IIT दिल्ली और क्लाइमेट ट्रेंड्स ने लॉन्च किया हेल्थ बेनिफिट डैशबोर्ड...तो बीमारियों में आ सकती है कमी
पांचवें नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार प्रदूषण कम होने से बीमारियों का बोझ घट सकता है। एक नए डैशबोर्ड से पता चलता है कि पीएम 2.5 प्रदूषण महिलाओं और बच्चों में गंभीर बीमारियों को बढ़ाता है। उत्तर भारत में प्रदूषण घटने से मधुमेह श्वांस संबंधी संक्रमण खून की कमी और कम वजन वाले नवजात शिशुओं में कमी आएगी। यह डैशबोर्ड जनता के लिए उपलब्ध है।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। पांचवें नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार देश में कुल बीमारियों का बोझ 4.87 प्रतिशत है। अगर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का लक्ष्य हासिल होता है तो यह घटकर 3.09 प्रतिशत रह जाएगा। औसतन भारत की हवा में अभी पीएम 2.5 का स्तर 43.23 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि लक्ष्य है इसे घटाकर 32.98 पर लाना।
महिलाओं में मधुमेह की दर 1.7 प्रतिशत
अगर यह लक्ष्य पूरा हो जाए तो सबसे बड़ा फायदा उन इलाकों को होगा जहां आबादी ज्यादा और प्रदूषण गहरा है। जैसे उत्तर भारत और पूर्वी राज्यों की घनी बसावट वाली पट्टियां। उदाहरण के तौर पर 15 से 49 साल की महिलाओं में मधुमेह की दर इस समय 1.7 प्रतिशत है, लेकिन प्रदूषण घटने पर यह 1.4 प्रतिशत तक आ सकती है। वहीं छोटे बच्चों में जन्मदर की गिरावट और श्वांस संबंधी संक्रमण जैसी बीमारियों में सबसे खासी गिरावट देखने को मिलेगी, ख़ासकर गंगा के मैदान और पूर्वी भारत में।
हेल्थ बेनिफिट असेसमेंट डैशबोर्ड
वर्षा का मौसम खत्म होते ही मंगलवार को दिल्ली में एक अहम चर्चा हुई। क्लाइमेट ट्रेंड्स और आईआईटी दिल्ली ने मिलकर एक वर्कशाप का आयोजन किया, जहां पहली बार ऐसा टूल लांच हुआ जो हवा की गुणवत्ता और जनता की सेहत के बीच सीधा रिश्ता सामने रखता है। इसका नाम है हेल्थ बेनिफिट असेसमेंट डैशबोर्ड।
खून की कमी और कम वजन वाले नवजात
यह डैशबोर्ड पांचवें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों पर आधारित है और देश के 641 ज़िलों का नक्शा सामने रखता है। इसमें दिखाया गया है कि बारीक धूलकण यानी पीएम 2.5 प्रदूषण किस तरह महिलाओं और बच्चों में गंभीर बीमारियां बढ़ाता है, चाहे वह हाइपरटेंशन और दिल की बीमारी हो, सीओपीडी जैसी सांस की दिक़्क़तें हों या फिर महिलाओं और बच्चों में खून की कमी और कम वजन वाले नवजात।
उत्तर भारत फिर से जहरीली हवा से ढक जाएगा
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, “राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम उस वक्त एक साहसिक कदम था, जब इसे शुरू किया गया। इसमें सिर्फ पीएम 10 ही नहीं बल्कि और भी खतरनाक पीएम 2.5 को लक्ष्य करना असली स्वास्थ्य लाभों को सामने लाता है। अब ज़रूरी है कि इस कार्यक्रम को और मजबूत किया जाए, ताकि ऊर्जा, उद्योग, परिवहन और निर्माण जैसे बड़े प्रदूषणकारी क्षेत्रों पर कड़ा एक्शन लिया जा सके। सर्दियों में उत्तर भारत फिर से जहरीली हवा से ढक जाएगा और लंबे समय तक ऐसे कण और धातु मानव शरीर पर भारी स्वास्थ्य लागत छोड़ते हैं।”
कोई भी देख सकता है डैशबोर्ड
डैशबोर्ड को आईआईटी दिल्ली के सैटेलाइट डाटा और 2011 की जनगणना के ज़िला स्तर के नक्शों के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें प्रदूषण घटने की स्थिति को माडल कर दिखाया गया है कि साफ़ हवा कैसी सेहत दे सकती है। यह डैशबोर्ड अब सार्वजनिक है और कोई भी व्यक्ति इसे देख सकता है-https://health-dashboard-gold.vercel.app/
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