकल्प बचता है। इसमें दोषी की सहमति से राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की जाती है और फिर राष्ट्रपति महोदय इस पर विचार के पास इसे खारिज करते हैं या फिर सजा कम करने पर भी मुहर लगा सकते हैं। ऐसा कम ही होता है, जब दोषी को पूरी तरह बरी किया जाए।

    यहां पर बता दें कि क्यूरेटिव पेटिशन सबसे 2002 में हुई। दरअसल, 2002 में रूप अशोक हुरा केस में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से भी दोषी ठहराए जाने के बाद क्यूरेटिव पेटिशन की अवधारणा सामने आई थी।

    बता दें कि गुरुवार को निर्भया के चार दोषियों में से विनय कुमार शर्मा और मुकेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पेटिशन दायर कर दया की गुहार लगाई है। अगर क्यूरेटिव पेटिशन भी खारिज होती है तो इन दोनों के पास राष्ट्रपति के पास दया याचिका का ही विकल्प रह जाता है।

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