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    Delhi Rainwater Harvesting : दिल्‍ली में सड़कों पर बर्बाद हो रहा बारि‍श का पानी, बेदम हो रही जय संचयन योजना

    Updated: Sat, 12 Jul 2025 02:30 PM (IST)

    दिल्ली में वर्षा जल संचयन की स्थिति चिंताजनक है जहाँ मानसून के दौरान होने वाली वर्षा का एक तिहाई भाग व्यर्थ बह जाता है। भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है और सरकारी प्रयास केवल चर्चा तक ही सीमित हैं। दिल्ली-एनसीआर के शहरों में भी यही हाल है जहाँ जल संचयन की उचित व्यवस्था नहीं होने से पानी बर्बाद हो रहा है।

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    देश की राजधानी में सड़कों पर बर्बाद हो रहा वर्षा का पानी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। देश की राजधानी जहां आज भी जरा सी तेज वर्षा नहीं झेल पाती और जलभराव से घिर जाती है, वहीं जल संचयन में भी फिसड्डी साबित हो रही है। आलम यह है कि यहां मानसून के दौरान जितनी भी वर्षा होती है, उसका मुश्किल से एक चौथाई जल ही संग्रहित हो पाता है। वैसे केवल मानसून ही नहीं, कमोबेश पूरे साल ऐसी ही स्थिति बनी रहती है।

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    हर साल लगभग 774.4 मिमी वर्षा हो रही

    मौसम विभाग के अनुसार राजधानी में हर साल लगभग 774.4 मिमी वर्षा होती है लेकिन वर्षा जल संचयन की व्यवस्था नहीं होने के कारण हर वर्ष वर्षा का एक तिहाई जल सड़कों और नाले-नालियों में व्यर्थ ही बह जाता है।

    बहुत थोड़ा जल ही जमीन के नीचे जाकर भूजल स्तर में वृद्धि करता है और बहुत कम ही निजी स्तर पर चल रहे जल संचयन के प्रयासों से संग्रहित हो पाता है। लिहाजा, धरती प्यासी की प्यासी ही रह जाती है।

    2020 से वर्षा जल संचयन की स्थिति दयनीय : र‍िपोर्ट

    जानकारी के अनुसार, बीते 20 वर्षों में दिल्ली में भूजल स्तर 15 से 20 मीटर तक नीचे जा चुका है। दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की रिपोर्ट बताती हैं कि 2020 से 2025 तक राजधानी में वर्षा जल संचयन की स्थिति भी दयनीय रही है।

    मास्टर प्लान बनाए जाने की है सख्त जरूरत

    2020 में चार हजार भवनों में सिस्टम लगाए गए, मगर 60 प्रतिशत से अधिक खराब पड़े हैं। विशेषज्ञों की मानें तो सरकारी स्तर पर वर्षा जल संचयन का मुद्दा सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रह जाता है, जबकि इसे लेकर एक मास्टर प्लान बनाए जाने की सख्त जरूरत है। विडंबना यह कि राजधानी ही नहीं, एनसीआर के शहरों की भी कमोबेश यही सच्चाई है।

    2018 में बना था एक ड्रेनेज मास्टर प्लान 

    ''दिल्ली में सड़कों के निर्माण को लेकर 2018 में एक ड्रेनेज मास्टर प्लान बना था। आइआइटी दिल्ली के सहयोग से बना वही प्लान आज तक पूरी दिल्ली में लागू नहीं हुआ है। ऐसे में सड़कों पर वर्षा जल संचयन के लिए तो कोई भी प्लानिंग ही नहीं है। फ्लाइओवरों पर तो फिर भी पाइप से जमीन के नीचे वर्षा का जल जाने की कहीं-कहीं व्यवस्था देखने को मिलती है, लेकिन सड़कों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है।''

    - एस वेलमुरूगन, मुख्य विज्ञानी व विभागाध्यक्ष (ट्रैफिक इंजीनियरिंग एंड सेफ्टी), सीआरआरआई

    बदल गया है बार‍िश का पैटर्न

    ''वर्षा का पैटर्न अब बदल चुका है। अब मानसून में भी रुक रुककर वर्षा नहीं होती। जब होती है तो बहुत तेज होती है। ऐसे में जल संचयन की कोई व्यवस्था नहीं होने से सारा जल सड़कों और नाले-नालियों में बह जाता है। बेहतर हो कि इस संदर्भ में गंभीरता से काम किया जाए और मास्टर प्लान भी तैयार किया जाए।''

    -डाॅ शशांक शेखर, प्रोफेसर, भूगर्भ विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय

    दिल्ली एनसीआर में वर्षा जल संचयन की स्थिति

    -दिल्ली : केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय को प्रेषित दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की मई 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली जल बोर्ड वर्षा जल संचयन सिस्टम लगवाने में खुद ही पिछड़ रहा है।

    कुल 9,172 में अब तक 7,599 स्पाट पर यह सिस्टम लग पाया है जबकि 854 जगहों पर 31 जुलाई तक लगाए जाने हैं।

    पहले से लगे 720 सिस्टम या तो खराब हो चुके हैं अथवा उपयोग के काबिल ही नहीं बचे।

    दिल्‍ली में कहां-कहां क‍ैसी है जय संचयन की स्थिति 

    • नोएडा : ईस्टर्न पेरिफरल, यमुना एक्सप्रेस वे पर वर्षा जल संचयन सिस्टम हैं, लेकिन शहर की सड़कों पर नहीं है। वर्षा का पानी सीधे ड्रेन में पहुंचता है। सरकारी व्यवस्था में वर्षा का पानी बचाने को 64 सिस्टम लगे, उसमें से 49 ही चल रहे हैं। बुधवार रात से बृहस्पतिवार रात तक 46 मिमी वर्षा दर्ज हुई। नौ मिमी वर्षा जल बर्बाद होकर बह गया।
    • गुरुग्राम : गुरुग्राम में हाईवे और सड़कों के किनारे कोई वर्षा जल संचयन सिस्टम नहीं है। शहर में 400 सिस्टम लगे हैं, लेकिन 55 बंद पड़े हैं। 12 घंटे में 133 मिमी वर्षा हुई और लगभग सारा पानी व्यर्थ बह गया।
    • फरीदाबाद : हाइवे पर 27 जल संचयन सिस्टम लगे हुए हैं। इनकी क्षमता पांच लाख लीटर पानी की है। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत पानी ही सिस्टम से जमीन में जा पाता है। नगर निगम क्षेत्र में प्रमुख जगहों तथा पार्कों में कुल 217 सिस्टम लगे हुए हैं। चालू तो सभी हैं, लेकिन इनकी सही तरीके से सफाई नहीं हो पाई है। जिले में 31.12 मिमी वर्षा हुई है। नगर निगम के रिकार्ड के अनुसार इसमें से 20 प्रतिशत पानी ही जमीन के भीतर पहुंच पा रहा है।
    • गाजियाबाद : सरकारी व्यवस्था में वर्षा का पानी बचाने को 2825 लगे हैं, लेकिन 2550 ही सुचारू हैं। जिले में 30 मिमी वर्षा हुई, आठ मिमी वर्षा जल व्यर्थ बह गया।

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