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    दिल्ली में रैन बसेरों की हालत जर्जर, जिंदगियों पर मंडरा रहा मौत का साया; पढ़िए पूरी रिपोर्ट

    Updated: Thu, 21 Aug 2025 10:40 AM (IST)

    दिल्ली में कई रैन बसेरों की हालत खस्ता है जो बेघर लोगों के लिए खतरनाक है। 200 रैन बसेरों में से कई में छतें जर्जर हैं और बारिश में टपकती हैं। आसफ अली रोड स्थित रैन बसेरा कोड 173 की हालत सबसे खराब है। डूसिब विभाग ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। श्रमिक संघ ने सरकार से सुधार की मांग की है।

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    पुरानी हो चुकी रैन बसेरों की छत से बढ़ा जान का खतरा।

    लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। दिल्ली में हजारों बेसहारा लोगों के लिए रैन बसेरे (शेल्टर होम) एकमात्र सहारा हैं, लेकिन राजधानी के कई रैन बसेरों की हालत इतनी खराब है कि वहां रहना खुद जोखिम उठाने जैसा हो गया है। जिन छतों के नीचे ये लोग चैन की नींद लेना चाहते हैं, वही छतें अब उनके लिए खतरे का कारण बन चुकी हैं। वर्षा के मौसम में तो हालत और भी ज्यादा खराब हो जाती है।

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    दिल्ली में फिलहाल 200 रैन बसेरे हैं, जहां करीब 19,000 लोगों के रहने की व्यवस्था है। विभाग कहता कि इन रैन बसेरों में 9 हजार बेड उपलब्ध हैं, लेकिन हकीकत में केवल 4 से 5 हजार बेड ही उपलब्ध है। कई रैन बसेरों में लोग जमीन पर सोने को मजबूर है। कई रैन बसेरों में छतें जर्जर हैं, प्लास्टर झड़ रहा है और सीलन से दीवारें कमजोर हो चुकी हैं। वहीं पोर्टा केबिन की छतों की हालात भी बेहद दयनीय है।

    आसफ अली रोड स्थित रैन बसेरा कोड नंबर 173 की छत की हालत बेहद खतरनाक है। दिन में किसी तरह लोग रह लेते हैं, लेकिन रात होते ही डर सताने लगता है कि कहीं छत गिर न जाए। बारिश के दिनों में तो स्थिति और भयावह हो जाती है। बारिश के दौरान छत दिन-रात टपकती रहती है। यहां साफ-सफाई के लिए जरूरी सामान भी नहीं मिलता।

    वहीं, शौचालयों की स्थिति इतनी खराब है कि अंदर जाना भी किसी सजा से कम नहीं लगता। यह इमारत करीब 50 साल पुरानी है, और 10 साल केवल सीमेंट का घोल लगाकर अस्थायी मरम्मत की जाती है, जिससे कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाता। यहां रात में करीब 300 और दिन में 150 लोग रहते हैं।

    वहीं, इस मामले में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब विभाग) के प्रधान निदेशक पीके झा से पक्ष मांगा गया लेकिन उन्होंने इस पर कुछ कहने से इन्कार कर दिया।

    अन्य रैन बसेरों की भी खराब स्थिति

    अजमेरी गेट स्थित गली बोरियान के रैन बसेरा कोड नंबर 25 की छत से भी प्लास्टर झड़ रहा है और बरसात में फर्श पर पानी भर जाता है। रामलीला मैदान स्थित रैन बसेरा कोड 221, गुरु तेग बहादुर अस्पताल के पास स्थित कोड नंबर 80, दंगल मैदान के रैन बसेरे कोड 252 और 253, और फतेहपुरी स्थित आरसीसी बिल्डिंग (कोड 11 व 66) की छतें भी पानी टपक रहा हैं। द्वारका सेक्टर-3 के रैन बसेरे में तो बेड तक नहीं हैं, जिससे लोगों को फर्श पर सोने को मजबूर होना पड़ता है।

    पोर्टा कैबिन भी बदहाल

    दिल्ली के 200 रैन बसेरों में से 81 स्थायी जबकि 115 पोर्टा कैबिन हैं। लेकिन पोर्टा कैबिन की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं है। कई जगह छतें लीक हो रही हैं और साफ-सफाई की हालत दयनीय है। कई की छत की टीन ऊपर से निकलने को हो रही है।

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    दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष अभिषेक बाजपेयी ने बताया कि मानसून के दौरान हर साल ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। हमने दिल्ली सरकार से कई बार इसे ठीक कराने की मांग भी की है। लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।