IITM पुणे लगाएगा दिल्ली के प्रदूषण पर 'नकेल', बारीक पड़ताल कर पेश करेगा वास्तविक रिपोर्ट
दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारणों का पता लगाने के लिए आईआईटीएम पुणे ने एक नई पहल की है। संस्थान प्रदूषण के कारकों की पहचान और निगरानी करेगा। यह अध्ययन दिल्ली में प्रदूषण के वास्तविक स्रोतों का पता लगाने में मदद करेगा। इस जानकारी का उपयोग प्रदूषण को कम करने के लिए प्रभावी योजनाएं बनाने में किया जाएगा। यह प्रयास दिल्ली सरकार के प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों को मजबूत करेगा।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के मुख्य कारकों पर डीप ड्राइव शुरू होने जा रही है। राज्य सरकार से भी पहले यह मोर्चा इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ ट्राॅपिकल मीट्रियोलाॅजी (आईआईटीएम) पुणे संभालेगा। सर्दियों के इस मौसम में प्रदूषण के तमाम कारकों की हिस्सेदारी पर निरंतर निगरानी होगी। इसी निगरानी के आधार पर फिर उनकी रोकथाम की प्लानिंग और उस पर क्रियान्वयन भी किया जाएगा।
दिल्ली के प्रदूषण पर सही तस्वीर आज तक नहीं
गौरतलब है कि दिल्ली में नासूर बन चुके प्रदूषण की सही प्रामाणिक स्थिति आज भी उपलब्ध नहीं है। आईआईटी कानपुर की एक रिपोर्ट लगभग एक दशक से भी पहले की है तो सफर इंडिया की रिपोर्ट पांच साल से अधिक पुरानी। ऐसे में जब तक समस्या की जड़ ही स्पष्टता से ज्ञात नहीं होगी, उसका निदान भी नहीं हो पाएगा।
सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी से पता चलेंगे वास्तविक कारक
रियल टाइम सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी के जरिये अलग- अलग क्षेत्र चिन्हित कर वहां पर कुछ दिनों तक 24 घंटे आनलाइन निगरानी की जाती है। देखा जाता है कि वहां का एक्यूआई किस अंक तक रहता है, किस किस समय पर उसमें कितनी गिरावट या वृद्धि होती है एवं एक्यूआई में किस- किस समय पर किन कारकों की प्रधानता रहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह माना जा रहा है कि समूची दिल्ली व समूचे एनसीआर में न प्रदूषण एक समान है न न उसके कारक। लिहाजा, उसकी रोकथाम के लिए एक समान नहीं बल्कि संबंधित क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से ही कोई सख्त और पुख्ता एक्शन प्लान बनाना होगा।
आईआईटीएम ने स्थापित की अपनी लेबोरेट्री
जानकारी के मुताबिक आईआईटीएम पुणे पूर्व वर्षों में सर्दियों के दौरान डिसिजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) चलाता रहा है। इससे अगले कई दिनों के वायु प्रदूषण का पूर्वानुमान मिलता रहा है, जो ग्रेप के विभिन्न चरणों का क्रियान्वयन करने में भी एक अहम भूमिका अदा करता है। इसी कड़ी में अब आईआईटीएम ने अपने दिल्ली स्थित कार्यालय में एक लेबोरेट्री स्थापित की है। यहां से दिल्ली के प्रदूषण के रियल टाइम कारकों की पहचान सुनिश्चित की जाएगी। यह लेबोरेट्री बहुत ही जल्द ट्रायल करना शुरू कर देगी।
दिल्ली सरकार की कोशिश नहीं हुई सफल
हालांकि पूर्ववर्ती आप सरकार ने भी दिल्ली के वायु प्रदूषण के वास्तविक कारक जानने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी। पहले वाशिंगटन डीसी यूनिवर्सिटी से करार किया तो फिर आईआईटी कानपुर से हाथ मिला राउज एवेन्यू में एक सुपरसाइट स्थापित कर सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी भी शुरू कराई। लेकिन वाशिंगटन डीसी वाली रिपोर्ट आप सरकार के अनुकूल नहीं निकली तो सार्वजनिक भी नहीं की गई। इसी तरह से आईआईटी कानपुर से यह कार्य इसलिए वापस ले लिया गया क्योंकि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के तत्कालीन चेयरमैन अश्विनी कुमार को इस संदर्भ में यह कांट्रेक्ट देने में पारदर्शिता नहीं मिली थी। नतीजा, सुपरसाइट एवं सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी दोनों सवालों के घेरे में आ गईं तो कुछ माह में ही बंद भी कर दी गई।
फिर यह स्टडी शुरू कराएगी दिल्ली सरकार
डीपीसीसी फिर से सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी शुरू कराएगी। यह स्टडी बताएगी कि दिल्ली में प्रदूषण के मुख्य कारक कौन कौन से हैं। साथ ही यह भी साझा करेगी कि किस कारक की कितनी हिस्सेदारी है। यही रिपोर्ट प्रदूषण से जंग में मददगार बनेगी। डीपीसीसी ने बीते दिनों अपनी बोर्ड बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को स्वीकृति भी दे दी है।
अब डीपीसीसी इसके लिए आईआईटीएम पुणे से अनुबंध करने में जुटा है। अगर इनके साथ अनुबंध हो गया तो फिर इन्हीं की टीम सुपरसाइट भी चलाएगी और सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी भी करेगी। अन्यथा डीपीसीसी तकनीकी रूप से दक्ष किसी अन्य साझीदार की तलाश करेगा। इसी स्टडी के जरिये दिल्ली के प्रदूषकों और उनकी हिस्सेदारी की वास्तविक तस्वीर साफ होगी। और इसी रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली सरकार अपनी रणनीति बनाएगी एवं प्रदूषण पर वार करेगी।
डीपीसीसी के अधिकारियों ने बताया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने भी पर्यावरण विभाग को पुख्ता एवं प्रामाणिक प्रणाली के जरिये सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी दोबारा आरंभ करने को कहा है। इसीलिए पर्यावरण विभाग किसी प्रोफेशनल संस्थान से समझौता करने को प्रयासरत है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक और उनकी इस प्रदूषण में हिस्सेदारी
- वाहनों का धुआं- 25 प्रतिशत
- कचरा जलाना- 20 प्रतिशत
- सड़क की धूल- 20 प्रतिशत
- ढांचागत निर्माण व ढहाने के कारण धूल- 15 प्रतिशत
- फैक्ट्रियों से निकला धुआं- 10 प्रतिशत
- अन्य स्रोत- 10 प्रतिशत
- पराली - शून्य
लैब व सुपरसाइट का निरीक्षण
"दिल्ली के वायु प्रदूषकों की हिस्सेदारी के निमित्त हमारा डीएसएस सिस्टम जल्द शुरू हो जाएगा। हमने दिल्ली में एक नई लेबोरेट्री बनाई है, वहां से सोर्स अपाशन्मेंट स्टडी भी शुरू होने वाली है। अभी उपकरण स्थापित किए जा रहे हैं। बहुत जल्द ट्रायल आरंभ हो जाएगा। जहां तक दिल्ली सरकार की सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी का सवाल है तो हमारे साथ उनकी एक बैठक हो चुकी है। हम लोग उनकी लैब व सुपरसाइट का निरीक्षण भी कर रहे हैं। काफी वक्त से बंद पड़ी होने के कारण उसे शुरू होने में थोड़ा समय लगने की संभावना है।"
-डाॅ. सचिन घुड़े, एयरोसोल विज्ञानी, आईआईटीएम पुणे
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